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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

‘कोई भी अपारदर्शिता के पक्ष में नहीं, लेकिन इसके Name पर न्यायपालिका(Judiciary) को नष्ट नहीं किया जा सकता’

‘कोई भी अपारदर्शिता के पक्ष में नहीं, लेकिन इसके Name पर न्यायपालिका(Judiciary) को नष्ट नहीं किया जा सकता’


Supreme Court
Supreme Court
उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि कोई भी व्यक्ति अपारदर्शी व्यवस्था नहीं चाहता है लेकिन पारदर्शिता के नाम पर न्यायपालिका को नष्ट नहीं किया जा सकता। शीर्ष न्यायालय ने सीजेआई का पद आरटीआई अधिनियम के तहत आने के दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ अपनी रजिस्ट्री की अपीलों पर सुनवाई करते हुए यह कहा। अधिवक्ता प्रशांत भूषण और अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल के अपनी दलीलें पूरी करने के बाद प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने उच्चतम न्यायालय के सेक्रेट्री जनरल और शीर्ष न्यायालय के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी द्वारा 2010 में दायर तीन अपीलों पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। 

ये अपीलें उच्च न्यायालय और सीआईसी के आदेशों के खिलाफ दायर की गई थी। पीठ में न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना भी शामिल हैं। 

न्यायालय ने कहा, ‘‘कोई भी व्यक्ति अपारदर्शी व्यवस्था के पक्ष में नहीं है। कोई भी व्यक्ति अंधेरे में नहीं रहना चाहता, ना ही किसी को अंधेरे में रखना चाहता है। सवाल एक रेखा खींचने का है। पारदर्शिता के नाम पर आप संस्था को नष्ट नहीं कर सकते हैं।’’ 

भूषण ने आरटीआई कानून के तहत न्यायपालिका के सूचना देने को लेकर अनिच्छुक होने को दुर्भाग्यपूर्ण और परेशान करने वाला बताते हुए कहा, ‘‘क्या न्यायाधीश अलग ब्रह्मांड के निवासी हैं?’’ 

उन्होंने कहा कि शीर्ष न्यायालय राज्य (शासन) के अन्य अंगों के कामकाज में हमेशा ही पारदर्शिता के लिए खड़ा होता है लेकिन जब उसके खुद के मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत होती है तो उसके कदम ठिठक जाते हैं। 

उन्होंने कहा, ‘‘लोगों को यह जानने का हक है कि सार्वजनिक प्राधिकार क्या कर रहे हैं।’’ पीठ ने कहा कि लोग न्यायाधीश बनना नहीं चाहते क्योंकि उन्हें नकारात्मक प्रचार का डर है। 



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