छत्तीसगढ़ चुनाव 2018: जोगी-माया फैक्टर बदल सकता है चुनावी समीकरण

पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 49 सीटों पर कब्जा किया था जबकि कांग्रेस 39 पर ही सिमट कर रह गई थी। अनसूचित जाति के लिए आरक्षित इन सीटों में से कई पर जोगी और मायावती का गठबंधन भाजपा को कड़ी टक्कर देता दिख रहा है। कई सीटों पर भाजपा फिर से बाजी मार सकती है।
प्रदेश में 15 साल से भाजपा की सरकार है और इन 10 सीटों पर राज्य और देश के कई मुद्दे असर डाल सकते हैं। जांजगीर-चांपा जिले के पामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में उज्जवला योजना के कई लाभार्थी मिल जाएंगे। इनमें से एक ने बताया कि उन्हें सरकार की ओर से घरेलू गैस तो मिला है मगर अब वह इसकी बढ़ती कीमतों से परेशान हैं।
देशभर में एससी-एसटी एक्ट पर मचे बवाल से प्रदेश अछूता नहीं है। बेरोजगारी इन चुनावों में बड़ा मुद्दा है। भाजपा सरकार ने धान पर 300 रूपए का बोनस दिया है मगर किसान अब भी मौजूदा सरकार से नाराज हैं। उनका कहना है कि सरकार ने 2013 में किए वादे नहीं पूरे किये।
गौरतलब है कि बसपा 2003 के चुनाव में इन 10 सीटों में से दो पर और 2008 में तीन सीटों पर जीत पाई थी। साथ ही कई सीटों पर इसने कड़ी टक्कर दी थी। कई लोग छत्तीसगढ़ जनता और बहुजन समाज पार्टी को भाजपा के विकल्प के रूप में देख रहें हैं। जोगी हमेशा से ही सतनामी (एससी का एक समुदाय) लोगों का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं, अब बसपा के साथ जाने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
अगले कुछ दिनों में तस्वीर और साफ हो जाएगी। सरकार और मौजूदा विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के बावजूद भाजपा ने एससी-एसटी आरक्षित इन 10 सीटों में से एक पर बदलाव करके 9 प्रत्याशियों के नाम घोषित किये हैं। सरायपाली में उम्मीदवार की घोषणा होना बाकी है।
फरवरी में जोगी ने मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ राजनांदगांव से चुनाव लड़ने की बात कही थी। मगर पिछले दिनों उन्होंने कहा कि वह राजनांदगांव से नहीं लड़ेंगे और अपने गठबंधन के उम्मीदवारों का प्रदेश भर में प्रचार करेंगे। कांग्रेस ने इस सीट पर अचानक हुए बदलाव पर कहा की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ और बहुजन समाजवादी पार्टी के गठबंधन को वोट देना भाजपा को वोट देने के बराबर है।