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बुधवार, 4 दिसंबर 2019

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक: क्यों हो रहा विरोध, केंद्रीय कैबिनेट से मिली मंजूरी

क्या है नागरिकता संशोधन विधेयक: क्यों हो रहा विरोध, केंद्रीय कैबिनेट से मिली मंजूरी
नागरिकता बिल में केंद्र सरकार के प्रस्तावित संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा।
केंद्रीय कैबिनेट ने इसके प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है और पांच दिसंबर को यह विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जाएगा। नागरिकता संशोधन बिल का पूर्वोत्तर के राज्य विरोध कर रहे हैं। पूर्वोत्तर के लोग इस बिल को राज्यों की सांस्कृतिक, भाषाई और पारंपरिक विरासत से खिलवाड़ बता रहे हैं।

राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का फाइनल ड्राफ्ट आने के बाद असम में विरोध-प्रदर्शन भी हुए थे। लेकिन इसमें जिन लोगों के नाम नहीं हैं, उन्हें सरकार ने शिकायत का मौका भी दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने एनआरसी से बाहर हुए लोगों के साथ सख्ती बरतने पर रोक लगा दी थी। अब सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक लाने जा रही है, तो यह तय है कि संसद के दोनों सदनों में इसके खिलाफ स्वर मुखर जरूर होंगे।

क्या है नागरिकता संशोधन बिल

नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है, जिससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव होगा। नागरिकता बिल में इस संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा।

कम हो जाएगी निवास अवधि

भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए देश में 11 साल निवास करने वाले लोग योग्य होते हैं। नागरिकता संशोधन बिल में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 6 साल करने का प्रावधान है।

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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कई सभाओं के दौरान भी नागरिकता कानून में संशोधन की बात कर चुके हैं। इस कानून के विरोध में सबसे मुखर आवाज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की है। वे पहले से ही पश्चिम बंगाल में एनआरसी को लागू करने से इनकार करती रही हैं। इस विधेयक के पास होने से वर्तमान कानून में बदलाव आएगा। जानिए, इसका फायदा किसे मिलेगा और देश में रह रहे करोड़ों लोगों पर इसका क्या असर होगा।

नागरिकता संशोधन विधेयक में क्या है प्रस्ताव?

नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 को 19 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था। 12 अगस्त 2016 को इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने इस साल जनवरी में इस पर अपनी रिपोर्ट दी थी। अगर यह विधेयक पास हो जाता है, तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी गैरकानूनी प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे।

इसके अलावा इन तीन देशों के सभी छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता पाने के नियम में भी छूट दी जाएगी। ऐसे सभी प्रवासी जो छह साल से भारत में रह रहे होंगे, उन्हें यहां की नागरिकता मिल सकेगी। पहले यह समय सीमा 11 साल थी।

विधेयक पर क्यों है विवाद?

इस विधेयक में गैरकानूनी प्रवासियों के लिए नागरिकता पाने का आधार उनके धर्म को बनाया गया है। इसी प्रस्ताव पर विवाद छिड़ा है। क्योंकि अगर ऐसा होता है तो यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा, जिसमें समानता के अधिकार की बात कही गई है।

कब से चर्चा में

गृह मंत्रालय ने वर्ष 2018 में अधिसूचित किया था कि सात राज्यों के कुछ जिलों के संग्राहक भारत में रहने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से सताए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार कर सकते हैं। राज्यों और केंद्र से सत्यापन रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद उन्हें नागरिकता दी जाएगी।

कौन से राज्य

गृह मंत्रालय ने छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 5 और 6 के तहत प्रवासियों को नागरिकता और प्राकृतिक प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिये कलेक्टरों को शक्तियां दी हैं। पिछले ही वर्ष गृह मंत्रालय ने नागरिकता नियम, 2009 की अनुसूची 1 में बदलाव भी किया था।

भारतीय मूल

नए नियमों के तहत भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित मामलों पर नागरिकता की मांग करते समय अपने धर्म के बारे में घोषणा करना अनिवार्य होगा:
  • भारतीय नागरिक से विवाह करने वाले किसी व्यक्ति के लिए।
  • भारतीय नागरिकों के ऐसे बच्चे जिनका जन्म विदेश में हुआ हो।
  • ऐसा व्यक्ति जिसके माता-पिता भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत हों।
  • ऐसा व्यक्ति जिसके माता-पिता में से कोई एक स्वतंत्र भारत का नागरिक रहा हो।
  • गौरतलब है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 में धर्म का कोई उल्लेख नहीं है।
  • यह अधिनियम पांच तरीकों से नागरिकता प्रदान करता है: जन्म, वंश, पंजीकरण, नैसर्गिक और देशीयकरण के आधार पर। 

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम का प्रस्ताव नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिये पारित किया गया था।
  • नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 में पड़ोसी देशों (बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान) से आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई अल्पसंख्यकों (मुस्लिम शामिल नहीं) को नागरिकता प्रदान करने की बात कही गई है, चाहे उनके पास जरूरी दस्तावेज हों या नहीं।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नैसर्गिक नागरिकता के लिये अप्रवासी को तभी आवेदन करने की अनुमति है, जब वह आवेदन करने से ठीक पहले 12 महीने से भारत में रह रहा हो और पिछले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में रहा हो।
  • नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 में इस संबंध में अधिनियम की अनुसूची 3 में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि वे 11 वर्ष की बजाय 6 वर्ष पूरे होने पर नागरिकता के पात्र हो सकें।
  • भारत के विदेशी नागरिक (Overseas Citizen of India -OCI) कार्डधारक यदि किसी भी कानून का उल्लंघन करते हैं तो उनका पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा।

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2016 से संबंधित समस्याएं

यह संशोधन पड़ोसी देशों से आने वाले मुस्लिम लोगों को ही ‘अवैध प्रवासी’ मानता है, जबकि लगभग अन्य सभी लोगों को इस परिभाषा के दायरे से बाहर कर देता है। इस प्रकार यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।

यह विधेयक किसी भी कानून का उल्लंघन करने पर OCI पंजीकरण को रद्द करने की अनुमति देता है। यह एक ऐसा व्यापक आधार है जिसमें मामूली अपराधों सहित कई प्रकार के उल्लंघन शामिल हो सकते हैं (जैसे नो पार्किंग क्षेत्र में पार्किंग)।

प्रस्तावित संशोधन

  • नियंत्रण और संशोधन: ओसीआई कार्ड के पंजीकरण को रद्द करने के लिये केंद्र सरकार को दी गई विस्तृत शक्तियों को कम करना या एक समिति या एक लोकपाल नियुक्त करके नियंत्रण और संशोधन का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
  • धर्म को आधार न माना जाए: केवल धर्म के आधार पर आप्रवासियों को निवास में 12 के स्थान पर 6 साल की छूट देने को हटाया जा सकता है क्योंकि यह धर्मनिरपेक्षता के विचार के खिलाफ है।
  • शरणार्थी: शरणार्थियों की अंतर्राष्ट्रीय समस्या को ध्यान में रखते हुए शरणार्थियों की स्थिति और वे किस स्थिति में भारत की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं, को देखना ज़रूरी है। शरणार्थी और एक आप्रवासी के बीच स्पष्ट सीमा तय करना आवश्यक है।

नागरिकता अधिनियम 1995 क्या है?

भारतीय संविधान की धारा 9 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अपने मन से किसी दूसरे देश की नागरिकता ले लेता है तो वह भारतीय नागरिक नहीं रह जाता है:
  • जनवरी 26, 1950 से लेकर दिसम्बर 10, 1992 की अवधि में विदेश में जन्मा हुआ व्यक्ति भारत का नागरिक तभी हो सकता है यदि उसका पिता उसके जन्म के समय भारत का नागरिक रहा हो।
  • जो व्यक्ति दिसंबर 3, 2004 के बाद विदेश में जन्मा हो, उसे भारत का नागरिक तभी माना जाएगा यदि जन्म के एक वर्ष के अंदर उसके जन्म का पंजीकरण किसी भारतीय वाणिज्य दूतावास (consulate) में कर लिया गया हो।
  • नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुभाग 8 के अनुसार यदि कोई वयस्क व्यक्ति घोषणा करके भारतीय नागरिकता त्याग देता है तो वह भारत का नागरिक नहीं रह जाता है।
  • मूल अधिनियम के अनुसार, अवैध आव्रजक वह व्यक्ति है जोबिना मान्य पासपोर्ट के भारत में प्रवेश करता है और वीजा की अवधि के समाप्त हो जाने पर भी इस देश में रह जाता है। इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति भी अवैध आव्रजक माना जाता है जिसने आव्रजन प्रक्रिया के लिए नकली कागजात जमा किये हों।
नागरिकता अधिनियम के अनुसार भारत की नागरिकता इन पांच विधियों से प्राप्त की जा सकती है:
  • जन्म
  • वंशानुगत क्रम
  • पंजीकरण
  • प्राकृतिक रूप से नागरिकता
  • यदि कोई व्यक्ति जिस देश में रहता है वह देश भारत में मिल जाता है तो

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