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बुधवार, 7 जुलाई 2021
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Cabinet Expansion : Jyotiraditya को मिला 'सब्र' का फल, राष्ट्रपति को प्रणाम करना भूले
Cabinet Expansion : Jyotiraditya को मिला 'सब्र' का फल, राष्ट्रपति को प्रणाम करना भूले
15 महीनों के इंतजार के बाद वो घड़ी आ गई है जिसका इंतजार ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को था। सिंधिया मोदी की टीम का एक अहम हिस्सा बन गए हैं।
15 महीनों के इंतजार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में कद बढ़ गया है। सिंधिया कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में हुए शपथ ग्रहण समारोह में पद और गोपनीयता की शपथ ली। हालांकि इस दौरान वे राष्ट्रपति रामनााथ कोविंद को प्रणाम करना भूल गए और अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए। उनसे पहले शपथ लेने वाले सभी मंत्रियों ने राष्ट्रपति को प्रणाम किया था। जब सिंधिया को इस बात का ध्यान दिलाया गया तो वे वापस लौटे और राष्ट्रपति को प्रणाम किया।
कांग्रेस से निकले तो बीजपी ने बनाया राज्यसभा सदस्य
सिंधिया मोदी कैबिनेट का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए हैं। अपने पिता और कांग्रेस के दिग्गज नेता माने जाने वाले माधवराव सिंधिया के 2001 में निधन के बाद ज्योतिरादित्य को कांग्रेस ने सिर आंखों पर बिठाया। 2002 में हुए उपचुनाव में वे पहली बार अपने पिता के गुना सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे। यहां से वे लगातार 2004, 2009 और 2014 से चुनाव जीते लेकिन 2019 में हार गए। बीजेपी में शामिल होने के बाद अब वे राज्यसभा सांसद हैं। मध्यप्रदेश में कमलनाथ की सरकार गिराकर बहुमत नहीं होने के बावजूद भाजपा की सरकार बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले सिंधिया को यह ईनाम मिलेगा, यह बात जग जाहिर थी।
सिंधिया राजघराने के तीसरी पीढ़ी के नेता हैं और अपने क्षेत्र पर उनकी मजबूत पकड़ है। उनकी दादी विजयराजे सिंधिया बीजेपी की दिग्गज नेता थीं लेकिन उनके पिता माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस की राह पकड़ ली थी. हालांकि माधवराव सिंधिया ने भी अपना पहला चुनाव जनसंघ से ही लड़ा था लेकिन बाद में वे कांग्रेस में शामिल हो गए।
कांग्रेस ने मप्र का मुख्यमंत्री नहीं बनाया तो अपनाए बगावती तेवर
दून स्कूल से निकलकर ज्योतिरादित्य ने हावर्ड में उच्च शिक्षा हासिल की। पढ़ाई के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ में भी काम किया है। लेकिन पिता की मौत के बाद राजनीति उन्हें विरासत में मिली। यूपीए सरकार में 2007 में उन्हें मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल में केंद्रीय राज्य मंत्री बनने का मौका मिला। 2012 में भी उन्हें केंद्रीय राज्य मंत्री बनाया गया. 2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में जब कांग्रेस चुनाव जीती तो ज्योतिरादित्य को मुख्यमंत्री पद का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन पार्टी आलाकमान ने इसके लिए कमलनाथ को चुना और यहीं से सिंधिया के तेवर बदल गए और वे खुद को कांग्रेस में उपेक्षित महसूस करने लगे।
कमलनाथ की सरकार गिराकर लिया अपनी उपेक्षा का बदला
2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी ने उन्हें मध्यप्रदेश में कोई बड़ी भूमिका देने के बजाए पार्टी महासचिव बन दिया और प्रियंका गांधी के साथ उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी दी गई। पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रहे सिंधिया ने यहीं से धीरे-धीरे अपनी अलग राह पकड़नी शुरु कर दी और मध्यप्रदेश में अपनी ही पार्टी की सरकार के खिलाफ बगावती तेवर अपना लिए। जिसका अंत उन्होंने कमलानाथ की सरकार गिरा कर और बहुमत नहीं होने के बावजूद भाजपा की सरकार बना कर किया। मार्च 2020 में उन्होंने भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हुए।
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