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शनिवार, 18 मई 2019

बाबा की नगरी में यही चर्चा... कितनी बड़ी होगी जीत, पीएम मोदी ने मांगा एक और मौका

बाबा की नगरी में यही चर्चा... कितनी बड़ी होगी जीत, पीएम मोदी ने मांगा एक और मौका



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो): भारत राजनीती
23 मई को जिस दिलचस्पी के साथ लोग देशभर में मतगणना के उतार-चढ़ाव को जानने को उत्सुक होंगे, उतनी ही बेताबी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के परिणाम जानने में होगी। पीएम मोदी ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल की तरह अधूरे काम पूरे करने के लिए देश के साथ-साथ अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं से एक और मौका मांगा है। पीएम के संसदीय क्षेत्र में अभी साढ़े तीन हजार करोड़ की परियोजनाएं चल रही हैं। भाजपा का गढ़ माने जाने वाले वाराणसी ने पांच साल पहले मोदी को सांसद चुना तो वे प्रधानमंत्री बने। काशी का अपनापन स्वीकारते हुए मोदी ने यहीं के बच्चों के साथ अपना 68वां जन्मदिन मनाया। वे 20 से ज्यादा बार अपने संसदीय क्षेत्र आ चुके हैं, लेकिन 25 अप्रैल को रोड शो और नामांकन के बाद अपने चुनाव प्रचार का जिम्मा लोगों को सौंप दिया।

वाराणसी में 5 साल में विकास कार्यों की बात करें तो अन्य संसदीय क्षेत्र के लोगों को काशीवासियों से ईर्ष्या हो सकती है। काशी कायाकल्प की राह पर है। मोदी के यहां निर्वाचन के बाद वाराणसी को स्मार्ट सिटी बनाने की पहल हुई तो बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के समान दर्जा दिया गया। उन्होंने कैंसर के उपचार और शोध के लिए दो संस्थानों की सौगात दी है। 53,00 करोड़ रुपये खर्च कर गंगा में जल परिवहन के नए अध्याय की शुरुआत के अलावा गंगा स्वच्छीकरण की मुहिम को मुकाम तक पहुंचाने के लिए एसटीपी बनाए गए हैं। बाबतपुर फोरलेन, मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन, दीनदयाल हस्तकला संकुल और रिंग रोड ने शहर की तस्वीर बदल दी है। ‘नई काशी’ की परिकल्पना साकार होने पर शहर आध्यात्मिकता से आधुनिकता की दिशा में कदम बढ़ाएगा।

नई दिल्ली और प्रदेश की राजधानियों से इतर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में प्रवासी भारतीयों के सम्मेलन से लोग उत्साहित हैं। 2015 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो अबे और 2018 में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां को क्रमश: गंगा आरती और गंगा में नौका विहार कराने की सुनहरी यादें लोगों के जेहन में ताजा हैं। उन्हें इस बात का कम गर्व नहीं है कि मोदी ने बतौर पीएम सांसद के लिए नामांकन कर उनको एक और तमगा दे दिया है। काशीवासी मोदी द्वारा ज्यादा मतों से जीत के बाद भी वड़ोदरा सीट छोड़ने और इस बार सिर्फ वाराणसी से चुनाव लड़ने को भी खुद के स्वाभिमान से जोड़ते हैं।

सभी 5 विधानसभाओं पर भाजपा का कब्जा
इस संसदीय क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। कैंट, उत्तरी और दक्षिणी शहरी क्षेत्र हैं तो रोहनिया व सेवापुरी ग्रामीण क्षेत्र हैं। सभी पर भाजपा का कब्जा है।

प्रियंका ने इंतजार कराया, राय पर दांव लगाया

करीब एक पखवाड़े तक कांग्रेस महासचिव और पूर्वी यूपी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा के मोदी के मुकाबले उतरने की अटकलों के बाद पार्टी ने पूर्व विधायक अजय राय का नाम घोषित किया। राय के लिए प्रियंका ने रोड शो किया। उन्होंने मतदाताओं से सत्य का साथ देने वाले उम्मीदवार को जिताने की अपील कर अपना मंतव्य भी व्यक्त कर दिया। कांग्रेस ने देश भर के घोषणा पत्र के साथ-साथ काशी को मेट्रो और एम्स देने का वचन पत्र भी जारी किया है। कांग्रेस काशी को क्योटो बनाने के पीएम के दावे को झूठा बताते हुए वोट मांग रही है।

इस संसदीय क्षेत्र में भाजपा के बाद कांग्रेस का ही जनाधार है। चुनावी माहौल के बीच प्रियंका दो बार वाराणसी आईं। कांग्रेस की रीति-नीति समझाने के साथ उनका जोर ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ और गंगा किनारे रहने वाले पिछड़ों, अल्पसंख्यकों को पार्टी के पक्ष में लामबंद करने पर रहा। लहुराबीर के मनवीर मानते हैं कि प्रियंका की सौम्यता और भाषण कला ने लोगों के दिल में जगह बनाई है, पर यह कहने से नहीं चूकते कि उन्हें राजनीतिक पारी छह महीने पहले शुरू करनी चाहिए थी।

सात लाख के अंतर से जीत की चुनौती

पिछली बार मोदी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी अरविंद केजरीवाल से 3,71,784 वोट ज्यादा पाए थे। इस बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कार्यकर्ताओं और समर्थक मतदाताओं को जीत का अंतर बढ़ाकर सात लाख करने का लक्ष्य दिया है। जीत का यह आंकड़ा पाने के लिए मतदान प्रतिशत बढ़ाने पर जोर है। इसके लिए केंद्रीय मंत्रियों से प्रदेश के मंत्रियों ने सामाजिक, स्वयंसेवी और जागरूक समूहों के साथ बैठकों का सिलसिला अप्रैल के अंत में ही शुरू कर दिया था। यहां यह भी जानना जरूरी है कि 2014 में क्षेत्र में 58.20 फीसदी मतदान हुआ था, जो 2009 के मुकाबले 15 प्रतिशत अधिक था।

काशी से गढ़े दिव्यांगजन व इज्जतघर जैसे शब्द

पीएम नरेंद्र मोदी ने विकलांगों के लिए दिव्यांगजन और शौचालय के लिए इज्जत घर जैसे नए और ज्यादा सम्मानजनक शब्द गढ़ने की घोषणा सार्वजनिक तौर पर यहीं से की।

सात नवंबर, 2014 को पीएम ने अपने संसदीय क्षेत्र के गांव जयापुर को विकास कार्यों के लिए गोद लेकर सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरूआत यहीं से की।

शहर के पक्का महाल इलाके को बिजली के खुले तारों के जाल से निजात के लिए आईपीडीएस की शुरुआत की गई। कबीर नगर क्षेत्र में इसका प्रभाव दिख रहा है।

सपा की शालिनी पर बसपा का भी दारोमदार

कांग्रेस से मेयर का चुनाव लड़ चुकीं व राज्यसभा के उपसभापति रहे श्याम लाल यादव की पुत्र वधू शालिनी यादव को सपा ने प्रत्याशी बनाया। नामांकन के एन वक्त हाई प्रोफाइल ड्रामे के बीच बीएसएफ के बर्खास्त जवान तेज बहादुर यादव का नाम आ गया। हालांकि अब शालिनी ही मैदान में हैं, लेकिन पार्टी के अंतर्विरोध जाहिर हो चुके हैं। यह चर्चा भी रही कि सपा यहां से प्रियंका को संयुक्त प्रत्याशी के तौर पर समर्थन देने के लिए तैयार थी।

कांग्रेस के सजातीय वोटों के साथ दलित वोट सहेजने के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शालिनी के लिए रैली में कहा कि काशी के लोगों से झूठ बोलने के लिए मोदी को गंगा मैया सजा देंगी। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरी सपा सभी पांच सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। बसपा ने सेवापुरी से ब्राह्मण उम्मीदवार उतारा था और सबसे ज्यादा 35,657 वोट पाए थे।

अतीक के हटने से मुसलमानों पर फोकस

मतदान के 48 घंटे पहले तक मुस्लिम मतदाता पत्ते नहीं खोल रहे हैं। 2014 में माना गया था कि मुस्लिमों के थोक वोट केजरीवाल को गए थे। जानकार मानते हैं कि इस बार माहौल बदला है। ‘सबका साथ सबका विकास’ ने समझाया है कि भाजपा के बारे में उनकी सोच पूरी तरह दुरुस्त नहीं थी। हालांकि एक तबका है, जो अवैध बूचड़खाने बंद किए जाने से खफा है तो दूसरे तबके को सुरक्षा की भी चिंता है।

शिया अगर भाजपा और कांग्रेस के लिए एकजुट हो रहे हैं तो सुन्नी कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन के बीच वोटों का बड़ा बंटवारा कर सकते हैं। जेल में बंद इलाहाबाद के पूर्व सांसद अतीक अहमद की उम्मीदवारी से माना जा रहा था कि ध्रुवीकरण होगा और इससे भाजपा फायदे में रहेगी। बाद में अतीक ने मैदान छोड़ दिया तो विपक्ष के साथ-साथ भाजपा ने भी मुसलमानों को जोड़ने की मशक्कत शुरू कर दी है।

विश्वनाथ कॉरिडोर बदल रहा सूरत

वाराणसी में विकास के बीच श्री काशी विश्वनाथ धाम के निर्माण का प्रयास अनूठा है। भाजपा इसे चुनावी मुद्दा भले ही नहीं मानती, लेकिन हिंदू अास्तिक इसे सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार जैसा मान रहे हैं। पीएम ने चुनाव की घोषणा से ठीक पहले इसका शिलान्यास किया था। बाबा दरबार से मणिकर्णिका घाट और वहां से जलासेन होते हुए मीरघाट से लेकर मंदिर तक 39310 वर्ग मीटर में प्रस्तावित चार भव्य प्रवेश द्वार वाले इस धाम के लिए 250 करोड़ रुपये में 296 निजी और सरकारी संपत्तियों में से 95 प्रतिशत खरीद ली गई हैं।

500 करोड़ रुपये से यज्ञ मंडप, वैदिक विज्ञान केंद्र, प्रतीक्षालय, संग्रहालय और पुस्तकालय के साथ-साथ चार बड़े परिसर भी बनाए जाएंगे। पूरे परिसर में एक साथ दो लाख श्रद्धालु खड़े हो सकेंगे। हालांकि मंदिर परिसर के विस्तार के लिए अधिग्रहण से कुछ लोग नाराजगी भी व्यक्त कर रहे हैं।

विदेशी राजनयिक और दूतावासों की दिलचस्पी

यह दूसरी बार है, जब विदेशी राजनयिकों के साथ इनसे संबद्ध भारतीय अधिकारियों की चुनावी दिलचस्पी का केंद्र वाराणसी बन गया है। बीते कुछ दिनों में उनकी आवाजाही बढ़ गई है। सब के सब चुनाव को ‘इंडिया वाया वाराणसी’ देख रहे हैं। वाराणसी में पीएम मोदी की जीत को लेकर तो वे निश्चिंत भी हैं। राजनीतिक जानकारों, शिक्षाविदों, कारोबारियों और प्रबुद्धजनों से बातचीत में उनकी असल जिज्ञासा का केंद्रबिंदु नई दिल्ली में 2019 की सरकार और सपा-बसपा गठबंधन के बाद उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के मिजाज को समझना होता है। दशकों तक सरकार चला चुकी कांग्रेस की हालत को जानने में भी उनकी उत्सुकता रहती है।

उद्योगपतियों की उम्मीदें अपार


पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के संयोजक अशोक गुप्ता कहते हैं कि ढांचागत विकास हुआ है। अगले पांच साल में परियोजनाएं पूरी होने पर हमारा शहर भारत के सर्वश्रेष्ठ धार्मिक पर्यटन वाले स्थानों में शुमार हो जाएगा। एमएसएमई सेक्टर में काम कम होने का जिक्र करने के साथ ही वह अपेक्षा करते हैं कि यदि बनारस के जीआई उत्पादों की गुणवत्ता सुधारते हुए बाजार उपलब्ध करा दिए जाएं तो आसपास के जिलों के लोगों को बड़ी संख्या में रोजगार मुहैया कराया जा सकता है।

बनारस देश का एकमात्र जिला है, जहां के 11 उत्पाद जीआई में हैं। इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के डिवीजनल चेयरमैन आरके चौधरी मानते हैं कि पांच साल में उद्योगों की दृष्टि से उल्लेखनीय कार्य कुछ नहीं हुआ है। 1964 में डीजल रेल कारखाना बनने के बाद यहां एक भी बड़ा उद्योग नहीं लगा। या तो यहां रेलवे कोच बनाने का कारखाना लगाया जाए या फिर रक्षा क्षेत्र से जुड़ा उपक्रम स्थापित किया जाए। इससे छोटे-छोटे सैकड़ों उद्योग लगेंगे और लाखों नौकरियां बढ़ेंगी। पर्यटन क्षेत्र में काम नहीं होना भी उनकी चिंता का विषय है। दावा है कि मिर्जापुर, चंदौली और सोनभद्र को बनारस से जोड़कर पर्यटकों के लिए पूर्वांचल अद्भुत, अलौकिक और अविस्मरणीय बनाया जा सकता है।

सामाजिक ताने-बाने से भी सरोकार

बीएचयू के विधि संकाय के पूर्व प्रमुख डॉ. एमपी सिंह बीते पांच साल में हुए विकास कार्यो से सहमत हैं। फिर भी उनके सरोकार अलग हैं। कहते है कि इस दौरान शहर का सामाजिक ताना-बाना बिखर गया है। तीन-चार हजार साल से गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाने-समझे जाने वाले बनारस की छवि अंधविश्वासी, धर्मभीरू और सांप्रदायिक की बना दी गई है।

चिंता जताते हुए कहते हैं कि दुख इस बात का है कि सर्व विद्या की राजधानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय, काशी विद्यापीठ समेत कहीं से भी इससे निपटने के लिए आवाज नहीं उठती है। दूसरी तरफ, बीएचयू के ही राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. आरपी सिंह स्वच्छता की सोच को राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार देने के लिए प्रधानमंत्री की सराहना करते हैं, पर बेरोजगारी और गरीबी को खत्म करने के प्रयास कम मानते हैं। कहते हैं कि पांच साल में देश भर में बेरोजगारी बढ़ी है। युवाओं के लिए रोजगार सृजन की योजनाओं के क्रियान्वयन में निगरानी की खामी रही है। इसके लिए मजबूत और पारदर्शी तंत्र विकसित करने की जरूरत है।

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