योगी सरकार का बड़ा फैसला: खत्म किए छह भत्ते, 8 लाख सरकारी कर्मचारियों को नुकसान
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ - फोटो : bharat rajneeti
उत्तर प्रदेश सरकार ने स्वैच्छिक परिवार कल्याण प्रोत्साहन भत्ता समेत लाखों कर्मचारियों को मिलने वाले छह भत्ते खत्म कर दिए हैं। भत्ते खत्म होने से करीब 8 लाख कर्मचारियों को नुकसान होगा।
अपर मुख्य सचिव वित्त संजीव मित्तल ने बृहस्पतिवार को इसका शासनादेश जारी कर दिया। उन्होंने कहा कि जिन भत्तों को खत्म किया गया है, उनकी प्रासंगिकता नहीं रह गई थी। पूर्व में किसी भी शासनादेश द्वारा स्वीकृत ये भत्ते तत्काल प्रभाव से समाप्त किए जा रहे हैं।ये भत्ते हुए खत्म1. द्विभाषी प्रोत्साहन भत्ता : 100 व 300 रुपये प्रतिमाह। अब द्विभाषी टाइपिंग ही अनिवार्य अर्हता है।2. कंप्यूटर संचालन व प्रोत्साहन भत्ता : अब अनिवार्य अर्हता।3. स्नातकोत्तर भत्ता : अधिकतम 4500 रुपये।4. कैश हैंडलिंग भत्ता : कैशियर, एकाउंटेंट, स्टोरकीपर को नगदी भंडारों व मूल्यवान वस्तुओं की रक्षा के एवज में।5. परियोजना भत्ता-सिंचाई विभाग : कार्यस्थल के पास आवासीय सुविधा न होने की एवज में दिया जाता था।6. स्वैच्छिक परिवार कल्याण प्रोत्साहन भत्ता : सीमित परिवार के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए। न्यूनतम 210 रुपये, अधिकतम 1000 रुपये तक।
कर्मचारियों के भय से दबा दिया गया था फैसला
कर्मचारियों का स्वैच्छिक परिवार कल्याण प्रोत्साहन भत्ता समेत छह भत्ते खत्म करने का फैसला पिछली कैबिनेट बैठक में ही ले लिया गया था, मगर कर्मचारियों की संभावित नाराजगी को भांपकर आदेश दबा दिया गया।
बताते चलें ‘अमर उजाला’ ने राज्य वेतन समिति द्वारा इन भत्तों को समाप्त करने की सिफारिश का विस्तार से खुलासा किया था। 20 अगस्त को कैबिनेट की बैठक में इन प्रस्तावों पर निर्णय के लिए रखे जाने की भी जानकारी दी थी।
मगर, कैबिनेट ब्रीफिंग में राज्य सरकार के प्रवक्ताओं ने केवल 18 मामलों पर ही निर्णय की जानकारी दी थी। इन भत्तों पर निर्णय को दबा दिया। बताया जा रहा है कि इस फैसले से कर्मचारियों में नाराजगी बढ़ सकती थी, इसलिए उस समय इसकी जानकारी नहीं दी गई थी।
वेतन समिति की सिफारिश खारिज
राज्य वेतन समिति ने सिफारिश की थी कि जिन कर्मियों को स्वैच्छिक परिवार कल्याण भत्ता, द्विभाषी प्रोत्साहन व कंप्यूटर संचालन भत्ता वर्तमान में मिल रहा है, उन्हें यथावत बनाए रखा जाए। आगे से यह भत्ता मंजूर न किया जाए। लेकिन अपर मुख्य सचिव वित्त के आदेश के बाद पहले से कर्मियों को मिल रहे ये भत्ते भी समाप्त कर दिए गए हैं।
बताया जा रहा है कि कार्यरत करीब 15 लाख से अधिक कर्मियों में से लगभग 8 लाख को इसका फायदा मिल रहा था। हालांकि वित्त विभाग ऐसे भत्तों के लाभार्थियों की वास्तविक संख्या नहीं बता सका।
भत्ते समाप्त करने के तर्क
परियोजना भत्ता : सिंचाई विभाग की बड़ी परियोजनाओं व जल विद्युत परियोजनाओं में कार्यस्थल अथवा कार्यस्थल के पास आवासीय सुविधा न होने के एवज में परियोजना से जुड़े अधिकारियों व कर्मचारियों को परियोजना भत्ता दिया जाता था।
परियोजना चालू होने पर तीन वर्ष बाद खत्म कर दिया जाता था। परियोजना भत्ता मकान किराया भत्ते के एवज में दिया जाता था। अब सभी वर्गीकृत नगरों व अवर्गीकृत क्षेत्रों के लिए मकान किराया भत्ता स्वीकृत हो रहा है। ऐसे में परियोजना भत्ते का अब कोई औचित्य नहीं है।
जानें इन पांच प्रकार के भत्ते, जो खत्म किए गए
कैश हैंडलिंग भत्ता : कैशियर, अकाउंटेंट, स्टोरकीपर व अन्य अधीनस्थ कर्मचारियों, जिन्हें नकदी भंडारों अथवा मूल्यवान वस्तुओं की रक्षा की जिम्मेदारी होती है, उनसे तय राशि जमा कराई जाती है। इसके बदले ऐसे कर्मियों को कैश हैंडलिंग भत्ता दिया जाता था। सरकार के मुताबिक नकद भुगतान की व्यवस्था लगभग समाप्त हो गई है। लिहाजा, इस भत्ते की कोई आवश्यकता नहीं रह गई।
स्नातकोत्तर भत्ता : चूंकि यह सुविधा वेतन व स्नातकोत्तर भत्ते के योग 4500 रुपये अधिकतम निर्धारित थी। सातवें पुनरीक्षित वेतन मैट्रिक्स में न्यूनतम वेतन 18 हजार रुपये कर दिया गया है। ऐसे में स्नातकोत्तर भत्ते का कोई औचित्य नहीं रह गया है।
द्विभाषी प्रोत्साहन भत्ता : सचिवालय तथा राजकीय कार्यालयों में कार्यरत द्विभाषी टाइपिस्ट तथा आशुलिपिकों, वैयक्तिक सहायकों व निजी सचिवों को वर्तमान में क्रमश: 100 व 300 रुपये प्रतिमाह द्विभाषी प्रोत्साहन भत्ता मिल रहा है। अब इन सेवाओं में द्विभाषी टाइपिंग को अनिवार्य अर्हता के रूप में शामिल किया जा चुका है।
कंप्यूटर संचालन भत्ता : कंप्यूटर संचालन के लिए भी अनिवार्य अर्हता के रूप में सेवाओं में शामिल किया जाने लगा है।
स्वैच्छिक पविार कल्याण भत्ता : तर्क दिया गया है कि केंद्र सरकार ने सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियों की समीक्षा के बाद इस भत्ते को निरस्त कर दिया है। उत्तराखंड सरकार ने भी इसे निरस्त कर दिया है।
ये कहते हैं अपर मुख्य सचिव वित्त
मामले पर अपर मुख्य सचिव वित्त संजीव मित्तल का कहना है कि पांच भत्ते पूरी तरह से अप्रसांगिक हो गए थे। स्वैच्छिक परिवार कल्याण भत्ते का ही अधिक कर्मचारी लाभ पा रहे थे। 1976 में इस भत्ते को देने की शुरुआत की गई थी। इसके लिए शर्त थी कि कर्मी की उम्र 40 वर्ष से अधिक हो और दो से ज्यादा बच्चे न हों। स्वैच्छिक परिवार कल्याण भत्ते को केंद्र सरकार समाप्त कर चुकी है। उत्तराखंड सरकार ने भी समाप्त कर दिया है। लोग सीमित परिवार को लेकर अब जागरूक हो गए हैं। अब ये भत्ते औचित्यपूर्ण नहीं रह गए हैं।
वहीं, सचिवालय संघ के अध्यक्ष यादवेंद्र सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री सीमित परिवार वालों को देशभक्त बता रहे हैं। लेकिन, प्रदेश सरकार सीमित परिवार रखने के लिए दिए जा रहे भत्ते को समाप्त कर रही है। कर्मचारियों को मिल रहे भत्ते जब बढ़ाने की जरूरत थी, तब इन्हें समाप्त कर सरकार ने कर्मचारी हितों पर कुठाराघात किया है। इससे कर्मचारी वर्ग में काफी निराशा है। सीमित परिवार वाले सरकारी सेवकों को मिल रहे प्रोत्साहन भत्ते को समाप्त करना देश व प्रदेश हित में उचित नहीं कहा जा सकता।