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बुधवार, 17 अक्टूबर 2018

क्या है NOTA और क्यों पड़ी चुनाव में इसकी जरूरत?

क्या है NOTA और क्यों पड़ी चुनाव में इसकी जरूरत?

voting file photo
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मतदान की लंबी कतारों में खड़े होकर अगर आप ये तय नहीं कर पा रहे कि इनमें से कोई भी उम्मीदवार आपकी नजर में सही है या नहीं, तो ये बेशक जनता के भीतर छिपे आक्रोश और निराशा का ही प्रतीक है। 2009 में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने संबंधी अपनी मंशा से अवगत कराया था।
2013 में सुप्रीम कोर्ट के दिये गए एक आदेश के बाद चुनावों में नोटा का प्रयोग शुरू हुआ। भारत सरकार बनाम पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ मामले में शीर्ष न्यायालय ने आदेश दिया कि जनता को मतदान के लिये नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराया जाए। नोटा के तहत ईवीएम मशीन में नोटा का गुलाबी बटन होता है।

अगर मतदाता को किसी दल का उम्मीदवार ग़लत लगते हैं तो वो नोटा का बटन दबाकर जनता अपना विरोध दर्ज करा सकती है। नोटा का मतलब NONE OF THE ABOVE होता है।इस आदेश के बाद भारत नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने वाला विश्व का 14वां देश बन गया। हालांकि बाद में चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि नोटा के मत गिने तो जाएंगे पर इसे रद्द मतों की श्रेणी में रखा जाएगा। इस तरह से साफ ही था कि नोटा का चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।

नोटा के लागू होने के बाद एक लोक सभा चुनाव और कई राज्यों में विधान सभा चुनाव हो चुके हैं लेकिन फिर भी नोटा के तहत किये गए मतदान का प्रतिशत 2-3 ही है। इसकी असल वजह मतदाताओं में जागरूकता की कमी है। नोटा के अंतर्गत मतदान का प्रतिशत उन जगहों में ज्यादा देखने को मिला है, जो इलाके नक्सलवाद से प्रभावित हैं या फिर आरक्षित चुनाव क्षेत्र हैं।

कहने का मतलब ये है कि चुनाव क्षेत्रों को आरक्षित करने के सन्दर्भ में अभी भी सामाजिक सहभागिता की कमी है और नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में राजनैतिक दलों को लेकर अभी भी उतनी दिलचस्पी नहीं पैदा हुई है। आपको बता दें कि भारत, ग्रीस, युक्रेन, स्पेन, कोलंबिया और रूस समेत कई देशों में नोटा का विकल्प लागू है।

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