दरवेश हत्याकांडः बेटी बनकर किया परिवार का नाम रोशन, कहती थीं- शिक्षा सबसे बड़ी ताकत
दीवानी में स्वागत के समय दरवेश यादव हत्यारोपी मनीष के साथ (फाइल फोटो) - फोटो : bharat rajneeti
अधिवक्ता दरवेश यादव का जीवन हौसले की मिसाल रहा। उन्हें कदम कदम पर संघर्ष करना पड़ा लेकिन, कभी हिम्मत नहीं हारी। सात साल की थीं जब सिर से पिता का साया उठ गया। इसके बाद खुद संभली, पढ़ाई की, भाई-बहन को पढ़ाया।
वकालत में आने से पहले उन्होंने साहिबाबाद के एक लॉ कॉलेज में पढ़ाया था। जब काला कोट पहना तो, पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी गिनती तेज तर्रार अधिवक्ताओं में होती थी। खासकर उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए वह हमेशा तत्पर रहती थीं।दरवेश यादव मूल रूप से एटा की रहने वाली थीं। वहां कलक्ट्रेट के पास ही उनका मकान है। पिता रामेश्वर दयाल डीएसपी थे। उनके निधन के बाद दरवेश के सामने बड़ा संकट था। सात साल की ही थीं। मां ने बहुत सहारा दिया। दरवेश कहती थीं, सबसे बड़ी ताकत शिक्षा की है।
उन्होंने इसी को हथियार बनाया था। वकालत की पढ़ाई की और भाई-बहनों को पढ़ाया। आगरा में 2004 से बतौर अधिवक्ता प्रैक्टिस कर रही थीं। दरवेश तीन बहनों में सबसे बड़ी थीं।
एक भाई है पंजाब सिंह यादव। उनकी बहन खिल्लो देवी पुलिस में थीं, आगरा में तैनात थीं, उनकी ड्यूटी के दौरान मौत हो गई थी। खिल्लो की बेटी कंचन सब इंस्पेक्टर हैं। तीसरी बहन संतोष देवी हैं। पंजाब सिंह के बेटे सनी यादव हैं जिन्होंने रिपोर्ट दर्ज कराई है।
दरवेश चार मार्च 2012 को यूपी बार काउंसिल की सदस्य बनी थीं। 2017 में उपाध्यक्ष चुनी गई थीं। कुछ समय के लिए कार्यकारी अध्यक्ष रहीं। इस बार के चुनाव में कांटे का मुकाबला था।
वाराणसी के हरिशंकर और दरवेश को बराबर 12-12 वोट मिले थे। तय हुआ था दरवेश सिंह पहले छह माह और शेष छह माह हरिशंकर अध्यक्ष रहेंगे। दरवेश यूपी बार काउंसिल की पहली महिला अध्यक्ष थीं। इस पद पर तीन दिन ही रह पाईं।
दरवेश यादव आगरा में खंडपीठ के लिए आवाज बुलंद कर रही थीं। उनके बार काउंसिल अध्यक्ष बन जाने के बाद उम्मीद थी कि यह आवाज और बुलंद होगी। उन्होंने कहा था कि उनका प्रयास रहेगा कि जसवंत सिंह आयोग की रिपोर्ट लागू कराई जाए। दो दिन पहले ही कहा था, मेरी जीत, सभी अधिवक्ताओं की जीत है।