अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि: वो कविता जिससे बौखला गया था पाकिस्तान

खास बातें
इस कविता के जरिए उन्होंने पाकिस्तान की नापाक हरकतों और उसे समर्थन देने वाले देशों को जमकर कोसा। वाजपेयी की यह कविता सोशल मीडिया पर भी खूब पढ़ी और शेयर की जाती है। ये है उनकी कविता जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को जमकर कोसा है।
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतंत्रता भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतंत्रता, अश्रु स्वेद शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता।
त्याग तेज तपबल से रक्षित यह स्वतंत्रता, दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता।
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो, चिंगारी का खेल बुरा होता है।
औरों के घर आग लगाने का जो सपना, वो अपने ही घर में सदा खरा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो, अपने पैरों आप कुल्हाड़ी नहीं चलाओ।
ओ नादान पड़ोसी अपनी आंखे खोलो, आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ।
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है? तुम्हें मुफ्त में मिली न कीमत गई चुकाई।
अंग्रेजों के बल पर दो टुकड़े पाए हैं, मां को खंडित करते तुमको लाज ना आई ?
अमेरिकी शस्त्रों से अपनी आजादी को दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो।
दस बीस अरब डॉलर लेकर आने वाली बरबादी से तुम बच लोगे यह मत समझो।
धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो।
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो।
जब तक गंगा मे धार, सिंधु मे ज्वार, अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,
स्वातंत्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे अगणित जीवन यौवन अशेष।
अमेरिका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध, काश्मीर पर भारत का सर नही झुकेगा
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते, पर स्वतंत्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा।