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मंगलवार, 10 दिसंबर 2019

शिवसेना का तंज- बेहोश व्यक्ति को प्याज सुंघाकर होश में लाया जाता है

बेहोश व्यक्ति को प्याज सुंघाकर होश में लाया जाता है
शिवसेना का कहना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में सत्ता का केंद्रीकरण देश की खराब अर्थव्यवयस्था का मुख्य कारण है। पार्टी ने कहा कि केंद्र सरकार वित्त मंत्री और भारतीय रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर को अपने नियंत्रण में चाहती है। पार्टी ने अपने मुखपत्र सामना में कहा कि फिलहाल अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र में जोरदार पतझड़ जारी है। परंतु सरकार मानने को तैयार नहीं है।

पार्टी ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर की चिंताओ का समर्थन करते हुए लिखा है कि रघुराम अर्थव्यवस्था के बेहतरीन डॉक्टर हैं और उनके द्वारा किया गया नाड़ी परीक्षण योग्य ही है। अर्थात देश की अर्थव्यवस्था को लकवा मार गया है यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है। इसलिए डॉक्टर को इलाज करने की वैसी आवश्यकता नहीं है।

प्याज को लेकर शिवसेना ने लिखा, 'प्याज की कीमत 200 रुपए किलो हो गई। इस पर ‘मैं प्याज-लहसुन नहीं खाती इसलिए प्याज के बारे में मुझे मत पूछो’, ऐसा बचकाना जवाब देनेवाली श्रीमती वित्तमंत्री इस देश को मिली हैं तथा प्रधानमंत्री को इसमें सुधार करने की इच्छा दिखाई नहीं देती। श्री मोदी जब प्रधानमंत्री नहीं थे तब प्याज की बढ़ती कीमतों पर उन्होंने चिंता व्यक्त की थी। वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि प्याज जीवनावश्यक वस्तु है। यदि ये इतना महंगा हो जाएगा तो प्याज को लॉकर्स में रखने का वक्त आ गया है। आज उनकी नीति बदल गई है।' सामना में आगे लिखा, मोदी अब प्रधानमंत्री हैं और देश की अर्थव्यवस्था धराशायी हो गई है। बेहोश व्यक्ति को प्याज सुंघाकर होश में लाया जाता है। परंतु अब बाजार से प्याज ही गायब हो गया है इसलिए यह भी संभव नहीं है।

सामना में अर्थव्यवस्था को लेकर लिखा है, 'देश की अर्थव्यवस्था का जो सर्वनाश हो रहा है उसके लिए पंडित नेहरू तथा इंदिरा गांधी को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। वर्तमान सरकार विशेषज्ञों की सुनने की मन:स्थिति में नहीं है तथा देश की अर्थव्यवस्था अर्थात उनकी नजर में शेयर बाजार का ‘सट्टा’ हो गया है। निर्मला सीतारामण देश की वित्तमंत्री हैं, परंतु अर्थनीति में उनका योगदान क्या है? ‘मैं प्याज नहीं खाती, तुम भी मत खाओ’ यह उनका ज्ञान है। शासकों को अपनी मुट्ठी में रहने वाले वित्तमंत्री, रिजर्व बैंक के गवर्नर, वित्त सचिव, नीति आयोग के अध्यक्ष चाहिए और यही अर्थव्यवस्था की बीमारी की जड़ है।'

पार्टी का कहना है कि नोटबंदी का विरोध करने वाले गवर्नर को हटा दिया गया। सामना में लिखा है, 'प्रधानमंत्री कार्यालय में अधिकारों का केंद्रीकरण और अधिकार शून्य मंत्री ऐसी स्थिति अर्थव्यवस्था के लिए घातक होने की चिंता रघुराम राजन ने व्यक्त की है, वो इसीलिए। वर्तमान सरकार में निर्णय, कल्पना, योजना इन तमाम स्तरों का केंद्रीकरण हो गया है। प्रधानमंत्री कार्यालय में कुछ ही लोग निर्णय लेते हैं। सत्ताधारी पार्टी की राजनीतिक व सामाजिक कार्यक्रमों के लिए उनके निर्णय योग्य होंगे। परंतु इसमें आर्थिक सुधार हाशिए पर डाल दिए गए यह सत्य है। नोटबंदी जैसे निर्णय लेते समय देश के उस समय के वित्तमंत्री को अंधेरे में रखा गया तथा रिजर्व बैंक के तत्कालीन गवर्नर ने विरोध किया तो उन्हें हटा दिया गया।

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