अस्पताल में आरक्षण : केजरीवाल सरकार की योजना पर हाई कोर्ट का आदेश आज
कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा कि आप ऐसा फैसला कैसे लागू कर सकते हैं? स्वास्थ्य सेवाएं तो सबके लिए एक समान होनी चाहिए.
नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट शुक्रवार को दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार की अस्पताल में आरक्षण योजना पर आदेश देगा. इस मामले पर सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट में जब सुनवाई हुई तो कोर्ट ने दिल्ली सरकार से पूछा कि 'आप ऐसा फैसला कैसे लागू कर सकते हैं? स्वास्थ्य सेवाएं तो सबके लिए एक समान होनी चाहिए.'
दिल्ली सरकार ने कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था तो कोर्ट का कहना था कि आपके जवाब को संविधान के आर्टिकल 14 यानी समानता का अधिकार और आर्टिकल 21 यानी जीने का अधिकार के आधार पर परखेंगे और फैसला देंगे.
क्या है केजरीवाल सरकार का पक्ष
दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने कोर्ट में इस फैसले के पीछे के कारण रखे और कहा दिल्ली की आबादी 1.9 करोड़ है और ये बहुत तेज़ी से बढ़ रही है. 2016 से लगातार शिकायत आ रही है कि डॉक्टरों के साथ मारपीट हो रही हैं क्योंकि बहुत भीड़ होती है. कोर्ट ने भी डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए कई बार कहा. ऐसा नहीं है कि सारे टेस्ट बाहर वालों के लिए बंद हो गए, बहुत से टेस्ट हो रहे हैं. 93 स्टैण्डर्ड टेस्ट और 10 स्पेशल टेस्ट हो रहे हैं. इलाज के लिए किसी मरीज को मना नहीं कर रहे न भेदभाव हो रहा है. सभी इमरजेंसी केस लिए जा रहे हैं.20% बेड बाहर वालों के लिए रिज़र्व हैं. अब तक कोई एक शिकायत भी नहीं आई है. दूसरी राज्य सरकारें भी स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करें कब तक दिल्ली सबका बोझ उठाएगी? हम केंद्र सरकार नहीं हैं. हर राज्य की अपनी सीमाएं हैं. हमारे सरकारी अस्पताल भी प्राइवेट जैसे लगने चाहिए.AIIMS मुफ्त इलाज क्यों नहीं देता? वो भी पैसे लेता है. कह देना आसान है लेकिन अच्छी स्वास्थ्य सेवा देने में मेहनत लगती है. कोर्ट देखे कि हम कितना बढ़िया काम कर रहे हैं. किसी को इलाज को मना नहीं कर रहे, बस प्राथमिकता तय कर रहे हैं.
क्या है योजना?
दरअसल एक अक्टूबर से दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने उत्तर पूर्वी दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में दिल्ली वालों के लिए आरक्षण लागू कर दिया है. पायलट योजना के तहत इस अस्पताल में 80 फीसदी ओपीडी और बेड केवल दिल्ली वालों के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं. यही नहीं अस्पताल में मुफ्त दवाएं और मुफ्त टेस्ट भी केवल दिल्ली वालों के ही होंगे. दिल्ली से बाहर के मरीजों के लिए केवल कंसलटेंसी और इमरजेंसी सेवाएं रखी गई हैं.
क्या है आपत्ति?
जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता और मशहूर वकील अशोक अग्रवाल ने दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर करके इस योजना पर रोक लगाने की मांग की है. अशोक अग्रवाल के मुताबिक यह आदेश मनमाना है, अमानवीय है और लोगों को स्वास्थ्य सेवा के मौलिक अधिकार से वंचित करता है. पूरे देश में कहीं पर भी इस तरह का भेदभाव अस्पताल मरीज के साथ नहीं करता है. इसपर रोक लगनी चाहिए.
क्या है इस योजना के बाद के हालात?
एक अक्टूबर से लागू हुई इस योजना के बाद उत्तर पूर्वी दिल्ली के गुरु तेग बहादुर अस्पताल में मरीजों की संख्या बेहद कम हो गई है. अस्पताल के मुताबिक लगभग 50 फ़ीसदी मरीजों का लोड अब कम हो गया है. पहले जहां आठ से नौ हजार ओपीडी रोजाना हुआ करती थी अब वह घटकर लगभग पांच हज़ार पर आ गई है और इन पांच हज़ार में से तीन हज़ार लोग दिल्ली के हैं जबकि दो लोग दिल्ली से बाहर के.
गुरु तेग बहादुर अस्पताल से लगभग 500 मीटर की दूरी पर बने पूर्वी दिल्ली नगर निगम के स्वामी दयानंद अस्पताल में मरीजों का लोड बढ़ गया है. अस्पताल के मुताबिक पहले जहां दो हजार ओपीडी रोजाना हुआ करती थीं अब लगभग तीन हज़ार ओपीडी रोजाना हो रही हैं. अस्पताल का यह भी कहना है कि मरीजों के इस बड़े लोड को संभालने में वह सक्षम नहीं है. Click Here -Get Affordable Services of Ash Handling System with India's Best Company
परेशान हैं मरीज़
गुरु तेग बहादुर अस्पताल उत्तर-पूर्वी दिल्ली में दिल्ली-यूपी बॉर्डर के पास है इसलिए यहां पर गाजियाबाद और बागपत जिले के मरीज काफी संख्या में आते हैं लेकिन जब से उनको मुफ्त दवा मुफ्त टेस्ट के लिए मना किया जा रहा है और बेड भी केवल 20% ही इनके लिए रखे गए हैं तब से मरीज और उनके तीमारदार नाराज हैं. उनका कहना है कि केजरीवाल सरकार का यह फैसला गलत है अगर उत्तर प्रदेश भी दिल्ली को सप्लाई होने वाला पानी बिजली और सब्जी अनाज आदि रोक दें तो दिल्ली का क्या होगा?