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बुधवार, 16 अक्तूबर 2019

अभिजीत के गुरु अंजन मुखर्जी बोले- हर शिक्षक को इस तरह की गुरुदक्षिणा का रहता है इंतजार

अभिजीत के गुरु अंजन मुखर्जी बोले- हर शिक्षक को इस तरह की गुरुदक्षिणा का रहता है इंतजार

अभिजीत बनर्जी
अभिजीत बनर्जी - फोटो : bharat rajneeti
गंगा ढाबा और जेएनयू के पत्थर... मुझे 36 साल पहले की बहुत यादें तो ताजा नहीं हैं पर अपने गुरु होने पर गर्व महसूस कर रहा हूं। जेएनयू से ऐसा नाता रहा कि लाख चाहने पर भी कोई भूल नहीं सकता है। फिर चाहें एक प्रोफेसर के रूप में मैं (प्रो. अंजन मुखर्जी) या फिर प्रोफेसर व जेएनयू के पूर्व छात्र व नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी। देश-दुनिया के हर मुद्दे पर जेएनयू के आम छात्रों की तरह अभिजीत भी बेबाक राय रखते थे। वे जेएनयू की संस्कृति को उतना ही पसंद करते थे, जितना आज की पीढ़ी। यही कारण है कि जब 2016 में जेएनयू छात्रों पर कटाक्ष हुआ तो उन्होंने अपने लेख के माध्यम से लिखा कि नीड थिंकिंग स्पेसेज लाइक जेएनयू एंड द गर्वनमेंट मस्ट स्टे आउट ऑफ इटष। इसका मतलब था कि हमें जेएनयू जैसे सोचने-विचारने वाली जगह की जरूरत है और सरकार को निश्चित तौर पर वहां से दूर रहना चाहिए।

अमर उजाला से बात करते हुए प्रो. मुखर्जी ने कहा कि गंगा ढाबा उस जमाने में भी उतना ही छात्रों और शिक्षकों को पसंद था, जितना आज। इसलिए उन दिनों भी हमारे विभाग के छात्र वहां जाकर देश-दुनिया के हर मुद्दे पर बात करते थे। इसमें अभिजीत भी शामिल था।

अभिजीत को नोबेल मिला और मशहूर मैं हो गया....मुखर्जी कहते हैं कि हर कोई मेरी बात जानना चाहता हैं कि मैं क्या सोचता हूं। बस इतना कि हर शिक्षक को ऐसे ही शिष्य की गुरुदक्षिणा का इंतजार रहता है। मेरा कोई खास रोल नहीं है, लेकिन मेरा नाम अभिजीत के खास प्रोफेसर के रूप में जुड़ गया। 

आज तक जेएनयू का नाम उनका पीछा करता

जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर कहते हैं कि जेएनयू से अभिजीत का नाम कभी छूटा ही नहीं। एक इंटरव्यू में खुद अभिजीत ने इस बात को माना था । अभिजीत ने कहा था कि मेरे परिजन दिल्ली ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला दिलाना चाहते थे पर मुझे जेएनयू की खूबसूरती व सादगी ने जकड़ लिया। यहां बेबाक राय औरों से अलग थी। किसी भी मुद्दे पर अपनी बात कहने का साहस देना जेएनयू से मिला। इसी लेख में अभिजीत ने मेरा जिक्र किया। तब लगा कि मैं कुछ भूल रहा था। हर मुद्दे पर जब उनसे जेएनयू का नाम जुड़ता तो वह उसी तर्ज पर उससे जुड़ने पर गर्व भी महसूस करते। 

अभिजीत को खाना बनाना भी था पसंद 

जेएनयू के पूर्व छात्र आनंद का कहना है कि हम उनसे मिले नहीं थे पर नोटबंदी पर जब मोदी सरकार की आलोचना की, तब जाकर उनके बारे में पता चला। इसी दौरान पता चला कि उन्हें गंगा ढाबा बेहद पसंद था। यहां दोस्तों के साथ बैठकर गप्पे मारते हुए खाना खाना, पत्थरों पर पढ़ाई के साथ गाने गाना भी बेहद पसंद था। जब भी कैंपस में विरोध प्रदर्शन होता है तो पता चलता है कि ऐसा इससे पहले 1983 में एडमिशन रिफॉर्म को लेकर प्रदर्शन के दौरान तीन सौ छात्रों को गिरफ्तार किया गया था, उसमें अभिजीत भी शामिल थे। अभिजीत करीब दस दिन तक तिहाड़ जेल में रहे थे। 

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