खास बातें
- राहुल गांधी ने किया है न्यूनतम आमदनी की गारंटी का दावा
- 1971 में इंदिरा गांधी ने दिया था गरीबी हटाओ का नारा
- कांग्रेस को तब 518 में से 352 सीटों पर जीत मिली थी
- विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं
- आम चुनाव में देखना होगा, क्या कमाल कर पाते हैं राहुल
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सोमवार को छत्तीसगढ़ में एक जनसभा में दावा किया है कि कांग्रेस पार्टी आगामी चुनाव में जीती तो देश के हर गरीब को न्यूनतम आमदनी देगी। राहुल गांधी ने ये घोषणा करते हुए कहा कि इस योजना के लागू होने के बाद देश में कोई भी गरीब व्यक्ति भूखा नहीं सोएगा। राहुल गांधी का यह नारा उनकी दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के 'गरीबी हटाओ' नारे की याद दिला रहा है।
अब सवाल यह है कि 1971 में इंदिरा गांधी के लिए गरीबी हटाओ का नारा जो जादू कर गया था, क्या वह जादू राहुल का यह दावा दिखा पाएगा! उनके इस दावे को कांग्रेस के मेनिफेस्टो में कैसी जगह मिलेगी, कांग्रेस लोगों का कितना विश्वास हासिल कर पाएगी, ऐसे कई सवालों के जवाब आनेवाले वक्त के गर्भ में है।
फिलहाल राजनीतिक गलियारे में भाजपा समेत एनडीए के घटक दल राहुल गांधी के इस दावे को चुनावी शिगूफा बता रहे हैं, तो वहीं राहुल गांधी के इस नारे को अपने ट्विटर एकाउंट पर विस्तार से समझाते हुए पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम यूनिवर्सल बेसिक इनकम का सिद्धांत बता रहे हैं।
इंदिरा गांधी के समय देश में अलग राजनीतिक माहौल था। कांग्रेस के विरोध में भाजपानीत एनडीए जैसी मजबूत पार्टी नहीं थी। आज यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के समय देश का राजनीतिक माहौल बहुत अलग है। आज एनडीए जैसी मजबूत पार्टी सत्ता में है, जिसे कुर्सी से बेदखल करना कांग्रेस के लिए कड़ी चुनौती है।
ऐसा नारा पहली बार नहीं दिया गया है
इंदिरा गांधी के 'गरीबी हटाओ' नारे से राहुल गांधी के दावों की तुलना करने से पहले यह जानना जरुरी है कि राहुल गांधी हों, मोदी सरकार हो या फिर 1971 की इंदिरा सरकार, गरीबी हटाने की बात कोई पहली या नई नहीं है।
बताया जाता है कि साल 1867-68 में सबसे पहले दादा भाई नौरेजी ने गरीबी खत्म करने का प्रस्ताव पेश किया था। सुभाष चंद्र बोस ने भी साल 1938 में इसकी पहल की थी। 1947 में जब देश आजाद हुआ तो हर तीन में से दो व्यक्ति गरीब थे। आज कहा जाता है कि हर तीन में से एक व्यक्ति गरीब है। हालांकि ये आंकड़े सरकारी हैं।
विश्व बैंक की रिपोर्ट: गरीबी हटाने के प्रयास पर्याप्त नहीं
गरीबी हटाने को लेकर प्रयास तो लगातार जारी रहे, लेकिन सवाल यह है कि गरीबी खत्म क्यों नहीं हो रही? विशेषज्ञ सवाल उठाते हैं कि गरीबी हटाने को लेकर सरकार की कभी ईमानदार कोशिश नहीं रही है। विधायिका को लगता है कि गरीबी हटा दी गई, तो चुनाव का एक बड़ा मुद्दा खत्म हो जाएगा और कार्यपालिका को लगता है कि फिर योजनाएं कैसे चलेंगी, कमाई कैसे होगी, सिस्टम कैसे चलेगा।
साल 2011 में विश्व बैंक की एक रिपोर्ट आई थी कि गरीबी से लड़ने के लिए भारत सरकार के प्रयास पर्याप्त नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, भ्रष्टाचार और प्रभावहीन प्रबंधन इसमें बड़ी बाधा है। इन्हीं कारणों से गरीबों के लिए बनी सरकारी योजनाएं सफल नहीं हो पाईं हैं।
रिपेार्टों के अनुसार गरीबी के कारण मुख्यत: ये रहे हैं
1- राष्ट्रीय उत्पाद का निम्न स्तर
2- विकास की कम दर
3- महंगाई, कीमतों में वृद्धि
4- जनसंख्या का दबाव
5- बेरोजगारी
6- पूंजी की कमी
7- कुशल श्रम और तकनीकी ज्ञान की कमी
8- उचित औद्योगीकरण का अभाव
9- सामाजिक संस्थाएं
10- भूमि और सम्पत्ति का असमान वितरण
इंदिरा गांधी के 'गरीबी हटाओ' नारा का दिखा था शानदार जादू
इंदिरा गांधी कड़े फैसलों को लेकर जितनी चर्चा में रहीं, उससे ज्यादा लोकप्रिय बनाया उन्हें 'गरीबी हटाओ' के नारे ने। उनके इस नारे पर मौजूदा एनडीए सरकार समेत कई राजनीतिक पार्टियां चुटकी लेती रहीं। इंदिरा गांधी ने 1971 के चुनाव में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा दिया था। कहा जाता है कि उन्होंने इस नारे को चुनाव में खूब भुनाया।
'‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ, हम कहते हैं गरीबी हटाओ’' यही वह लाइन थी, जिसके जरिए चुनाव प्रचार में उन्होंने लोगों की हमदर्दी बटोरी। वहीं, विरोधियों ने गरीबी हटाओ के जवाब में नारा दिया, ‘देखो इंदिरा का ये खेल, खा गई राशन, पी गई तेल’। हालांकि विरोधी पार्टियों के जवाबी नारे पर इंदिरा का गरीब हटाओ का नारा भारी पड़ा।
पांचवीं लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो कांग्रेस ने देश में दो तिहाई सीटें हासिल कर ली। कांग्रेस को तब 518 में से 352 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस केे लिए यह ऐतिहासिक जीत थी।
चुनाव के बाद कुछ हद तक इंदिरा ने किए थे सुधार
इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के चार साल बाद 1975 में एक 20 सूत्रीय कार्यक्रम पेश किया, जिसका लक्ष्य गरीबी पर हमला था। जानकार बताते हैं कि 1971 में गरीबी की दर 57 प्रतिशत थी। इंदिरा ने गरीबी हटाओ का नारा देकर कई योजनाएं शुरू की।
1973 में श्रीमान कृषक एवं खेतिहर मजदूर एजेंसी व लघु कृषक विकास एजेंसी तथा 1975 में गरीबी उन्मूलन के लिए 20 सूत्रीय कार्यक्रम लागू किए। ये गांव के लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने और गरीबी घटाने के लिए प्रभावशाली साबित हुए।
1977 में गरीबी दर 52 प्रतिशत और 1983 में 44 प्रतिशत हो गई। इसके बाद यह 1987 में 38.9 फीसदी तक आ गई। मौजूदा समय में गरीबी की दर लगभग 27.5 फीसदी जरूर है, लेकिन गरीब नहीं घटे।
मौजूदा सरकार ने भी किया अच्छा प्रयास लेकिन चुनौती बरकरार
अमेरिकी शोध संस्था ब्रूकिंग्स की रिपोर्ट-फ्यूचर डेवलपमेंट के अनुसार मोदी सरकार में हर मिनट 44 लोग गरीबी रेखा से उपर निकल रहे हैं। ब्रूकिंग्स की इस रिपोर्ट के अनुसार 2022 तक 3 फीसदी से भी कम लोग गरीब रह जाएंगे, जबकि 2030 तक गरीबी रेखा से नीचे न के बराबर लोग बचेंगे।
इन रिपोर्टों से इतर नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी के प्रोफेसर एनआर भानुमूर्ति के अनुसार 2030 तक गरीबी खत्म करने के लिए भारत की विकास दर 7-8 फीसदी बनाए रखनी होगी। भानुमूर्ति साल 1991 में हुए आर्थिक सुधारों के प्रयासों की भी सराहना की है।
आम चुनाव और रिजल्ट का करना होगा इंतजार
आज जबकि राहुल गांधी ने न्यूनतम आमदनी सुनिश्चित करने की बात कही है, तो पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम ने इसे पिछले दो साल से चल रहा प्रयास बताया है। पी चिदंबरम ने अपने ट्विटर एकाउंट पर लिखा कि साल 2004 से 2014 के बीच 14 करोड़ लोगों को गरीबी से मुक्त किया गया।
उन्होंने लिखा कि पिछले 2 साल से यूनिवर्सल बेसिक इनकम(यूबीआई) के सिद्धांत पर काम हो रहा है। अब समय आ गया है कि इसे लागू किया जाए। हालांकि उनका यह समय आने में कितनी देर होगी और राहुल गांधी का दावा कितना सही साबित हो पाएगा, इसका जवाब आम चुनाव के रिजल्ट के बाद पता चल पाएगा।