संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के उप प्रवक्ता फरहान हक से जब विधेयक के पारित होने के बारे में संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया के बारे में पूछा गया तब उन्होंने कहा कि जहां तक मुझे जानकारी है, यह कानून एक विधायी प्रक्रिया से गुजरेगा। हम इसपर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे जबतक घरेलू विधायी प्रक्रिया को अंजाम नहीं दे दिया जाता।
उन्होंने अपने अपने साप्ताहिक ब्रीफिंग के दौरान कहा कि हमारी चिंता केवल यह सुनिश्चित करने की है कि सभी सरकारें गैर-भेदभावकारी कानूनों का दुरुपयोग करें।
बता दें कि सोमवार को लोकसभा ने नागरिकता संशोधन विधेयक को 311 मतों से पारित कर दिया था जबकि इसके विपक्ष में 80 वोट पड़े थे। इसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के शरणार्थियों के लिए नागरिकता के नियमों को आसान बनाना है।
वर्तमान में किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य है। इस संशोधन के जरिए सरकार नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर छह साल करना चाहती है।
अगर यह विधेयक पास हो जाता है, तो अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी गैरकानूनी प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे। इसके अलावा इन तीन देशों के सभी छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता पाने के नियम में भी छूट दी जाएगी। ऐसे सभी प्रवासी जो छह साल से भारत में रह रहे होंगे, उन्हें यहां की नागरिकता मिल सकेगी। पहले यह समय सीमा 11 साल थी।