सुप्रीम कोर्ट बताएगा कि मियां-बीवी राजी, तो क्या कुछ कर पाएगा ‘काजी’ - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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गुरुवार, 10 अक्तूबर 2019

सुप्रीम कोर्ट बताएगा कि मियां-बीवी राजी, तो क्या कुछ कर पाएगा ‘काजी’

सुप्रीम कोर्ट बताएगा कि मियां-बीवी राजी, तो क्या कुछ कर पाएगा ‘काजी’

सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : bharat rajneeti

खास बातें

  • बीएसएफ में तैनात एक व्यक्ति की याचिका पर लिया गया फैसला
  • इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज किया था
  • सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार और पत्नी को नोटिस जारी किया
यदि मियां-बीवी राजी हो जाएं, तो क्या ‘काजी’ कुछ कर पाएगा? यह बात सुप्रीम कोर्ट तय करेगा। दरअसल शीर्ष अदालत ने इस बात का परीक्षण करने का निर्णय लिया है कि क्या पति-पत्नी के बीच आपसी समझौते से तलाक होने पर दहेज उत्पीड़न यानी धारा 498ए के तहत दर्ज मुकदमा खत्म हो जाना चाहिए या नहीं। इस मसले पर कर्नाटक हाईकोर्ट में याचिका को खारिज किया जा चुका है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने इस जटिल मसले के परीक्षण का निर्णय बीएसएफ में तैनात एक व्यक्ति की याचिका पर लिया है। बीएसएफ कर्मी ने इस मसले पर अपनी याचिका कर्नाटक हाईकोर्ट में खारिज होने के बाद शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की थी। 

कर्नाटक सरकार और पत्नी को नोटिस भेजकर मांगा जवाब

शीर्ष अदालत की पीठ ने बुधवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्नाटक सरकार व पत्नी को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। साथ ही हाईकोर्ट के आदेश पर भी रोक लगा दी है। इससे फिलहाल पति व उसके परिवार के अन्य सदस्यों के खिलाफ फिलहाल पुलिस की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं होगी। इस मामले में पुलिस पति व अन्य के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर चुकी है।

इससे पहले सुनवाई के दौरान पति की ओर से पेश वकील आनंद संजय एम नुली ने शीर्ष अदालत से कहा कि पति-पत्नी के बीच वैवाहिक विवाद था, जो निजी विवाद की श्रेणी में आता है। पति-पत्नी ने कुछ शर्तों के साथ समझौता करते हुए शादी को तोड़ने का निर्णय लिया था। ऐसे में पूर्व में दायर मुकदमे निरस्त करने में अदालत को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। 

उन्होंने साल 2014 के अर्नेस सिंह बनाम बिहार सरकार मामले का भी उदाहरण दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी द्वारा धारा-498ए के दुरुपयोग के मद्देनजर इस प्रावधान को हलका किया था। वकील ने यह भी दलील दी कि उनका मुवक्किल बीएसएफ में है और फिलहाल जम्मू-कश्मीर में तैनात है, ऐसे में अदालती कार्यवाही में शामिल होना उसके लिए असंभव है।

बेहद जटिल है यह मसला

धारा 498ए के तहत दर्ज अपराध को गैर समझौता योग्य श्रेणी में रखा जाता है। ऐेसे में पक्षकारों के समझौते से मुकदमे को खत्म नहीं किया जा सकता। इस कारण यह मसला बेहद जटिल और महत्वपूर्ण है। कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी अपने आदेश में कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा-498ए गैर समझौता योग्य अपराध होता है, लिहाजा दोनों पक्षों के बीच समझौते से मुकदमे को समाप्त नहीं किया जा सकता। गैर समझौता योग्य अपराध राज्य सरकार के खिलाफ होते हैं।

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