मध्यप्रेदश विधानसभा चुनाव 2018: तो क्या सिंहस्थ का मिथक इस बार पड़ेगा शिवराज पर भारी - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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बुधवार, 17 अक्तूबर 2018

मध्यप्रेदश विधानसभा चुनाव 2018: तो क्या सिंहस्थ का मिथक इस बार पड़ेगा शिवराज पर भारी

मध्यप्रेदश विधानसभा चुनाव 2018: तो क्या सिंहस्थ का मिथक इस बार पड़ेगा शिवराज पर भारी

प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

मध्यप्रदेश में चुनावी जंग छिड़ चुकी है। अपने प्रत्याशियों के लिए मतदाता 28 नवंबर को अपना मत देंगे। रुझानों का दौर भी जोरों पर है सभी संस्थान अपनी तरफ से आंकड़े पेश कर रहे हैं। लेकिन मध्यप्रदेश की सियासत से एक मिथक जुड़ा हुआ है। यह मिथक अगर सच होता है तो शिवराज सिंह चौहान को थोड़ा परेशान होने की जरूरत है।
मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंहस्थ बेहद अहम है, साथ ही अहम है इससे जुड़ा मिथक। राजनीतिक गलियारों में ये चर्चा अब गर्म हो गई है कि महाकाल की नगरी का यह कुंभ मौजूदा मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन सकता है। भाजपा का चौथी बार मध्यप्रदेश की राजनीति में राज करने का सपना टूट सकता है।

बता दें महाकाल की नगरी में होने वाले महाकुंभ जिसे सिंहस्थ कहा जाता है सीएम पर बहुत भारी पड़ता है। जिस सीएम के शासनकाल में सिंहस्थ हुआ, उसकी सत्ता चली जाती है। यही नहीं, उज्जैन में आयोजित होने वाले सिंहस्थ से जुड़ा ये मिथक एक नवंबर 1956 को मध्यप्रदेश के गठन के बाद से अब तक सच साबित होता आया है।

आंकड़ों पर नजर डालें तो गठन के बाद पहली बार उज्जैन में महाकुंभ तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह के वक्त हुआ 11 महीने के अंदर ही उन्हें कुर्सी त्यागनी पड़ी।

1980 के तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा ने भी सिंहस्थ के लिए खूब तैयारियां की लेकिन सिंहस्थ शुरू होने से पहले ही उनकी कुर्सी चली गई।

1990 में सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री बने उन्होंने भी सिंहस्थ का आयोजन करवाया और 1992 में सत्ता उनके हाथ से चली गई।

 2004 के सिंहस्थ के लिए दिग्विजय सिंह ने तैयारियां शुरू तो करवायीं थीं लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

इसके बाद उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं। उन्होंने सिंहस्थ का सफल आयोजन कराया, लेकिन कोर्ट के निर्णय के बाद नाटकीय ढंग से उन्हें अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी।

इन मिथकों के तथ्यों की मानें तो सिंहस्थ के सफल आयोजन के बाद से प्रदेश के सियासी गलियारों में इस मिथक को लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं और इस पर विश्वास करने वाले ये तय मानकर चल रहे हैं कि इस बार के चुनाव के बाद शिवराज सिंह की कुर्सी जानी तय है।

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