Lok Sabha चुनाव 2019: क्या Banarash में PM Modi के खिलाफ ताल ठोकेंगी Priyanka?

सबसे बड़े स्टार चेहरे को चुनाव मैदान में घेर दीजिए तो बाजी पलटने की उम्मीद बढ़ जाती है। प्रचार की एक तकनीक यह भी है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस रणनीति का बखूबी इस्तेमाल किया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ स्मृति ईरानी चुनाव मैदान में थी। इसी तरह की रणनीति को केन्द्र में रखकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद बनारस को चुने थे। चुनाव विश्लेषकों का मानना है कि इससे पूरे उ.प्र. में प्रधानमंत्री मोदी की लहर चल गई और भाजपा 80 में से 71 सीटें जीतने में सफल रही।
इतना ही नहीं इसका असर उ.प्र. से सटे हर राज्य में देखा गया। कांग्रेस के पास इस समय समय सबसे बड़ा स्टार प्रचारक चेहरा पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का है। वाड्रा की लोकप्रियता है और वह प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर सकती हैं। बनारस के पूर्व सांसद राजेश मिश्रा पास की सलेमपुर सीट से मैदान में हैं। राबर्ट वाड्रा पहले ही प्रियंका के लडऩे का संकेत दे चुके हैं।
वरिष्ठ कांग्रेसी रणनीतिकारों का कहना है कि प्रियंका भी बार-बार अपनी बात ऐसे ही नहीं दोहरा रही हैं। इसके पीछे कोई तो वजह होगी? माना जा रहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष भी इससे करीब-करीब सहमत हैं, लेकिन वह बनारस में प्रियंका को विपक्ष के इकलौते उम्मीदवार के रूप में ही उतारने के पक्ष में हैं। यानी इसके लिए सपा-बसपा को भी प्रियंका का समर्थन करने की उम्मीद की जा रही है।
प्रियंका लड़ी तो प्रधानमंत्री को आ सकता है पसीना?
सवाल थोड़ा अटपटा है, लेकिन प्रधानमंत्री अपनी सीट जीतने में पसीना आ सकता है। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री 03 लाख 77 हजार वोट से जीते थे। प्रधानमंत्री को 05 लाख 81 हजार 022 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर आम आदमी पार्टी के केजरीवाल थे। केजरीवाल को दो लाख 09 हजार वोट मिले थे। तीसरे नंबर पर कांग्रेस पार्टी के अजय राय 75, 615 तो समाजवादी और बसपा के प्रत्याशी को 45,291 और 60,579 मत मिले थे।
लेकिन यह स्थिति तब थी जब उ.प्र. में मोदी लहर चल रही थी। दूसरे 2014 में विपक्ष बिखरा था। कांग्रेस, सपा, बसपा ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। आम आदमी पार्टी के संयोजक भी चुनाव मैदान में थे। इसलिए प्रियंका के मैदान में उतरने पर प्रधानमंत्री के लिए चुनाव जीतना और भारी अंतर से जीतना परेशानी भरा हो सकता है।
बनारस का जातिगत गणित
बनारस में तीन लाख के करीब अल्पसंख्यक मतदाता हैं। ब्राह्मण मतदाता भी 2.75 लाख से अधिक हैं। बनिया की भी तादाद 2.5लाख से ज्यादा है। 1.90 लाख के करीब पटेल वोट हैं। इसे ध्यान में रखकर ही भाजपा ने अपना दल(सोने लाल-अनुप्रिया पटेल की पार्टी) से समझौता बनाए रखा है। निषाद पार्टी भी इसमें भाजपा की मददगार होगी। इसके बाद सबसे बड़ी आबादी दूध के कारोबार से लेकर अन्य में लगे यादव मतदाताओं की है। यादव 1.6 लाख के करीब है। बनारस में भूमिहार 1.20 लाख तो राजपूत भी एक लाख के करीब हैं। 75 हजार के करीब चौरसिया, 85 हजार के करीब दलित और 70 हजार अन्य पिछड़ी जातियां हैं।
प्रियंका के मैदान में आने पर
बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर को लेकर ब्रह्मणों का एक बड़ा वर्ग क्षुब्ध है। प्रमोद विनायक, दुर्मुख विनायक जैसे प्रचानी गणेश जी मंदिर इस क्रम में तोड़े गए और शिवलिंग भी नष्ट हुए। इसका असर व्यापारियों पर भी पड़ा है। माना जा रहा है कि प्रियंका के बनारस से चुनाव लडऩे पर सवर्ण मतों में बड़ा बंटवारा हो सकता है। ब्राह्मण, भूमिहार, राजपूत मतों में कांग्रेस सेंधमारी कर सकती है। अल्पसंख्यक के भी प्रियंका के साथ खड़ा होने की उम्मीद है। यादव, दलित पिछड़े वर्ग के अन्य वोटों में भी सेंध लगाकर प्रियंका गांधी प्रधानमंत्री मोदी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती हैं। वैसे भी बनारस में सबसे अंत में 19 मई को मतदान होना है।
19 मई को जिन सीटों पर मतदान होना है उनमें बनारस के साथ साथ उ.प्र. की महराजगंज, गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया,बांसगांव, घोसी, सलेमपुर, बलिया, गाजीपुर, चंदौली, मिर्जापुर और राबट्र्सगंज शामिल है। जबकि इससे पहले 12 मई को होने वाले मतदान में जौनपुर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फूलपुर, प्रयागराज, अंबेडकरनगर, श्रावस्ती, डुमरियागंज, बस्ती, संतकबीरनगर, लालगंज, आजमगढ़, मछलीशहर और भदोही शामिल हैं। इस तरह से उ.प्र. के दोनों चरणों की 27 सीटों पर होने वाला मतदान सपा, बसपा के लिए अहम है। यहां से प्रधानमंत्री की सीट को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना देना विपक्ष के लिए फायदे का सौदा संभव है।