लोकसभा के पहले सत्र में हुआ रिकॉर्ड काम, लेकिन एक काम फिर भी रह गया

खास बातें
उस पहले यूपीए की सरकार में 2009 में सत्र शुरू होने के छठे दिन भाजपा के वरिष्ठ सांसद करिया मुंडा को उपाध्यक्ष चुना गया था। उससे पहले 2004 में यूपीए की पहली सरकार बनने पर पहला सत्र शुरू होने के पहले सप्ताह में ही चरनजीत सिंह अटवाल को लोकसभा का उपाध्यक्ष बना दिया गया था। वे भाजपा के सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल के वरिष्ठ सांसद थे।
1996 में भी कांग्रेस के समर्थन से देवगौड़ा के नेतृत्व में बनी जनता दल सरकार के कार्यकाल में भाजपा के वरिष्टतम सांसदों में से एक सूरजभान को इस पद के लिए सर्वसम्मति से चुना गया था। वह भी पहला सत्र शुरू होने के 19वें दिन।
केवल दो बार ही यह अवधि 30 दिनों से ज्यादा हुई है। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद अन्ना डीएमके के एम थंबीदुरई को लोकसभा का सत्र आरंभ होने के चौतीसवें दिन इस पद पर निर्विरोध चुना गया था। और उससे पहले 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद लक्षद्वीप से आठवीं बार लगातार सांसद चुने गए कांग्रेस के पीएम सईद को जब लोकसभा का उपाध्यक्ष बनाया गया तो लोकसभा का सत्र शुरू हए 59 दिन हो चुके थे।
दरअसल, तब एनडीए सरकार इस पद अपनी सांसद रीता वर्मा को आसीन कराना चाहता था। जबकि विपक्ष की पसंद पीएम सईद थे। विपक्ष द्वारा परंपराओं का दुहाई देने और ममता बनर्जी के आग्रह पर वाजपेयी के दख़ल के बाद पीएम सईद ही लोकसभा के उपाध्यक्ष बने। हालाँकि कारगिल युद्ध के बाद 1999 में हुए चुनाव में जब वाजपेयी सरकार वापस बनी तो पहला सत्र शुरू होने के छठे दिन ही सईद को दोबारा उपाध्यक्ष पद के लिए चुन लिया गया।
यह है संवैधानिक स्थिति
सत्रहवीं लोकसभा
क्या है विकल्प
ऐसे में विकल्प 18 सांसदों वाली शिवसेना या 16 सांसदों वाली जद यू है। लेकिन यह दोनों सत्तारूढ गठबंधन का हिस्सा हैं। फिर 10 सांसदों वाली बसपा या 9 सांसदों वाली तेलंगाना राष्ट्र समिति का नंबर है।