
इस चुनाव में लिकुड पार्टी के कुल एक लाख 16 हजार सदस्यों के लिए देशभर में 106 मतदान केंद्र बनाए गए थे। मुख्य प्रतिद्वंदी गिदोन सार ने अपनी हार स्वीकार कर ली है। वे लंबे समय से लिकुड पार्टी में नेतन्याहू की नीतियों के आलोचक रहे हैं। उन्होंने हार के बाद कहा कि वे नेतन्याहू के नेतृत्व को स्वीकार करते हैं।
जीत के बाद नेतन्याहू ने ट्वीट कर लिखा कि भगवान की मदद से और आपकी मदद से मैं चुनावों में शानदार जीत के लिए लिकुड का नेतृत्व करूंगा और महान उपलब्धियों के लिए इस्राइल का नेतृत्व करता रहूंगा।
नेतन्याहू का कमांडो से प्रधानमंत्री तक का सफर
इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को लोग बीबी नाम से भी पुकारते हैं। उनका जन्म 1949 में तेल अवीव में हुआ था। 1963 में उनका परिवार अमेरिका चला गया जहां उनके इतिहासकार पिता बेंजियन को एक अकादमिक पद दिया गया।18 साल की उम्र में बेंजामिन इस्राइल लौट आए जहां उन्होंने सेना में पांच साल बिताए। इस दौरान उन्होंने इस्राइली सेना की एलीट कमांडो यूनिट 'सायरेत मटकल' में कप्तान के रूप काम किया। इसे भारत की पैरा कमांडो फोर्स के बराबर माना जाता है। उन्होंने 1968 में बेरूत के हवाई अड्डे पर सायरेत मटकल द्वारा डाले गए एक छापे में भाग लिया और 1973 के मध्य पूर्व युद्ध भी लड़ा।
ऑपरेशन थंडरबोल्ट में शहीद हुए थे नेतन्याहू के बड़े भाई
बेंजामिन नेतन्याहू के बड़े भाई जोनाथन नेतन्याहू साल 1976 में युगांडा के एन्तेबे में इस्राइली अपहृत विमान को छुड़ाने के दौरान शहीद हो गए थे। जिसके कारण इनका परिवार पूरे देश में चर्चा में आ गया था। इस विमान का अपहरण अरब आतंकवादियों ने किया था। इस विमान को छुड़ाने के दौरान की गई कार्रवाई को ऑपरेशन थंडरबोल्ट या ऑपरेशन एंतेबे नाम दिया गया।साल 1988 में इस्राइल लौटने के बाद नेतन्याहू राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गए। इसी साल हुए चुनाव में वह अपनी लोकप्रियता के बल पर लिकुड पार्टी के लिए एक सीट जीतकर नेसेट के सदस्य बने। जिसके बाद उन्हें इस्राइल का उप विदेश मंत्री बनाया गया।
बाद में वह लिकुड पार्टी के अध्यक्ष बने और साल 1996 में इजित्ख राबिन की हत्या के बाद हुए चुनाव में इस्राइल के प्रधानमंत्री चुने गए। नेतन्याहू इस्राइल के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने जिसका जन्म आजादी के बाद हुआ था। इसके अलावा उन्होंने देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री बनने का भी गौरव हासिल किया।
उस दौरान इस्राइल और फिलिस्तीन के बीच ओस्लो समझौता को स्वीकार करने के लिए उनकी जमकर आलोचना भी हुई। इस समझौते के तहत इस्राइल हेब्रोन शहर का 80 फीसदी हिस्सा फिलिस्तीनी सरकार को सौंपने और वेस्ट बैंक पर से कब्जा छोड़ने पर सहमति जताई थी।
एरियल शेरोन के प्रधानमंत्री बनते ही हुई सत्ता में वापसी
लेबर पार्टी के नेता एहुद बराक की सरकार भी ज्यादा समय तक सत्ता में नहीं रही और साल 2001 में एरियल शेरोन इस्राइल के नए प्रधानमंत्री बने। एरियल शेरोन उस समय लिकुड पार्टी के नेता थे जो नेतन्याहू के पद छोड़ने के बाद पार्टी के अध्यक्ष बने थे।इसके साथ ही नेतन्याहू की भी सरकार में वापसी हुई और वह पहले विदेश मंत्री और बाद में वित्तमंत्री बने। साल 2005 में वे गाजा पट्टी से इस्राइल के वापसी के कारण सरकार से अगल हो गए। यह समझौता इस्राइल के प्रधानमंत्री एरियल शेरोन और फिलिस्तीन के नेता यासिर अराफात के बीच हुई थी।
लेकिन, साल 2005 में ही तत्कालीन इस्राइली प्रधानमंत्री एरियल शेरोन पक्षाघात के कारण कोमा में चले गए। जिसके बाद नेतन्याहू को फिर से लिकुड पार्टी का नेता चुना गया। साल 2009 में हुए चुनाव में जीत हासिल कर वह दोबारा इस्राइल के प्रधानमंत्री बने। वह 2013 और 2015 में फिर से प्रधानमंत्री पद पर काबिज हुए।