‘कोई भी अपारदर्शिता के पक्ष में नहीं, लेकिन इसके Name पर न्यायपालिका(Judiciary) को नष्ट नहीं किया जा सकता’

ये अपीलें उच्च न्यायालय और सीआईसी के आदेशों के खिलाफ दायर की गई थी। पीठ में न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल हैं।
न्यायालय ने कहा, ‘‘कोई भी व्यक्ति अपारदर्शी व्यवस्था के पक्ष में नहीं है। कोई भी व्यक्ति अंधेरे में नहीं रहना चाहता, ना ही किसी को अंधेरे में रखना चाहता है। सवाल एक रेखा खींचने का है। पारदर्शिता के नाम पर आप संस्था को नष्ट नहीं कर सकते हैं।’’
भूषण ने आरटीआई कानून के तहत न्यायपालिका के सूचना देने को लेकर अनिच्छुक होने को दुर्भाग्यपूर्ण और परेशान करने वाला बताते हुए कहा, ‘‘क्या न्यायाधीश अलग ब्रह्मांड के निवासी हैं?’’
उन्होंने कहा कि शीर्ष न्यायालय राज्य (शासन) के अन्य अंगों के कामकाज में हमेशा ही पारदर्शिता के लिए खड़ा होता है लेकिन जब उसके खुद के मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत होती है तो उसके कदम ठिठक जाते हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘लोगों को यह जानने का हक है कि सार्वजनिक प्राधिकार क्या कर रहे हैं।’’ पीठ ने कहा कि लोग न्यायाधीश बनना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें नकारात्मक प्रचार का डर है।