एक ऐसे समय में जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन की समस्या से दो-चार हो रही है तब South American देश चिली दुनिया के सामने अलग ही नजीर पेश कर रहा है। पिछले कुछ महीनों से चिली में नए संविधान को लिखने का काम जारी है। इसी साल जुलाई तक चिली को नया संविधान मिल जाएगा। हालांकि 40 साल पुराने संविधान को किसी और वजह से पलटने पर सहमति बनी थी, लेकिन एक अन्य कारण के चलते चिली में संविधान के पुनर्लेखन ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। ये दोनों ही कारण अपने आप में दिलचस्प हैं।
भविष्य को लेकर चिली की चिंता साफ दिखाई देती है। चिली के इस कदम से बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों को सीखे लेने की जरूरत है। एक ऐसे समय में जब इस पर गंभीर होने की जरूरत महसूस की जा रही है तब चिली पूरी दुनिया को रास्ता दिखा रहा है।
2019 में चिली की सरकार ने मेट्रो किराये में चार प्रतिशत वृद्धि का एलान किया था, लेकिन चिली वासियों को उसका फैसला रास नहीं आया। पहले से ही भारी आर्थिक असमानता का सामना कर रही चिली की जनता मेट्रो किराये में वृद्धि के चलते गुस्से से भर गई। लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। वे राजधानी सैंटियागो में जम गए। वहां की गलियों और सड़कों पर करीब दस लाख लोग इकट्ठे हो गए। धीरे-धीरे मेट्रो किराये का मुद्दा पीछे छूट गया। प्रदर्शनकारी पुराने संविधान को बदलने की मांग करने लगे। तर्क दिया गया कि चिली का संविधान पूरी तरह conservative policies पर आधारित है। इसके प्रविधानों के चलते अमीर और अमीर बन रहे हैं तथा गरीब और गरीब। लिहाजा अक्टूबर 2020 में इस मुद्दे पर जनमत संग्रह कराया गया। उसमें हिस्सा लेने वाले 78 प्रतिशत लोगों ने संविधान को बदलने के पक्ष में अपना वोट दिया।
दूसरी बात यह है कि गैर-बराबरी के चलते फिर से लिखे जाने वाले संविधान में अब पर्यावरण को भी प्राथमिकता देने की बात कही गई है। संविधान मसौदा समिति के इस दावे ने दुनिया को चौंका दिया है। दरअसल चिली एक ऐसे खनिज का धनी देश है, जिसकी मदद से कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है और उसी खनिज से जलवायु परिवर्तन के खतरे भी बढ़ सकते हैं। चिली lithium Reserve के मामले में विश्व में पहले पायदान पर है। वह दुनिया का second largest producer of lithium है। lithium की विशेषता है कि वह खुद गैर-नवीकरणीय खनिज होने के बावजूद नवीकरणीय ऊर्जा पैदा करता है। लीथियम बैटरी में व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। मौजूदा वक्त में जब दुनिया जीवाश्म ईंधन के विकल्पों की तलाश कर रही है, तब लीथियम सबसे मजबूत विकल्प के तौर पर उभर रहा है। lithium battery electric vehicles की रीढ़ है। ऐसे में प्रदूषण को कम करने के लिए इलेक्टिक वाहन परिवहन के महत्वपूर्ण साधन बन सकते हैं। बड़े-बड़े उद्योग भी ऊर्जा के साथ-सुथरे विकल्प की तलाश में हैं। चूंकि lithium का इस्तेमाल 'Green Fuel' के रूप में होता है इसलिए इसे मजबूत विकल्प समझा जा रहा है। लीथियम के इसी गुण के कारण इसका मूल्य लगातार बढ़ रहा है।
ऐसे में lithium के उत्पादन में वृद्धि होने से नवीकरणीय ऊर्जा के अधिकाधिक स्नेत तैयार होंगे और कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगेगा। चिली खुद 2040 तक ‘नेट जीरो’ कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करना चाहता है, लेकिन इसमें दिक्कत यह है कि जिस स्थान पर lithium का खनन होता है, वहां की जमीन में नमी की कमी हो जाती है। इससे आसपास के तापमान में वृद्धि हो जाती है। फिर वह क्षेत्र सूख जाता है। lithium खनन वाली जगह में भू-जल के खारा होने का भी खतरा है। यानी lithium का ज्यादा खनन मनुष्य और वनस्पति, दोनों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। इससे सीधे तौर पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का खतरा है।
चिली की जनता को डर है कि lithium की कीमत दिनोंदिन बढ़ने से सरकार इसका अधिकाधिक दोहन कर धन कमा सकती है। लोगों के इसी डर को ध्यान में रखते हुए संविधान मसौदा समिति का कहना है कि वह नए संविधान में पर्यावरण को बचाने के लिए खास प्रविधान करेगी। lithium खनन के फैसले में स्थानीय लोगों को ज्यादा शक्ति देने के प्रविधान किए जाएंगे। यानी सरकार सिर्फ अपनी मर्जी से lithium का दोहन नहीं कर सकेगी। हो सकता है कि संविधान में खनन पर भारी रायल्टी और प्रतिबंध के प्रविधान भी शामिल किए जाएं।
शायद ही अब तक किसी देश ने संविधान में पर्यावरणीय समस्याओं को तरजीह देने और उस पर गंभीर होने की कोशिश की हो। जिस पुस्तिका में आमतौर पर राजनीति करने के तौर-तरीकों का बखान होता है, उसमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर गंभीर लेखन वाकई दुनिया को हैरान करने वाला है। मौजूदा वक्त में जलवायु परिवर्तन के खतरे से कोई इन्कार नहीं कर सकता। हाल में ग्लासगो में दुनिया भर के देश इसी चिंता को लेकर जमा हुए थे। आर्थिक विकास हर देश की जरूरत है। इसी मोह में दुनिया के विकसित देश कार्बन उत्सर्जन के खतरे को अभी तक नजरअंदाज कर रहे हैं। चिली चाहे तो lithium का मनचाहा दोहन कर धन अर्जित कर सकता है, लेकिन इस मामले में उसने पर्यावरण को चुना है। इससे भविष्य को लेकर चिली की चिंता साफ दिखाई देती है। चिली के इस कदम से बड़े carbon emitter देशों को सीखे लेने की जरूरत है। एक ऐसे समय में जब इस पर गंभीर होने की जरूरत महसूस की जा रही है, तब चिली पूरी दुनिया को रास्ता दिखा रहा है।