भाजपा ने यूं ही नहीं की सांसदों के बेटे-बेटियों को टिकट की ‘ना’, जाने इसके पीछे की रणनीति - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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शनिवार, 29 जून 2019

भाजपा ने यूं ही नहीं की सांसदों के बेटे-बेटियों को टिकट की ‘ना’, जाने इसके पीछे की रणनीति

भाजपा ने यूं ही नहीं की सांसदों के बेटे-बेटियों को टिकट की ‘ना’, जाने इसके पीछे की रणनीति

BJP
BJP - फोटो : bharat rajneeti
भाजपा ने विधायक से सांसद बने नेताओं या मौजूदा विधायकों व सांसदों के बेटे-बेटियों या परिवार के लोगों को उपचुनाव में टिकट न देने का फैसला यूं ही नहीं किया है। यह पार्टी की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। 
इस फैसले पर कहां तक अमल होगा, यह तो टिकटों की घोषणा के समय ही पता चलेगा लेकिन इससे पार्टी नेतृत्व ने संगठन में गुटबाजी व खींचतान की आशंकाओं को खत्म करने की कोशिश के साथ ही कार्यकर्ताओं को भी कुछ खास संदेश देने का प्रयास किया है। साथ ही विपक्ष पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की है। 

प्रदेश में विधानसभा की 12 सीटों के उपचुनाव होने हैं। इनमें 11 सीटें विधायकों के सांसद चुन लिए जाने के कारण उनके त्यागपत्र से खाली हुई हैं। एक सीट हमीरपुर विधायक अशोक चंदेल को उम्रकैद की सजा हो जाने के कारण उनकी सदस्यता रद्द होने से खाली हुई है। इन 12 सीटों में नौ पर भाजपा, एक पर अपना दल और एक-एक पर सपा व बसपा के विधायक थे। 

इन सीटों के उपचुनावों की तारीखें अभी घोषित नहीं हुई हैं लेकिन सभी दलों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। भाजपा ने सभी सीटों पर एक-एक मंत्री व विधायक को तैनात किया है। कांग्रेस ने भी प्रत्येक सीट पर दो-दो वरिष्ठ नेताओं को प्रभारी बनाया है। भाजपा सरकार के मंत्रियों व पदाधिकारियों ने तो संबंधित स्थानों पर बैठकें भी शुरू कर दी हैं। 

हर जगह दावेदारों की भीड़

इस बीच, टिकट के दावेदारों ने भागदौड़ शुरू कर दी है। भाजपा और अपना दल के विधायकों वाली 10 सीटों मेें शायद ही कोई ऐसी सीट होगी जहां सांसदों, विधायकों के परिवार के लोग टिकट न मांग रहे हों। कहीं खुलकर टिकट की पैरोकारी हो रही है तो कहीं चुपचाप समीकरण फिट करने का प्रयास हो रहा है। कहीं किसी का पुत्र या पुत्री टिकट का दावा कर रहे हैं तो एक सीट पर मौजूदा सांसद अपने भाई को टिकट दिलाना चाहते हैं।

विधायक से सांसद बने एक नेता अपनी पत्नी को विधायक बनाना चाहते हैं। एक सीट की खबर तो काफी दिलचस्प है। यह सीट जिस भाजपा सांसद के त्यागपत्र से रिक्त हुई है, उनके पुत्र भाजपा में दावा ठोक  रहे हैं तो बसपा में भी अपने समीकरण फिट करने में जुटे हैं।

ये हैं वजहें
भाजपा नेताओं की मानें तो यह निर्णय बड़े स्तर पर होने वाली खींचतान से बचने के लिए किया गया है। रणनीतिकारों का मानना है कि किसी मौजूदा सांसद, विधायक या मंत्री के बेटे-बेटी या परिवार के सदस्य को टिकट देने से आम कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ सकती है। साथ ही संबंधित स्थान पर एक खास नेता का राजनीतिक वर्चस्व स्थापित हो सकता है जो संगठनात्मक ढांचे को कमजोर करेगा। इसका प्रतिकूल प्रभाव सामने आ सकता है।

वहीं, इस फैसले से भाजपा ने विपक्ष पर एक बार फिर हमलावर होने का आधार तैयार कर दिया है। इस फैसले से भाजपा वाले कह सकेंगे कि उनकी पार्टी में किसी नेता को अपनी सीट पर परिवार के लोगों को राजनीति कराने का अधिकार नहीं है।

दूसरी तरफ विपक्ष के सारे अवसर सिर्फ कुछ परिवारों तक ही सीमित रहते हैं। हालांकि इस निर्णय से गुटबाजी पूरी तरह खत्म हो जाएगी, यह नहीं कहा जा सकता लेकिन पार्टी ने कार्यकर्ताओं को संदेश देने की कोशिश की है कि उन्हें भी मौका मिल सकता है। 

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