
कर्नाटक में राजनीतिक घमासान पिछले 15 दिन से जारी है. इस बीच शुक्रवार को विधानसभा में फ्लोर टेस्ट होना है लेकिन एचडी कुमारस्वामी की सरकार जिस तरह से इस प्रक्रिया में आगे बढ़ रही है. उससे लग नहीं रहा है कि फ्लोर टेस्ट शुक्रवार को ही होगा. राज्यपाल ने जो शुक्रवार दोपहर 1.30 बजे की डेडलाइन दी थी, वो भी पार हो गई है. ऐसा ही आरोप भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस और जेडीएस पर लगा रही है. ऐसे में एचडी कुमारस्वामी किस रणनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं और वह जनता को किस तरह का संदेश दे रहे हैं,
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें, तो बीते दो दिनों से जिस तरह विधानसभा में कार्यवाही चल रही है उससे साफ दिख रहा है कि कांग्रेस और जेडीएस दोनों ही विश्वास मत पर वोटिंग कराने को टालना चाहते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्हें लगता है कि सरकार के पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है.
इसी स्थिति में एचडी कुमारस्वामी ने दो दिन में दो बार विधानसभा को संबोधित किया. दोनों ही संबोधनों में उन्होंने ऐसे संकेत नहीं दिए जिसमें ऐसा लगे कि वह तुरंत इस्तीफा देने जा रहे हैं. हालांकि, लगातार उन्होंने भाषणों में ‘मजबूरी में मुख्यमंत्री’ वाले संकेत जरूर दिए.
इन्हीं संकेतों से साफ लग रहा है कि कुमारस्वामी खुद इस्तीफा नहीं देना चाहते हैं, बल्कि कार्रवाई को आगे बढ़ने देना चाहते हैं. अब अगर कार्रवाई आगे बढ़ती है, सदन में विश्वास मत प्रस्ताव पर वोटिंग नहीं होती है तो राज्यपाल वजुभाई वाला को मामले में दखल देना होगा. क्योंकि उन्होंने खुद वोटिंग कराने का आदेश दिया है.
ऐसी स्थिति में राज्यपाल सरकार पर एक्शन ले सकते हैं या फिर केंद्र सरकार से मदद ले सकते हैं. गौरतलब है कि राज्यपाल केंद्रीय गृह मंत्रालय की सलाह के अनुसार भी काम करता है. अगर केंद्र एक्शन में आती है और राज्य सरकार को बर्खास्त किया जाता है या फिर राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है. तो इस स्थिति में एचडी कुमारस्वामी उन्हें जबरन सीएम पद से हटाने की बात कहकर भारतीय जनता पार्टी पर आरोप मंढ सकते हैं. जिसका फायदा आने वाले विधानसभा चुनाव में जनता के सामने जाकर भी उठाया जा सकता है.
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बागी 16 विधायकों को विधानसभा में आने या ना आने के मामले में छूट है. गुरुवार को भी सदन से 19 विधायक अनुपस्थित थे, अगर ऐसे समय में मतदान होता है तो कुमारस्वामी की सरकार अल्पमत में होगी. बीजेपी के पास अभी 105 से अधिक विधायक हैं, तो वहीं कांग्रेस-जेडीएस के पास ऐसी स्थिति में 100 के आसपास ही नंबर होगा.