देश में नहीं थम रहा है रैगिंग का रोग, सात वर्षों में दर्ज हुए 4696 प्रकरण
प्रतीकात्मक तस्वीर : Bharat rajneeti
मई में मुंबई के बीवाईएल नायर अस्पताल से गायनोकोलॉजी (स्त्रीरोग) की पढ़ाई करने वाली दूसरे वर्ष की छात्रा डॉ. पायल तड़वी ने कथित तौर पर रैगिंग से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। जिसके बाद रैगिंग पर चर्चा तेज हो गई है। एंटी रैगिंग सेल के अलावा पुलिस ने भी मामले की जांच के लिए स्पेशल कमेटी का गठन किया है।
उच्च शैक्षणिक संस्थानों में रैगिंग की घटनाओं को रोकने की जिम्मेदारी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की है। जिसके लिए वह हर वर्ष एंटी रैंगिंग गाइडलाइन भी जारी करती है। यूजीसी रैगिंग की घटनाओं को रोकने के लिए फोन और वेबसाइट से सीधे शिकायत भी दर्ज करती है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अनुसार रैगिंग के कारण पिछले 7 सालों में लगभग 54 छात्रों ने आत्महत्या की है, जबकि इस दौरान रैगिंग के 4696 मामसे भी दर्ज हुए हैं।
रैगिंग की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए यूजीसी ने सभी विद्यालयों में एंटी रैगिंग सेल बनाने का निर्णय लिया है। यह सेल इस शैक्षणिक सत्र से सक्रिय भी हो जाएगा। इसके लिए यूजीसी ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की बैठक भी बुलाई थी।
सिरदर्द बनते जा रहे हैं झूठे केस
सांकेतिक तस्वीर : Bharat Rajneeti
यह भी देखा जा रहा है कि अपना निजी हित साधने के लिए जूनियर्स कई बार झूठे केस भी दर्ज कराते हैं। ऐसे मामलों की बढ़ती संख्या सही पीड़ितों को न्याय दिलाने में बाधा बन रहे हैं।
रैगिंग में शामिल मामले
किसी भी तरह का शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न, मानवीय गरिमा को भंग करने वाला कोई काम, लिख-बोलकर किसी का अपमान करना या चिढ़ाना, डराना या धमकी देना, घर में बंद करना आदि कार्य को रैगिंग माना जाता है।
ऐसे दर्ज कराएं शिकायत
रैगिंग की घटना होने पर शिकायत दर्ज कराए जाने के लिए मई 2017 को मानव संसाधन मंत्रालय और यूजीसी ने एंटी रैगिंग मोबाइल ऐप को जारी किया था। इससे भी पीड़ित शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके अलावा रैगिंग होने पर संबंधित संस्थान के प्रमुख के पास लिखित में शिकायत दर्ज कराएं। फिर भी कोई कार्यवाई न हो तो यूजीसी के एंटी रैगिंग सेल से लिखित या फोन पर संपर्क कर सकते हैं। इसका टोल फ्री नंबर 18001805522 है।
संस्थान ईमानदारी से नहीं करते कार्रवाई
यह भी देखा जाता है कि रैगिंग की घटना होने पर संस्थान अपनी साख बचाने के लिए कार्रवाई के नाम पर लीपापोती शुरू कर देते हैं। कई बार तो मामले को दबाने की कोशिश भी की जाती है। हालांकि हर मामले में ऐसा नहीं होता है।