मोदी के आडवाणी बन ही गए शाह, राष्ट्रवादी एजेंडा सुलझाने पर और निखरेगा कद
खास बातें
- सरकार का टॉप राष्ट्रवादी एजेंडा सुलझाने पर और निखरेगा कद
- अनुच्छेद 35 ए, 370, एनआरसी और राम मंदिर मुद्दे को सुलझाने की है चुनौती
- गुजरात में भी डेढ़ दशक तक चर्चा में रही थी यह जोड़ी
आखिरकार अमित शाह पीएम नरेंद्र मोदी के लालकृष्ण आडवाणी बन ही गए। हालांकि इसके लिए शाह को संगठन में अपनी ताकत का लोहा मनवाते हुए इसके लिए 5 साल इंतजार करना पड़ा। बहरहाल गृह मंत्री बनने के बाद शाह पर सरकार के राष्ट्रवाद से जुड़े एजेंडे को अमली जामा पहनाने की जिम्मेदारी है।
अगर
शाह राष्ट्रवादी मुद्दे अनुच्छेद 35 ए, अनुच्छेद 370, नागरिकता संशोधन बिल, राम मंदिर और कश्मीरी पंडितों की घर वापसी की गुत्थी सुलझा पाए तो उनका सियासी क्षितिज में छा जाना तय है। उपरोक्त सभी एजेंडा सरकार की मुख्य प्राथमिकताओं में शामिल है।
दरअसल शाह संगठन में अपनी अमिट छाप छोड़ने के बाद अपनी प्रशासनिक क्षमता साबित करना चाहते थे। यही कारण है कि सरकार में शामिल होने की स्थिति में उनकी पहली पसंद गृह मंत्रालय थी।
चूंकि राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दे पर पार्टी और सरकार ने बड़े बड़े वादे किये हैं। ऐसे में इस दूसरे कार्यकाल में इन मुद्दों की सियासी अहमियत बेहद बढ़ गई है। हालांकि इन मुद्दों को अमलीजामा पहनाने के लिए शाह को राज्यसभा में बहुमत का इंतजार के साथ सहयोगी दलों को भी राजी करना होगा। गौरतलब है कि नागरिकता संशोधन बिल, अनुच्छेद 35 ए और अनुच्छेद 370 पर पार्टी के सहयोगियों का रुख भाजपा से अलग है।
कश्मीरी पंडितों की घर वापसी से कर सकते हैं शुरुआत
शाह अपने इस अभियान की शुरुआत कश्मीरी पंडितों की कश्मीर में वापसी से कर सकते हैं। पहले कार्यकाल में इस संबंध में सरकार महज रूपरेखा ही तैयार कर पाई थी। इसके साथ ही शाह अनुच्छेद 35 ए को सुलझाने केलिए आगे बढ़ सकते हैं।
जोड़ी का यूपी कनेक्शन
नरेंद्र मोदी-अमित शाह (फाइल फोटो) - फोटो : bharat rajneeti
भाजपा जब पहली बार 1998 में सत्ता में आई तो पीएम अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ से तो लालकृष्ण आडवाणी गुजरात के गांधीनगर से सांसद थे। अटल-आडवाणी की यह जोड़ी वर्ष 2004 तक सत्ता बने रहने तक बनी रही।
हालांकि दूसरे कार्यकाल के अंत में आडवाणी डिप्टी पीएम बन गए। हालांकि उनके पास गृह मंत्रालय था। इसी प्रकार पीएम मोदी इस समय वाराणसी (यूपी) से सांसद हैं, जबकि शाह आडवाणी की सीट रहे गांधीनगर से। हालांकि इससे पहले गुजरात में भी मोदी-शाह की जोड़ी सीएम और गृह राज्य मंत्री की भूमिका निभा चुके हैं।
2026 पर निगाहें?
राजनीतिक हलके में चर्चा है कि सरकार का अंग बनने के बाद शाह की निगाहें वर्ष 2026 पर है। चूंकि भाजपा में मंत्री या संगठन में पद पाने की उम्र सीमा 75 वर्ष तक सीमित है। ऐसे में अगर पीएम मोदी लगातार तीसरा चुनाव जीते तो 2026 में वह पद छोड़ देंगे। इस बीच अगर शाह ने अपनी प्रशासनिक क्षमता साबित की और राष्ट्रवाद से जुड़े मुद्दों को सुलझाया तो उनका कद बहुत बड़ा हो जाएगा।
लंबी माथापच्ची के बाद हुआ फैसला
शाह के गृह मंत्री बनाने संबंधी मामले में मतगणना के अगले दिन से ही शुरू हो गई थी। इस दौरान संघ के वरिष्ठ नेताओं की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के साथ लगातार कई दौर बातचीत हुई। संघ शुरू में राजनाथ सिंह को इस पद पर बनाए रखना चाहता था। अंतत: बृहस्पतिवार को शाह को इस मंत्रालय का कार्यभार देने पर सहमति बनी।