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मंगलवार, 14 जनवरी 2020

दिल्ली चुनावों में किधर जाएगा मुस्लिम मतदाता? आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और भाजपा का ये है गणित

दिल्ली चुनावों में किधर जाएगा मुस्लिम मतदाता?
  • नागरिकता कानून पर कांग्रेस आक्रामक, तो अरविंद केजरीवाल रक्षात्मक रुख अपनाए हुए हैं
  • मुस्लिम मतदाताओं के रुख से तय हो सकती है दिल्ली की सत्ता
देश की मुस्लिम आबादी इस समय कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बेहद संवेदनशील है। नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के मामलों में उसकी आशंकाओं का निवारण अभी भी नहीं हुआ है। इसी बीच जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्रों पर हुई पुलिसिया कार्रवाई ने उसे चौकन्ना कर दिया है।

इस कार्रवाई के विरोध में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहा है। वहीं इन सबके बीच दिल्ली विधानसभा का चुनाव आने के बाद यह सहज सवाल पूछा जाने लगा है कि इस चुनाव में मुस्लिम वोट किधर जाएगा? माना जा रहा है कि अगर यह वोट बैंक पिछले विधानसभा चुनाव की तरह आम आदमी पार्टी के साथ बना रहा, तो वह दुबारा सत्ता में आ सकती है।

इसके उलट अगर यह लोकसभा चुनाव की तरह कांग्रेस के साथ गया, तो इससे कांग्रेस मजबूत होगी। वहीं वोटों और सीटों में संभावित बंटवारा होने पर इसका लाभ भाजपा को मिल सकता है और वह दिल्ली पर काबिज हो सकती है, जो राजधानी की सत्ता से 21 सालों से दूर है।

यही कारण है कि इस चुनाव में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी भी मुसलमान वोटरों को बड़े ध्यान से देख रही है।

क्यों अहम है मुस्लिम वोट

दरअसल, मुसलमान वोटर परंपरागत रूप से कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता रहा है। लेकिन दिल्ली में अब आम आदमी पार्टी के रूप में उसका दूसरा बड़ा दावेदार पैदा हो गया है। माना जा रहा है कि इन वोटरों के दम पर ही आम आदमी पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में बड़ी सफलता मिली थी।

लेकिन माना जाता है कि राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए यह वोट बैंक पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ वापस आया था। यही कारण रहा कि लोकसभा चुनावों में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने शानदार प्रदर्शन किया और सात सीटों में से पांच सीटों पर दूसरे स्थान पर आ गई थी।

कांग्रेस इस चुनाव परिणाम से बेहद उत्साहित है और मान रही है कि विधानसभा चुनाव में भी वह अपना वोट बैंक वापस लाने में कामयाब रहेगी और बेहतर प्रदर्शन करेगी।

लेकिन मुस्लिम वोटरों का आम आदमी पार्टी से कांग्रेस की तरफ खिसकने का सीधा मतलब आप के वोटों का बंटना है। इसका सीधा फायदा भारतीय जनता पार्टी को मिल सकता है। इसलिए माना जा रहा है कि मुस्लिम वोटर इस बार भी टैक्टिकल वोटिंग कर सकता है और वह भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए आप को सपोर्ट कर सकता है।

अगर ऐसा होता है तो आम आदमी पार्टी फिर से दिल्ली की सत्ता पर मजबूती के साथ काबिज हो सकती है।

कांग्रेस को इसलिए है उम्मीद

दिल्ली कांग्रेस के एक शीर्ष नेता ने अमर उजाला से कहा कि मुसलमान यह देख रहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम पर उसकी लड़ाई कौन लड़ रहा है? कांग्रेस लगातार उसके मुद्दों को उठा रही है और केंद्र के सामने डटकर खड़ी है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने लगातार उसकी आवाज बुलंद की है।

कांग्रेस नेता शशि थरूर वहां जाकर प्रदर्शनकारियों के साथ खड़े हैं। दिल्ली कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा वहां जाकर उनसे अपनी सहानुभूति व्यक्त कर चुके हैं। वहीं अरविंद केजरीवाल इस मामले पर पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं। उन्होंने इसका कड़ा विरोध दर्ज कराना तो दूर जामिया या शाहीन बाग तक जा भी नहीं सके हैं।

ऐसे में मुसलमान वोटर उसे ही चुनेगा क्योंकि कांग्रेस ही उनकी लड़ाई लड़ रही है।

भाजपा बोली, हमारी लड़ाई 51 फीसदी वोटों की

दिल्ली भाजपा के महामंत्री राजेश भाटिया ने मुस्लिम मतदाताओं के सवाल पर कहा कि यह बात बिलकुल गलत है कि मुसलमान वोटर भाजपा को वोट नहीं देता। उनके मुताबिक तीन तलाक विरोधी कानून लाकर केंद्र ने प्रगतिशील मुसलमानों को अपने साथ जोड़ा है और इनका वोट भाजपा को मिलेगा।

राजिंदर नगर सीट से भाजपा टिकट की दावेदारी में लगे भाटिया का कहना है कि पार्टी अध्यक्ष अमित शाह उनसे हर सीट पर 51 फीसदी वोटरों को अपने साथ जोड़ने की बात कहते हैं। इसलिए उनके लिए यह बात मायने नहीं रखता कि कोई वर्ग किसे वोट कर रहा है।

उनकी कोशिश सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ते हुए हर सीट पर आधे से अधिक मतदाताओं को अपने साथ लाने की रहेगी। भाजपा नेता के मुताबिक लोकसभा चुनाव में इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए उन्होंने हर सीट पर 51 फीसदी से अधिक वोट हासिल किया था और विधानसभा चुनाव में भी यह क्रम बना रहेगा।

लोकसभा चुनाव 2019 में ये रहे थे परिणाम

पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा को कुल 56.58 फीसदी वोट मिले थे। उसके वोटिंग परसेंटेज में 10.18 फीसदी का उछाल आया था। इस चुनाव में कांग्रेस कुल 22.46 फीसदी वोटों के साथ दूसरे स्थान पर तो 18 फीसदी वोटों के साथ आम आदमी पार्टी तीसरे स्थान पर रही थी।

अगर सीट के अनुसार बात करें, तो चांदनी चौक से भाजपा के टिकट पर जीते डॉक्टर हर्षवर्धन को 52.94 फीसदी वोट मिले थे। उत्तर-पूर्वी सीट से जीते मनोज तिवारी को 53.90 फीसदी वोट मिला था। पूर्वी दिल्ली से भाजपा उम्मीदवार गौतम गंभीर को 55.35 फीसदी, तो नई दिल्ली सीट से मीनाक्षी लेखी को 54.77 फीसदी वोट मिला था।

उत्तर-पश्चिम सीट से पहली बार चुनावी मैदान में उतरे हंसराज हंस को 60.49 फीसदी वोट मिला था, तो पश्चिमी दिल्ली सीट से प्रवेश साहिब सिंह वर्मा को 60.05 फीसदी वोट मिला था। दक्षिण दिल्ली सीट से भाजपा उम्मीदवार रमेश बिधूड़ी 56.58 फीसदी वोट पाने में कामयाब रहे थे।

इस तरह दिल्ली की सातों सीटों पर भाजपा आधे से अधिक वोट पाने में कामयाब रही थी। अगर विधानसभा क्षेत्रों के हिसाब से तुलना करें, तो भाजपा दिल्ली की 65 सीटों पर आगे रही थी, तो कांग्रेस ने पांच सीटों पर बढ़त हासिल की थी।

आम आदमी पार्टी किसी भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त बनाने में नाकाम रही थी। बूथों के लिहाज से भी भाजपा दिल्ली के बारह हजार से ज्यादा बूथों पर नंबर एक रही थी।

इन सीटों पर मुस्लिम मतदाता प्रभावी

माटिया महल, बल्लीमारान, ओखला, सीलमपुर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, वजीरपुर और तुगलकाबाद मुस्लिम बहुल आबादी वाली सीटें हैं, जहां हार और जीत मुस्लिम मतदाता ही तय करते हैं। वहीं तिमारपुर, त्रिलोकपुरी, गांधीनगर, शकूरबस्ती और सदर बाजार जैसे क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में रहती है। यही कारण है कि कोई भी दल मुस्लिम मतदाताओं को नजरंदाज नहीं कर सकता।

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