पोर्न की लत से बढ़ रहा लोगों में गुस्सा, डरावने हैं तथ्य, यह बदलाव दिखें तो हो जाएं सावधान

प्रतीकात्मक तस्वीर : bharat rajneeti
नशे की लत के बाद चिकित्सकों के सामने पोर्न एडिक्शन नई चुनौती बनकर उभरा है। मानसिक रोग विशेषज्ञों के पास आने वाले मरीजों में 20 से 28 फीसदी इसके शिकार हैं। आगरा में आयोजित इंडियन एसोसिएशन ऑफ बायोलॉजिकल साइकियाट्री (आईएबीपी) के राष्ट्रीय अधिवेशन में विशेषज्ञों ने इस पर व्याख्यान दिए। फतेहाबाद रोड स्थित होटल में शुक्रवार को दो दिवसीय कॉन्फ्रेंस के पहले दिन आईएबीपी के सचिव डॉ. राजेश नागपाल ने कहा कि अब पोर्न एडिक्शन के 14 से 40 साल तक के मरीज आ रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा 30 से 40 साल के 60 से 70 फीसदी मरीज हैं। यह कामकाजी हैं, जो परिवार से दूर या फिर एकल रहते हैं।
यह 24 घंटों में से तीन से पांच घंटे तक अश्लील सामग्री देखते हैं। पोर्न एडिक्शन के लिए अश्लील फिल्म, साहित्य, मसाज, शारीरिक संबंध का उपयोग करते हैं। ऐसा न होने पर चिड़चिड़ापन, घबराहट, बेचैनी, गुस्सा आना जैसी समस्याएं होने लगती है। ऐसे मरीजों में यौन अपराध के भाव तीन गुना तक बढ़ जाते हैं।


यह 24 घंटों में से तीन से पांच घंटे तक अश्लील सामग्री देखते हैं। पोर्न एडिक्शन के लिए अश्लील फिल्म, साहित्य, मसाज, शारीरिक संबंध का उपयोग करते हैं। ऐसा न होने पर चिड़चिड़ापन, घबराहट, बेचैनी, गुस्सा आना जैसी समस्याएं होने लगती है। ऐसे मरीजों में यौन अपराध के भाव तीन गुना तक बढ़ जाते हैं।

अधिवेशन को संबोधित करते कुलपति डॉ. अरविंद दीक्षित - फोटो : bharat rajneeti
इससे पहले डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. अरविंद दीक्षित ने कॉन्फ्रेस का उद्घाटन करते हुए बिगड़ी दिनचर्या और तनाव को मानसिक बीमारियों की बड़ी वजह बताया। इस दौरान विशिष्ट अतिथि डॉ. आरके जैन, डॉ. सुबोध कुमार, डॉ. केसी गुरनानी, डॉ. दिनेश राठौर, डॉ. एसपी गुप्ता, डॉ. अमरप्रीत सिंह, डॉ. जिन माली आदि मौजूद रहे।
बच्चों में इंटरनेट गेम्स की आदत से स्थिति खतरनाक : डॉ. फुंग टी. हे
वियतनाम के डॉक्टर फुंग टी. हे ने कहा कि डिप्रेशन, तनाव और चिंता ग्लोबल बीमारी बन गई है। यह विकसित और विकासशील देशों के लोगों में लगभग समान रूप से देखी जा रही है। उन्होंने विकसित देशों के बच्चों में इंटरनेट गेम्स एडिक्शन को खतरनाक बताया। कहा कि 32 फीसदी 13 से 20 साल के किशोर और युवा इसकी चपेट में हैं। इन्हीं के चलते यह हिंसक घटनाएं करते हैं और स्टंट कर खुद की जान पर भी खेल जाते हैं।
ई-सिगरेट से हो रहा था दिमाग की नस को नुकसान: डॉ. वेणु गोपाल
डॉ. वेणुगोपाल झांवर ने बताया कि ई-सिगरेट के उच्च तापमान से दिमाग की नस को नुकसान पहुंच रहा था। इसकी लत पूरी न होने पर मरीज घबराहट महसूस करता है, कंपन भी हो सकता है। गुस्सा, तोड़फोड़ करना भी करने लगता है। इससे 20 से 30 साल के युवा ज्यादा शिकार हो रहे थे।
बच्चों में इंटरनेट गेम्स की आदत से स्थिति खतरनाक : डॉ. फुंग टी. हे
वियतनाम के डॉक्टर फुंग टी. हे ने कहा कि डिप्रेशन, तनाव और चिंता ग्लोबल बीमारी बन गई है। यह विकसित और विकासशील देशों के लोगों में लगभग समान रूप से देखी जा रही है। उन्होंने विकसित देशों के बच्चों में इंटरनेट गेम्स एडिक्शन को खतरनाक बताया। कहा कि 32 फीसदी 13 से 20 साल के किशोर और युवा इसकी चपेट में हैं। इन्हीं के चलते यह हिंसक घटनाएं करते हैं और स्टंट कर खुद की जान पर भी खेल जाते हैं।
ई-सिगरेट से हो रहा था दिमाग की नस को नुकसान: डॉ. वेणु गोपाल
डॉ. वेणुगोपाल झांवर ने बताया कि ई-सिगरेट के उच्च तापमान से दिमाग की नस को नुकसान पहुंच रहा था। इसकी लत पूरी न होने पर मरीज घबराहट महसूस करता है, कंपन भी हो सकता है। गुस्सा, तोड़फोड़ करना भी करने लगता है। इससे 20 से 30 साल के युवा ज्यादा शिकार हो रहे थे।
डिप्रेशन की दवाओं की बढ़ रही खपत: डॉ राहुल सिंह

अधिवेशन में उपस्थित चिकित्सक - फोटो : bharat rajneeti
गुजरात के डॉ. राहुल सिंह ने बताया कि अपेक्षा के अनुसार सफलता न मिलने या फिर एकाकी जीवन से डिप्रेशन का मर्ज बढ़ रहा है। इससे इस मर्ज की दवाओं की खपत भी बढ़ रही है। मेट्रो शहर में इसके मरीज ज्यादा पाए जा रहे हैं। भारत से विदेशों में भी खूब दवाओं की सप्लाई हो रही है।
इलाज और काउंसलिंग से ठीक हो रहे ड्रग एडिक्शन के मरीज
डॉ. यूसी गर्ग ने बताया कि ड्रग एडिक्शन के मरीज बढ़ रहे हैं। अफीम, गांजा, चरस के अलावा मेथ, याबा के नशे के लत वाले मरीज भी आने लगे हैं। यहां तक कि मानसिक दवाओं और कफ सीरप से भी नशा की पूर्ति कर रहे हैं। ऐसे मरीजों का दवाओं और काउंसलिंग से इलाज किया जा रहा है। मरीज ठीक भी हो रहे हैं।
इलाज और काउंसलिंग से ठीक हो रहे ड्रग एडिक्शन के मरीज
डॉ. यूसी गर्ग ने बताया कि ड्रग एडिक्शन के मरीज बढ़ रहे हैं। अफीम, गांजा, चरस के अलावा मेथ, याबा के नशे के लत वाले मरीज भी आने लगे हैं। यहां तक कि मानसिक दवाओं और कफ सीरप से भी नशा की पूर्ति कर रहे हैं। ऐसे मरीजों का दवाओं और काउंसलिंग से इलाज किया जा रहा है। मरीज ठीक भी हो रहे हैं।
यह दिखें बदलाव तो हो जाएं सावधान
- तीन घंटे से ज्यादा इंटरनेट पर कोई समय बिता रहे हैं।
- पढ़ाई में कम नंबर आना, कामकाज प्रभावित होना।
- परिवार के सदस्यों के साथ समय कम बिताना।
- नींद कम आ रही है, सेहत कमजोर हो रही है।
इन बातों का रखें ख्याल
- बच्चों के साथ समय बिताएं। स्कूल-कॉलेज की गतिविधि के बारे में जानकारी करें।
- उसके दोस्तों के बारे में जानकारी रखें। मित्रवत रहकर उनकी समस्याएं सुनें।
- गुमसुम रहने पर उससे बातें करें, निराशा भरी बातें करें तो उसे प्रेरित करें।
- इंटरनेट, मोबाइल पर अतिरिक्त समय बिताने पर गलत-सही की काउंसलिंग करें।
- पढ़ाई में कम नंबर आना, कामकाज प्रभावित होना।
- परिवार के सदस्यों के साथ समय कम बिताना।
- नींद कम आ रही है, सेहत कमजोर हो रही है।
इन बातों का रखें ख्याल
- बच्चों के साथ समय बिताएं। स्कूल-कॉलेज की गतिविधि के बारे में जानकारी करें।
- उसके दोस्तों के बारे में जानकारी रखें। मित्रवत रहकर उनकी समस्याएं सुनें।
- गुमसुम रहने पर उससे बातें करें, निराशा भरी बातें करें तो उसे प्रेरित करें।
- इंटरनेट, मोबाइल पर अतिरिक्त समय बिताने पर गलत-सही की काउंसलिंग करें।