हिमांशु मिश्र |

- नागरिकता बिल के लिए सरकार ने अभी से कसी कमर
- शीत सत्र में हर हाल में पारित कराने की बनाई योजना
- ज्यसभा में संख्या के लिए टीआरएस, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस पर नजर
- एनआरसी से बाहर रहे असम के हिंदुओं को बचाने की है रणनीति
इस बिल की राह में राज्य सभा में संख्या बल की कमी को दूर करने की अभी से तैयारी शुरू कर दी गई है। हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव संपन्न होते ही पार्टी राजग के इतर दलों टीआरएस, बीजेडी और वाईएसआर कांग्रेस से सीधा संपर्क साधेगी।
दरअसल असम में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर का काम पूरा होते ही भाजपा पूर्वोत्तर के राज्यों में उलझ गई है। बड़ी संख्या में हिंदुओं के एनसीआर के दायरे से बाहर होने के कारण सरकार के सामने इस बिल को कानूनी जामा पहनाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। इस बिल में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए धार्मिक अल्पसंख्यकों मसलन हिंदू, सिख, इसाई, बौद्ध, जैन समुदाय के लोगों को मामूली शर्तों पर भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। राज्यसभा में जरूरी संख्याबल न होने के कारण सरकार इस बिल को अब तक कानूनी जामा नहीं पहना सकी है।
टीआरएस, बीजेडी की भूमिका अहम
सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री के मुताबिक अगर टीआरएस, बीजेडी और वाईएसआर (कुल 15 सदस्य) का साथ मिल जाए तो उच्च सदन में बहुमत के रोड़े को हटाया जा सकता है। इन दलों को बिल को लेकर कोई बड़ी आपत्ति नहीं है। ऐसे में फैसला किया गया है कि विधानसभा चुनाव संपन्न होते ही इन दलों के नेताओं से संपर्क साध कर इन्हें बिल के समर्थन के लिए राजी किया जाए। नाराज सहयोगी जदयू, एजीपी, बीपीएफ, एनपीएफ और एसडीएफ को भी मनाया जाए।अगर ये दल नहीं मानते तो बहुमत हासिल करने केलिए इन्हें उच्च सदन में मतदान के दौरान अनुपस्थित रहने के लिए मनाया जाएगा। वैसे भी बहुमत के अभाव के बावजूद तीन तलाक बिल और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले पर राज्यसभा की मुहर लगाने में कामयाब होने के बाद सरकार नागरिकता बिल को भी पारित होने को लेकर आश्वस्त है।