रेडिएशन के जरिए अमेरिका-यूरोप में बढ़ेगा फल-सब्जियों का निर्यात
fruits and vegetables - फोटो : bharat rajneeti
खास बातें
- सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए नई रणनीति पर शुरू किया काम
- 10,236.93 करोड़ का फल-सब्जी निर्यात किया था भारत ने पिछले साल
- बिना रेडिएशन फल-सब्जियों का आयात नहीं करते अमेरिका और कुछ यूरोपीय देश
- रेडिएशन से अधिक दिनों तक खराब नहीं होतीं फल-सब्जियां, कीड़ों से भी छुटकारा
सरकार ने 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए फल और सब्जियों का निर्यात बढ़ाने की रणनीति पर अमल करना शुरू कर दिया है। इस क्रम में अमेरिका और यूरोपीय देशों में भारतीय फल और सब्जियों की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए अब रेडिएशन (परमाणु विकिरण) का ज्यादा-से-ज्यादा इस्तेमाल किया जाएगा। इससे फल और सब्जियां अधिक दिनों तक खराब नहीं होती हैं। साथ ही इनके अंदर से बीमारियों वाले जीवाणु और परजीवी मर जाते हैं।
केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ ने बताया कि भारत फल और सब्जियों के निर्यात में वृद्धि कर किसानों की आमदनी बढ़ाने में सक्षम हो सकता है। इनका निर्यात बढ़ाने के लिए हाल में कृषि मंत्रालय और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की एक उच्चस्तरीय बैठक हुई थी। इसमें फल और सब्जियों को निर्यात करने से पहले उन्हें अनिवार्य रूप से रेडिएशन से गुजारने पर चर्चा हुई। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2018-19 में भारत ने 10,236.93 करोड़ रुपये के फल और सब्जियों का निर्यात किया था। इसमें से फलों का निर्यात 4,817.35 करोड़ रुपये और सब्जियों का निर्यात 5,419.48 करोड़ रुपये का रहा था।
इसलिए अमेरिका नहीं करता आयात
केंद्र सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग के अंतर्गत काम करने वाले भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) में नाभिकीय कृषि एवं जैव तकनीक विभाग के वैज्ञानिक डॉ. जे सुब्रमणियन ने विशेष बातचीत में बताया कि आम, पपीता और केला जैसे फलों को लो रेडिएशन के जरिए निर्यात के योग्य बनाया जा सकता है।
उन्होंने बताया कि फलों में पनपने वाले जीवाणुओं और परजीवियों से होने वाली बीमारियां दुनिया के अनेक हिस्सों में एक बड़ी समस्या है। इसी कारण अमेरिका और कुछ यूरोपीय देश बिना रेडिएशन के भारतीय फलों के आयात की अनुमति नहीं देते हैं।
रेडिएशन से निर्यात खर्च भी घटेगा
डॉ. जे सुब्रमणियन ने बताया कि भारत की जलवायु ऐसी है कि यहां फलों में आसानी से ऐसे परजीवी पनप जाते हैं। ऐसे में यदि फलों को लो रेडिएशन से गुजारा जाए तो इन बीमारियों से मुक्ति मिल ही जाती है। साथ ही उसके पकने की प्रक्रिया भी धीमी हो जाती है। इससे फलों को हवाई मार्ग के बदले समुद्री मार्ग से भी भेजा जा सकता है, जिसमें खर्च भी कम आएगा। इसी तरह आलू और प्याज जैसी सब्जियों को भी लो रेडिएशन से गुजारा जाए तो उनमें अंकुरण की समस्या खत्म हो जाएगी। साथ ही इसमें वाष्पोत्सर्जन रुक जाता है, जिससे आलू ताजा दिखता है।
रेडिएशन के बाद बढ़ जाती हैं कीमतें
ट्रेड प्रमोशन काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मोहित सिंगला ने बताया कि फलों और सब्जियों की कीमतें रेडिएशन के बाद बढ़ जाती हैं। इससे भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धी क्षमता कम हो जाती है। उनका कहना है कि 15 रुपये प्रति किलो वाले भारतीय आम की कीमत रेडिएशन के बाद बढ़कर 25 रुपये प्रति किलो हो जाती है।
दूसरी ओर, दक्षिण अमेरिकी और कुछ पूर्वी एशियाई देशों के आम तथा अन्य फलों की बेहतर किस्में होती हैं। उसमें परजीवी कीड़े नहीं पनपते हैं। इसलिए अमेरिका और यूरोपीय देशों में बिना रेडिएशन के भी इनका निर्यात करते हैं। साथ ही उनके फल हमारे फलों से सस्ते पड़ते हैं। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में यदि सरकार से कुछ सब्सिडी मिले तो भारतीय निर्यातकों की प्रतिस्पर्धी क्षमता बढ़ेगी।