- सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित समिति के हवाले से वायरल कथित रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑक्सीजन भंडारण की सुविधा नहीं थी
- नौ बिस्तर के अस्पताल ने चार गुना अधिक ऑक्सीजन मांगा
- एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का भी रिपोर्ट में नाम
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शनिवार, 26 जून 2021
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ऑक्सीजन संकट : नहीं थी भंडारण की पर्याप्त सुविधा, अस्पतालों की पार्किंग में खड़े रहे टैंकर
ऑक्सीजन संकट : नहीं थी भंडारण की पर्याप्त सुविधा, अस्पतालों की पार्किंग में खड़े रहे टैंकर
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित समिति का हवाला देते हुए सोशल मीडिया पर वायरल कथित रिपोर्ट को लेकर सियासी हंगामा शुरू हो चुका है। इसे लेकर सियासी पार्टियों में आरोप-प्रत्यारोप लगाए जा रहे हैं। इस रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि ऑक्सीजन से भरे टैंकर अस्पतालों की पार्किंग में कई घंटों तक खड़े रहे क्योंकि इन अस्पतालों के पास ऑक्सीजन भंडारण की सुविधा नहीं थी।
दिल्ली सरकार के सबसे बड़े कोविड केंद्र लोकनायक अस्पताल का बकायदा हवाला देते हुए रिपोर्ट में बताया गया कि गोयल गैसेज कंपनी ने जब आपूर्ति में देरी के कारण पूछे गए तो उन्होंने इसकी जानकारी दी। वहीं दिल्ली में ऑक्सीजन को लेकर केंद्र सरकार ने एक सर्वे भी कराया था जिसमें पता चला है कि एक नहीं बल्कि दो-दो बार यह घटना हुई है। नौ बिस्तर के एक अस्पताल ने चार गुना अधिक ऑक्सीजन मांगा।
रिपोर्ट में नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया का भी नाम है जिनकी अध्यक्षता में इसे अंतिम रुप से तैयार करने का हवाला दिया गया है। इनके अलावा मैक्स अस्पताल के वरिष्ठ डॉ. संदीप बुद्घिराजा का भी नाम है। हालांकि इन दोनों ही डॉक्टरों से जब संपर्क किया गया तो इन्होंने कुछ भी जानकारी देने से साफ तौर पर इंकार कर दिया। रिपोर्ट के अनुसार ऑक्सीजन पर दिल्ली सरकार का फॉर्मूला केंद्र की तुलना में बिलकुल अलग था। केंद्र सरकार ने विशेषज्ञों के आधार पर यह तय किया था कि गैर आईसीयू बेड पर 50 फीसदी मरीजों को ही ऑक्सीजन की आवश्यकता है जबकि दिल्ली सरकार का फॉर्मूला कहता है कि हर मरीज को ऑक्सीजन चाहिए।
इस रिपोर्ट में केंद्र सरकार के एक सर्वे का भी हवाला दिया है जिसके अनुसार 68 अस्पताल और 11 रिफिल केंद्रों पर 889.4 मीट्रिक टन ऑक्सीजन भंडारण की क्षमता थी। अस्पतालों और रिफिलरों के पास ऑक्सजीन भंडारण 6 से 11 मई के बीच 309 से बढ़कर 501 मीट्रिक टन हो गया। जोकि कुल क्षमता का 71 फीसदी है। जबकि अस्पतालों में सर्वे के जरिए पता चला कि 80 फीसदी के पास 12 घंटे से अधिक का स्टॉक था। अधिकांश दूसरे छोटे अस्पतालों के पास स्टॉक बढ़ाने के लिए पर्याप्त भंडारण नहीं है। राजधानी में औसतन दैनिक खपत 284 से 372 मीट्रिक टन के बीच दर्ज की गई लेकिन रोजाना 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए दिल्ली के पास पर्याप्त भंडारण नहीं था।
स्थिति यह थी कि पानीपत और रूड़की से 190 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की अनुमति दी गई थी लेकिन दिल्ली सरकार ने सिर्फ 150 मीट्रिक टन ही ऑक्सीजन लिया। दिल्ली सरकार ने ईमेल के जरिए अपील की थी कि 42 मीट्रिक टन पानीपत और 20 मीट्रिक टन ऑक्सीजन को रूड़की स्थित प्लांट में रोक लिया जाए। तीन मई को दिल्ली में 16272 गैर आईसीयू और 5866 आईसीयू बेड थे। केंद्र सरकार के अनुसार यहां अधिकतम 415 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की खपत हो सकती है। जबकि दिल्ली सरकार के अनुसार यहां 568 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की खपत हुई थी।
चार अस्पतालों में 931 मीट्रिक टन
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑक्सीजन आपूर्ति को लेकर काफी गड़बड़ियां दीं। 183 अस्पतालों की जानकारी को जब जांचा गया तो चार अस्पतालों में यह गड़बड़ी काफी देखने को मिली। 183 अस्पतालों के लिए दिल्ली सरकार 1140 मीट्रिक टन खपत हर दिन बता रही थी लेकिन चार अस्पतालों को हटा दिया तो यह आंकड़ा 209 मीट्रिक टन ही रह गया यानि 931 मीट्रिक टन की कमी आई। सिंघल अस्पताल, अरुणा आसफ अली अस्पताल, ईएसआईसी और लिफ़ेरे अस्पताल शामिल हैं। दिल्ली सरकार की कोविन वेबसाइट के अनुसार लिफेरे अस्पताल में नौ ऑक्सीजन बेड कोविड मरीजों केलिए हैं।
केंद्र के सर्वे के परिणाम:.
9 मई को दिल्ली सरकार ने 120 में से 74 मीट्रिक टन लिंडे प्लांट को ऑक्सीजन वापस कर दी। क्योंकि इनके पास पर्याप्त भंडारण की सुविधा नहीं थी।. 10 मई को पानीपत एयर लिक्विड को 38, आइनाक्स सूरजपुर को 37 और अन्य दिल्ली के रिफिलर्स से 37.5 मीट्रिक टन ऑक्सीजन नहीं ली। . दिल्ली ने न तो ऑक्सीजन उपयोग का ऑडिट किया और केंद्र को सक्षम बनाने के लिए वास्तविक मांग का आकलन किया। . 260 में से 213 अस्पताल सरकारी नियमानुसार दे रहे थे जानकारी, समिति को 183 अस्पतालों से सूचना मिली। . 183 में अस्पतालों में 10,916 गैर आईसीयू और 4,162 आईसीयू बेड हैं।
ऑक्सीजन पर केंद्र का फॉर्मूला :.
किसी भी अस्पताल में सभी गैर आईसीयू बिस्तरों पर भर्ती 50 फीसदी मरीजों को ही ऑक्सीजन की जरूरत। दिल्ली एम्स का भी यह अनुभव रहा है कि जिन लोगों को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं थी उन्हें भी आईसीयू बिस्तरों पर भर्ती किया था। इसलिए केंद्र के अनुसार दिल्ली को 284 से 372 मीट्रिक टन की आवश्यकता थी।
दिल्ली सरकार का फॉर्मूला: .
अस्पताल के गैर आईसीयू बिस्तर पर भर्ती सभी मरीजों के लिए ऑक्सीजन की जरूरत है। इसलिए दिल्ली सरकार का फॉर्मूला कहता है कि उन्हें 700 मीट्रिक टन की प्रतिदिन आवश्यकता है क्योंकि 89 बड़े अस्पतालों में 670 मीट्रिक टन ऑक्सीजन भंडारण की क्षमता है।
कथित रिपोर्ट में समिति का निष्कर्ष:
दिल्ली सरकार के अनुसार 183 अस्पतालों में ऑक्सीजन खपत: प्रतिदिन 1140 मीट्रिक टन चार अस्पतालों को हटाने के बाद वास्तविक खपत: प्रतिदिन 209 एमटी भारत सरकार के अनुसार दिल्ली में खपत: प्रतिदिन 289 एमटी दिल्ली सरकार के ही फॉर्मूला को मानें तो कुल खपत: प्रतिदिन 391 एमटी।
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