जींद उपचुनाव: Congress-BJP के लिए 'करो या मरो' की स्थिति, चौंकाने वाले होंगे नतीजे
BJP- Congress
28 जनवरी को होने वाले जींद विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस-भाजपा के लिए 'करो या मरो' की स्थिति बन गई है। खुद मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर यह बात कह चुके हैं कि जींद उपचुनाव आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए एक इंडिकेटर होगा। भाजपा के लिए जींद उपचुनाव जीतना आवश्यक है।
दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी है, जिसमें पार्टी से ज्यादा कई नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। तीसरा, चौटाला परिवार से अलग होकर अपनी नई पार्टी खड़ी करने वाले अजय चौटाला हैं। इन्होंने भी चुनाव जीतने के लिए पूरा जोर लगा रखा है। चूंकि पार्टी के गठन के बाद इनका यह पहला चुनाव है। नतीजा जो भी रहे, मगर उसका आगे के लिए कोई संदेश जाना तय है।
जींद के दंगल में अपना-पराया, भूत-भविष्य सब है
अमूमन किसी चुनाव में एक साथ इतने मुद्दे काम कर रहे हों, ऐसा कम ही देखने को मिलता है। जींद के दंगल में यह सब मौजूद है। कोई पार्टी विकास और नौकरियों में पारदर्शिता की बात करती है तो दूसरा राजनीतिक दल उसे केवल नकारने में ही लगा है। अपना-पराया भी खूब चल रहा है। भाजपाई कहते हैं कि हम तो यहीं के हैं। चूंकि उनका उम्मीदवार स्थानीय है।
यह अलग बात है कि भाजपा प्रत्याशी कृष्ण मिड्ढा के पिता डॉ. हरीचंद मिड्ढा इनेलो से लगातार दो बार विधायक चुने गए थे। उनके निधन के कारण ही यह उपचुनाव हो रहा है। कृष्ण मिड्ढा अब भाजपाई बन चुके हैं। चुनाव प्रचार में उनका अपना-पराया खूब चल रहा है।
कांग्रेस प्रत्याशी रणदीप सुरजेवाला जो कि कैथल से मौजूदा विधायक हैं, वे जींद का उपचुनाव लड़ने आए हैं। दिग्विजय चौटाला भी सिरसा से ताल्लुक रखते हैं। चुनाव प्रचार में लोगों से ही पूछा जा रहा है कि आप बताओ, ये अपने क्षेत्र छोड़कर यहां चुनाव लड़ने क्यों चले आए।
भाजपा के बागी लोकसभा सांसद राजकुमार सैनी की पार्टी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के प्रत्याशी विनोद आश्री भी जीत का दावा करने वालों की नींद हराम किए हैं। इनेलो, जिसके विधायक की मौत के बाद यह उपचुनाव हो रहा है, उसे कोई दौड़ में ही नहीं मान रहा।
भाजपा और कांग्रेस को छोड़ दें तो बाकी तीनों दलों का भविष्य इस चुनाव में दांव पर लगा है। अंदर की बात करें तो सभी पार्टियां अपनी जीत के लिए जातिगत समीकरण पर सबसे अधिक ध्यान दे रही हैं।
जींद के दंगल में यह है जाति का खेल
यहां कुल 1.7 लाख वोटर(करीब 90 हजार पुरुष और 80 हजार महिला) हैं। हरियाणा बनने के बाद केवल एक बार सत्तर के दशक में यहां से जाट उम्मीदवार विजयी हुआ था। पंजाबी और वैश्य समुदाय के प्रत्याशी ही यहां से जीत दर्ज कराते आए हैं। अभी तक देखने में आया है कि ग्रामीण मतदाता अपना मन पहले से ही बनाकर चलते हैं। जीत की दहलीज तक पहुंचने के लिए प्रत्याशियों को शहरी वोटरों के दरवाजे पर जाना पड़ता है।
जाट: 45 हजार
ब्राह्मण: 15 हजार
पंजाबी: 14 हजार
वैश्य: 12 हजार
बीसी: 40 हजार
एससी: 35 हजार
पार्टी उम्मीदवार जाति
कांग्रेस रणदीप सुरजेवाला जाट
भाजपा कृष्ण मिड्ढा पंजाबी
जजपा दिग्विजय सिंह जाट
इनेलो उमेद रेढू जाट
एलएसपी विनोद आश्री ब्राह्मण