गुस्सा आने पर क्या करते हैं PM Modi, किया खुलासा
Narendra Modi Akshay Kumar
लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने अभिनेता अक्षय कुमार को दिए गैर राजनैतिक साक्षात्कार में कई खुलासे किए। प्रधानमंत्री मोदी से अक्षय कुमार ने सवाल किया कि क्या हमारे पीएम को गुस्सा आता है और अगर आता है तो आप कैसे गुस्सा निकालते हैं? प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अगर मैं कहूं कि मुझे गुस्सा नहीं आता तो यह कई लोगों के लिए सरप्राइज होगा। राजी-नाराजी-गुस्सा ये मनुष्य के स्वभाव के हिस्से हैं। जिंदगी इसके बिना हो नहीं सकती। हर प्रकार की चीजें हर एक के साथ होती हैं। लेकिन, जो मेरी 18-22 साल की जिंदगी का बड़ा तबका था वहां जो मेरी ट्रेनिंग हुई उसमें ये सब बाते थीं। ईश्वर ने सब दिया है अब आपको तय करना है कि जो अच्छी चीजे हैं उसे बल देते हुए कैसे आगे बढ़ना है।
उन्होंने कहा कि मैं इतने समय तक मुख्यमंत्री रहा, इतने समय तक प्रधानमंत्री रहा लेकिन मुझे चपरासी से लेकर प्रिंसिपल सेकरेट्री तक कभी किसी पर गुस्सा व्यक्त करने का अवसर नहीं आया।
अक्षय कुमार ने पूछा कि बाहर जो आपकी छवि है वह बहुत ही कठोर प्रशासक की है। इस पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि मैं कठोर हूं अनुशासित हूं लेकिन कभी भी किसी को नीचा दिखाकर अपमानित करके काम नहीं करता। कभी कोई बात होती है तो मैं खुद ही सहायता के लिए खड़ा हो जाता हूं। मान लीजिए कि कोई ड्राफ्ट लेकर आया तो लोग बोलते हैं कि क्या लेकर आया लेकिन मैं बोलता हूं कि ऐसा करें तो कैसा रहेगा।
इससे भले ही मेरा 10 मिनट लग जाता है लेकिन अगली बार जब वह आता है तो मेरा समय नहीं जाता वो मेरी कल्पना के अनुसार चीजे लेकर आता है। एक प्रकार से जब कोई ऐसी चीज लेकर आता है तो मैं सीखता भी हूं और सिखाता भी हूं। मैं अपनी टीम बनाता चला जाता हूं जो मेरे जो प्रेशर हैं, स्ट्रेस हैं वो नीचे-नीचे बंटते चले जाते हैं और कुछ बचता ही नहीं है।
अक्षय ने फिर पूछा तो आपको गुस्सा नहीं आता? इस पर पीएम मोदी ने कहा कि अंदर तो होता है लेकिन मैं व्यक्त करने से अपने आपको बहुत रोकता हूं। होता क्या है कभी आपने एक मीटिंग में गुस्सा कर दिया तो मीटिंग का एजेंडा छूट जाता है और लोगों के मन में वही 2-3 मिनट छाया रहता है।
गुस्सा निकालने के सवाल पर पीएम मोदी ने कहा कि ऐसी कोई घटना है जो मुझे पसंद नहीं आई और अपका मन करता है कि ऐसा क्यों हुआ। कभी होता था कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ और कभी होता था कि मैंने ऐसा क्यों किया। मुझे एसा नहीं करना चाहिए था। मैं अकेला कागज लेकर बैठता था। कैसा हुआ, कैसे हुआ, मैने ऐसा क्यों किया ये सब लिखता था। फिर उसे फाड़कर फेंक देता था। फिर भी मन शांत नहीं होता था तो उसे दोबारा लिखता था।
तीन पेज-चार पेज-पांच पेज, ऐक बार फिर उन सभी घटनक्रमों को लिखता था। इससे यह होता था कि जो मेरे इमोशन थे वो कागज पर दर्ज हो जाती थी। इससे मैं यह आइडेंटिफाई कर लेता था कि मैं गलत हूं या नहीं।