वाराणसी। गुजरात की गैंगरेप पीड़ित बिलकिस बानो को न्याय दिलाने के समर्थन में रविवार को बीएचयू गेट पर हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। यह आयोजन ज्वाइंट एक्शन कमेटी बीएचयू और दखल संगठन के नेतृत्व में हुआ। इस दौरान छात्रों और दखल संस्था के लोगों ने बीएचयू गेट से लंका रविदास चौराहे तक मार्च निकालकर पर्चे बांटे।
इस दौरान हस्ताक्षर अभियान स्थल पर हुई सभा में डॉ मुनिजा रफीक खान ने कहा कि आज जब हमारा भारत देश अपनी आज़ादी के 76वें साल का जश्न मना रहा है। मौजूदा सरकार आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रही है, करोड़ों रूपए के मीडिया कैंपेन के जरिए इसे एक बड़ा आयोजन बना रही है पर इसके विपरीत इन सब के बीच राष्ट्रीय आंदोलन और स्वतंत्रता के जिन मूल्यों के खातिर हमारे पूर्वजों ने अपनी कुर्बानी दी थी, वो नष्ट हो रहे हैं।
मैत्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि एक तरफ 15 अगस्त 2022 को लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने नारी सम्मान एवं नारी उत्थान की बात कही थी। और उसी दिन दूसरी तरफ़, गुजरात की भाजपा सरकार ने बिलकिस बानो के 11 बलात्कारियों एवं उसके अजन्मे बच्चे के हत्यारों को रिहा कर दिया। अपराधियों को प्री मेच्योर रिलीज कमिटी द्वारा रिहा किया गया, जिसमे स्थानीय भाजपा विधायक, नगरसेवक और आर एस एस के कार्यकर्ता शामिल थे। इन अपराधियों को भाजपा , आर एस एस और उसकी विचारधारा से जुड़े संगठनों द्वारा माला पहनाकर स्वागत किया गया।
प्रो आरिफ ने कहा कि बिलकिस बानो के गुनहगारों को रिहा कर दिया जाना देश की न्याय व्यवस्था पर एक बड़ा सवालिया निशान है। क्या इस देश में किसी समुदाय विशेष का होना अपराध है ? क्या किसी मुजरिम का किसी विशेष समुदाय से होने पर उसके गुनाह माफ़ हो जाता है। ऐसी घटनाए हमारी समृद्ध विरासत पर धब्बा हैं। देश में हर दिन समानता, न्याय और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को कुचला जा रहा है और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि यह सब सरकार के संरक्षण में किया जा रहा है।
गौरतलब है कि 27 फरवरी 2002 को गुजरात में साबरमती ट्रेन में आगजनी के बाद दंगे भड़क उठे थे। पूरा गुजरात साम्प्रदायिक दंगे की चपेट में आ गया था। पुलिस और अन्य सरकारी मशीनरी कुछ कर नही पा रही थी। 3 मार्च को बिलकिस के घर हथियार से लैस दंगाई घुस गए। 5 माह की गर्भवती बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। तीन साल की बच्ची का सर दिवार पर पटककर उसकी हत्या कर दी गयी। परिवार के अन्य महिला सदस्यों के साथ भी बलात्कार किया गया और 17 परिवार सदस्यों में से 7 की हत्या की गई। वहीं मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 2008 में सभी 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा हुई। लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से इसी 15 अगस्त को इन बर्बर पाशवी प्रवृत्ति के लोगों को जेल से छोड़ दिया गया।
हस्ताक्षर अभियान और मार्च में प्रमुख रुप से नीति, एकता, विजेता, वंदना, चंदा, प्रतिमा, साक्षी, आर्शिया, मृदुला मंगलम,उमाश्री, जयंत , अनुज, इंद्रजीत राज अभिषेक, रामजनम , अर्जुन, शिव, बिना, शिवांगी, शबनम, काजल, दीक्षा, प्रिया,लंका गुमटी व्यवसायी कल्याण समिति के अध्यक्ष चिंतामणि सेठ, रवि शेखर, धनञ्जय, साहिल आदि सैकड़ो की संख्या में छात्र युवा महिलाएं और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल रहे।