एग्जिट पोल के बाद बदले चुनावी मौसम में अब 'मिस्टर नायडू' क्या करेंगे?
लेकिन, अब एग्जिट पोल आने के बाद बड़ा सवाल यही कि मिस्टर नायडू क्या करेंगे?
सवाल है तो कुछ जवाब भी हैं। उन जवाबों की भी करेंगे पड़ताल लेकिन उससे पहले नायडू का दावा। एग्जिट पोल से वो बेखबर तो नहीं लेकिन बेपरवाह जरूर है। तभी तो वो कहते हैं:
मुझे 1000 फीसदी भरोसा है कि टीडीपी ये चुनाव जीतने जा रही है। मुझे 0.1 फीसदी भी संदेह नहीं. हम जीतने जा रहे हैं।
ये तब है जब ज्यादातर एग्जिट पोल में जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर, नायडू को बुरी तरह पटखनी देते दिख रहे हैं। दोनों मोर्चों पर। लोकसभा चुनाव में भी और विधानसभा चुनाव में भी। प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से टाइम्स नाउ-वीएमआर के पोल में जहां वाईएसआर को 18 सीटें मिल रही हैं तो नायडू को महज 7 सीटों से संतोष करना पड़ेगा। इंडिया टुडे-एक्सिस के पोल के मुताबिक विधानसभा चुनाव में वाईएसआर 130-135 सीट जीत रही है तो टीडीपी 37-40 सीट।
अब मिस्टर नायडू के पास क्या रास्ता है?
फिलहाल तो खुद को भरपूर भरोसा और यकीन दिलाने के अलावा मेल-मुलाकात का रास्ता बचा दिखता है। शायद यही वजह है कि उम्मीद का दामन थामे चंद्रबाबू नायडू, बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात करने पहुंचे हैं। एग्जिट पोल के नतीजे ममता के किले में सेंध लगाते तो दिख रहे हैं लेकिन तृणमूल फिर भी सबसे बड़ी पार्टी बनी रहेगी। नायडू-ममता की मुलाकात में चर्चा के केंद्र में एग्जिट पोल और 23 मई को संभावित नतीजे रहे होंगे।
कुमार विश्वास के 'चंद्राबाबू' और 'चंदाबाबू'
कुमार विश्वास ने एक्जिट पोल जारी होने के बाद तंज कसते हुए ट्वीट किया, 'ये एग्जिट पोल्स वाले भी बहुत बदमाश हैं, कम से कम 23 मई तक तो चैन से सोने देते? शैतान कहीं के! विश्वास ने चंद्रबाबू नायडू को लेकर भी तंज कसा. कुमार विश्वास ने ट्वीट किया, इस एग्जिट पोल के बाद 'चंद्राबाबू' को लग रहा होगा कि बेकार ही दिल्ली तक आकर 'चंदा बाबू' से मिले।
बिना आस के राजनीति क्या?
एग्जिट पोल हमेशा सच ही हों, ये मुमकिन नहीं। विपक्ष के खेमे में 23 मई को नतीजों के उलटने का इंतजार है। असल तस्वीर कुछ और होने की उम्मीद है। इसीलिए, सोमवार सुबह अखिलेश और माया मिलते हैं तो पवार क्षेत्रीय दलों को जोड़ने की कवायद में लग चुके हैं। नायडू भी लगातार जोड़-तोड़ में लगे हुए हैं। चर्चा ये भी है कि एनडीए के बहुमत से दूर होने की स्थिति में यूपीए के संग तीसरे मोर्चे को सरकार बनाने में गुरेज नहीं होगा। क्योंकि राजनीतिक दुश्मन को दूर रखने के लिए जो करना पड़े, किया जाएगा।