- कोवाक्सिन पर बीटा और डेल्टा एक जैसा दिखा रहे हैं असर, कोविशील्ड का भी 40 फीसदी कम असर
- गंभीर वैरिएंट और वैक्सीन के असर पर भारतीय वैज्ञानिकों को मिले हैं परिणाम
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बुधवार, 30 जून 2021
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Important : डेल्टा से वैक्सीन का असर 60% हुआ कम, फिर भी जान बचाने के लिए दो खुराक जरूरी
Important : डेल्टा से वैक्सीन का असर 60% हुआ कम, फिर भी जान बचाने के लिए दो खुराक जरूरी
देश में फैला कोरोना का डेल्टा वैरिएंट वैक्सीन का असर कम करने की क्षमता रखता है। भारतीय वैज्ञानिकों ने गंभीर वैरिएंट और वैक्सीन के असर को लेकर अब तक अलग-अलग अध्ययनों में पता लगाया है कि बीटा और डेल्टा वैरिएंट की वजह से वैक्सीन का काफी असर कम हो रहा है लेकिन फिर भी लोगों को दो खुराक लेना जरूरी है क्योंकि कम असर होने के बाद भी वैक्सीन लोगों की सुरक्षा करने में बेहतर मिली है।
पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने अल्फा, बीटा और डेल्टा वैरिएंट पर वैक्सीन का असर जानने के लिए अलग-अलग अध्ययन किए हैं। जर्नल ऑफ ट्रेवल मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन में यह पता चला है कि अल्फा और डी614जी म्यूटेशन कोवाक्सिन पर प्रभावी नहीं है।
इन वैरिएंट से ग्रस्त मरीजों में वैक्सीन पूरी तरह से असरदार है। जबकि जामा ओपन नेटवर्क में प्रकाशित दो अध्ययन के जरिये वैज्ञानिकों को पता चला है कि बीटा और डेल्टा वैरिएंट स्वदेशी कोवाक्सिन पर एक जैसा असर दिखा रहे हैं। इनकी बदौलत कोवाक्सिन का असर करीब 60 फीसदी तक कम हो रहा है।
इसी तरह कोविशील्ड वैक्सीन की बात करें तो अल्फा वैरिएंट ने 25 से 90 फीसदी के बीच असर को कम किया है। जबकि डेल्टा और बीटा वैरिएंट 40 से 60 फीसदी तक प्रभाव कम कर रहे हैं। इसी अध्ययन में यह भी पता चला है कि डेल्टा वैरिएंट पर फाइजर और मोडर्ना कंपनी की वैक्सीन 70 फीसदी तक असर कम दे रही है।
आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव का कहना है कि डेल्टा सहित गंभीर वैरिएंट की वजह से वैक्सीन का असर कम देखने को मिला है लेकिन यह पूरी तरह बेअसर नहीं है। जिन लोगों को दो खुराक मिल चुकी हैं उनमें डेल्टा वैरिएंट मिलने के बाद भी गंभीर स्थिति से बचा लिया गया। कुछ ही मामलों को अस्पतालों में भर्ती होना पड़ा। इसलिए गंभीर वैरिएंट होने के बाद भी लोगों को जल्द से जल्द टीकाकरण को पूरा करना चाहिए।
जीनोम सीक्वेंसिंग के आंकड़ों पर गौर करें तो अब तक देश में 45 हजार सैंपल की सीक्वेंसिंग हो चुकी है जिनमें से 31 फीसदी में डेल्टा वैरिएंट का पता चला है। जबकि 16 फीसदी में अल्फा और दो फीसदी में बीटा वैरिएंट मिला है। बाकी 51 फीसदी सैंपल में अन्य तरह के म्यूटेशन मिले हैं जिन्हें गंभीर की श्रेणी में नहीं रखा गया है। अगर पिछले दो महीने की स्थिति पर गौर करें तो 10 हजार में से 91 फीसदी सैंपल में डेल्टा वैरिएंट का पता चला है।
वैक्सीन पर इसलिए भी है चिंता
भारत सरकार के डीबीटी विभाग की सचिव डॉ. रेणु स्वरूप का कहना है कि अल्फा, डेल्टा और बीटा वैरिएंट का असर काफी दिखाई दे रहा है। अगर जीनोम सीक्वेंसिंग की बात करें तो पिछले दो महीने में स्थिति यह है कि 85 से 90 फीसदी तक सैंपल में डेल्टा वैरिएंट ही मिल रहा है।
इससे पता चलता है कि भारत में अभी सबसे ज्यादा डेल्टा वैरिएंट ही घूम रहा है। अब चूंकि यह कोवाक्सिन का 60 और कोविशील्ड का असर 40 फीसदी तक कम करने के अध्ययन सामने आए हैं। ऐसे में टीकाकरण को लेकर भ्रम नहीं होना चाहिए। वैक्सीन का असर कम जरूर हुआ है लेकिन पूरी तरह से खत्म भी नहीं है।
दो महीने की स्थिति
वैरिएंट सीक्वेंसिंग में मिला (फीसदी में)
डेल्टा 91
अल्फा, बीटा 06
अन्य 03
डबल म्यूटेशन से निकले कई वैरिएंट
दूसरी लहर में डबल म्यूटेशन को लेकर काफी चर्चाएं हुई थीं। महाराष्ट्र में यह मिला था यानी एक सैंपल में वायरस के दो-दो म्यूटेशन दिखाई दे रहे थे। उस वक्त चिकित्सीय अध्ययन कम होने के कारण इन्हें गंभीर नहीं बताया जा रहा था लेकिन वैज्ञानिकों को हैरानी तब हुई जब डबल म्यूटेशन में से एक नहीं बल्कि कई वैरिएंट निकल दुनिया में फैल गए। डेल्टा, डेल्टा प्लस, कापा, लैमडा और एवाई 2.0 वैरिएंट डबल म्यूटेशन से ही निकले हैं।
गंभीर वैरिएंट ने इन वैक्सीन का असर किया कम
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