Modi swearing-in: केंद्र में गठबंधन की सरकार, अटल से लेकर मोदी तक की पूरी कहानी - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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गुरुवार, 30 मई 2019

Modi swearing-in: केंद्र में गठबंधन की सरकार, अटल से लेकर मोदी तक की पूरी कहानी

Modi swearing-in: केंद्र में गठबंधन की सरकार, अटल से लेकर मोदी तक की पूरी कहानी


नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो) - फोटो : bharat rajneeti
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद अपना दूसरा कार्यकाल शुरू करने जा रहे हैं। आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद प्रधानमंत्री मोदी और उनके नए मंत्रिमंडल के सदस्यों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे। हालांकि मंत्रिमंडल में किसे कौन सा मंत्रालय मिलेगा इसपर काफी समय से अटकलें चल रही हैं।
मंत्रिमंडल के लिए मंत्रियों का चुनाव करना आसान काम नहीं है, इसमें प्रतिभा के साथ-साथ अनुभव पर भी बल दिया जाता है। किसी ऐसे व्यक्ति का चुनाव इसमें करना जरूरी होता है, जो देश के विभिन्न राज्य और समुदाय का प्रतिनिधित्व करता हो।

भारत में विविधता को देखते हुए ये काम काफी जटिल होता है। ये काम उस वक्त और भी मुश्किल हो जाता है जब सरकार गठबंधन की होती है। हालांकि इस बार प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी को 543 में से 303 सीटें मिली हैं। पार्टी ने बहुमत का आंकड़ा हासिल किया है। लेकिन इसमें एनडीए सहयोगियों को भी जगह मिलेगी या नहीं इसपर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।

सहयोगी दलों के साथ अटल बिहारी वाजपेयी

केंद्र में पहली सफल एनडीए सरकार बनाने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जाता है। हालांकि उनके पिछले दो प्रयास सफल नहीं हो पाए थे। 1999-2004 की वाजपेयी सरकार में ना केवल एक ही पार्टी के अलग-अलग रूचि रखने वाले नेता थे, बल्कि इसमें गठबंधन के साथी भी थे।

इस चुनाव में विदेशी सोनिया बनाम स्वदेशी वाजपेयी का माहौल बनाया गया। भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा 182 सीटें मिली और वाजपेयी केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रहे, जबकि कांग्रेस के खाते में सिर्फ 114 सीटें आई थीं। सीपीआई ने चुनाव में 33 सीटें जीतीं। यह पहली बार था जब अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में केंद्र में किसी गैर-कांग्रेसी सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।

अटल बिहारी वेजपेयी
अटल बिहारी वेजपेयी - फोटो : bharat rajneeti
इस दौरान केंद्रीय मंत्रिमंडल में लाल कृष्ण आडवाणी (गृह), जसवंत सिंह (विदेश), यशवंत सिन्हा (वित्त), मुरली मनोहर जोशी (मानव संसाधन विकास), शांता कुमार (उपभोक्ता मामलों), प्रमोद महाजन (दूरसंचार विभाग), सुषमा स्वराज (स्वास्थ्य), एम. वैंकेया नायडू (ग्रामीण विकास), राजनाथ सिंह (कृषि), अरुण जेटली (कानून) और उमा भारती (पेयजल और स्वच्छता) को शामिल किया गया।

समता पार्टी (बाद में जेडी-यू में विलय हो गया) के प्रमुख जॉर्ज फर्नांडिस को रक्षा, नीतीश कुमार को रेलवे और शरद यादव को श्रम मंत्रालय सौंपा गया। शिवसेना के मनोहर लाल जोशी को लोकसभा का स्पीकर बनाया गया। तत्कालीन शिवसेवा नेता सुरेश प्रभु को ऊर्जा विभाग सौंपा गया। लोजपा के राम विलास पासवान को संचार विभाग और बीजेडी के नवीन पटनायक को खान विभाग सौंपा गया। वहीं डीएमके के मुरासोली मारन को वाणिज्य और उद्योग और टीआर बालू को पर्यावरण और वन विभाग सौंपा गया।
 

क्षेत्रों और समुदायों का प्रतिनिधित्व

मंत्रीमंडल में ऐसे सदस्यों को शामिल किया गया, जो किसी समुदाय या राज्य का प्रतिनिधित्व करते हों। वाजपेयी सरकार के दौरान खुद वाजपेयी ने उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। उनके अलावा मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, संतोष गंगवार, मेनका गांधी और कई अन्य ने भी उन्हीं के साथ उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया।

आडवाणी ने गुजरात, जसवंत सिंह ने राजस्थान, बिहार का प्रतिनिधित्व यशवंत सिन्हा, नीतीश कुमार, शत्रुघन सिन्हा, शहनवाज हुसैन, रवि शंकर प्रसाद, संजय पासवान, राजीव प्रताप, मध्यप्रदेश में सरकार का चेहरा बने सुंदरलाल पटवा, सत्यनारायण जतिया, उमा भारती, सुमित्रा महाजन और प्रहलाद पटेल। झारखंड में सरकार का चेहरा बने आदिवासी कारिया मुंडा और बाबूलाल मरांडी।

शिवसेना के नेताओं के अलावा महाराष्ट्र के प्रमुख नाम थे, राम नाइक, प्रमोद महाजन, बालासाहेब विखे पाटिल, अन्नासाहेब और वेद प्रकाश गोयल। हालांकि भाजपा के पास आंध्र प्रदेश से अधिक सासंद नहीं थे लेकिन उसके पास कई प्रतिनिधि थे, जैसे एम वैंकेया नायडू, बंगारू लक्ष्मण, बंडारू दत्तात्रेय और विद्यासागर राव।

भाजपा सांसद चमन लाल गुप्ता और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला जम्मू एवं कश्मीर से सांसद थे। वहीं अगर समुदाय की बात करें तो वाजपेयी, जोशी, सुषमा स्वराज, महाजन, जेटली ने ब्राहम्ण, जसवंत सिंह और राजनाथ सिंह ने राजपूत, आडवाणी ने सिंधी समुदाय का प्रतिनिधित्व किया।

दलितों का प्रतिनिधित्व पासवान, सत्यनारायण जटिया, कैलाश मेघवाल और संजय पासवान ने किया। भारतीय फेडरल डेमोक्रेटिक पार्टी के पी सी थॉमस ने केरल और ईसाई समुदाय दोनों का प्रतिनिधित्व किया। फर्नांडिस ने बिहार और ईसाई समुदाय का प्रतिनिधित्व किया। 

मनमोहन सिंह
मनमोहन सिंह - फोटो : bharat rajneeti

मनमोहन मंत्रिमंडल

साल 2004 के 14वें लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का 'इंडिया शाइनिंग' का नारा असफल रहा और कांग्रेस सत्ता में लौटी। कांग्रेस की जीत भाजपा के लिए करारा झटका थी क्योंकि साल 1999 में जीत के बाद पहली बार भाजपा केंद्र में पांच साल सरकार चलाने में सफल रही थी। इस चुनाव में कांग्रेस को 145 सीटें मिलीं। जबकि भाजपा के खाते में 138 सीटें आई। सीपीएम के खाते में 43 सीटें गई और सीपीआई 10 सीटें जीतने में कामयाब रही। 

हालांकि चार बड़े मंत्रालय गृह, रक्षा, विदेश और वित्त कांग्रेस नेताओं को मिले। कांग्रेस पार्टी ने भी सभी समुदाय और राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेताओं को मंत्रिमंडल में जगह देने पर पूरा ध्यान दिया।

2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आई। सोनिया गांधी के पीएम बनने से इंकार के बाद मनमोहन सिंह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने। 2009 के 15वें आम चुनाव में कांग्रेस ने 206 सीटें जीतीं और भारतीय जनता पार्टी के खाते में सिर्फ 116 सीटें ही आई।

एनडीए फिर से सरकार बनाने में विफल रही। कांग्रेस ने यूपी में 21 सीटें जीतीं जबकि भाजपा के खाते में इस सूबे से सिर्फ 10 सीटें ही आई। गठबंधन सरकार चलाने के लिए यूपीए की सरकार ने एनडीए वाला मॉडल ही अपनाया। पार्टी ने मुस्लिम चेहरों को भी जगह दी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फाइल फोटो) - फोटो :bharat rajneeti

नरेंद्र मोदी का पहला मंत्रीमंडल

2014 में हुए देश के 16वें आम चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ था कि कोई गैर-कांग्रेसी सरकार प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई थी। 2014 में एनडीए ने कुल 336 लोकसभा सीटों पर रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी, जिनमें से 282 सीटें अकेले भारतीय जनता पार्टी की थीं। वहीं कांग्रेस के लिए यह चुनाव शर्मनाक प्रदर्शन वाला रहा। कांग्रेस महज 44 सीटों पर सिमट गई। 1984 में जहां कांग्रेस ने बहुमत की सरकार बनाई थी, वहीं 2014 में भाजपा ने अपने दम पर सरकार बनाई।

उन्होंने लोजपा के पासवान, शिवसेना के अनंत गीते और एसएडी की हरसिमरत कौर बादल को सरकार में जगह दी। हालांकि नागरिकता बिल के कारण गठबंधन से जुड़े उत्तरपूर्व के कुछ दल अलग हो गए। शिवसेना के साथ भी बीच में रिश्ते को लेकर तल्खी दिखाई दी। हालांकि बाद में दोनों के बीच सुलह हो गई। 

2014 के आम चुनाव में जहां मोदी लहर दिखी थी, तो वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में मोदी सुनामी का माहौल बना। 2014 में 44 सीटें लाने वाली कांग्रेस कुछ ही सीटों का इजाफा कर सकी और 52 पर ही पहुंच सकी। शर्मनाक बात यह रही कि देश के 17 राज्यों में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया। अब सवाल ये उठता है कि बहुमत में आने के बाद क्या भाजपा सरकार में अपने सहयोगियों को शामिल करेगी। 

हालांकि भाजपा को सहयोगी पार्टियों को सरकार में शामिल करना इसलिए जरूरी है क्योंकि उसके पास अभी राज्यसभा में बहुमत नहीं है। जबकि विभिन्न बिलों को पास कराने के लिए सरकार को राज्यसभा में भी समर्थन की जरूरत पड़ेगी। वहीं अगर भाजपा अपने सहयोगी दलों को अभी नकार देती है तो आगे चलकर उसे नुकसान भी उठाना पड़ सकता है।

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