- पिछले डेढ़ साल से घर में कैद बच्चों में चिड़चिड़ापन, रिस्पांस टाइम का कम होने समेत दिख रहे दूसरे कई लक्षण
- दिल्ली के अस्पतालों में आ रहे ऐसे कई मामले, चिकित्सकों की चिंता- कमजोर प्रतिरोधक क्षमता के साथ संभावित तीसरी लहर का सामना करना होगा मुश्किल
- दी सलाह, मां-पिता बच्चों को दें पूरा वक्त, बातचीत में रखें व्यस्त, शारीरिक गतिविधियां पर रखें जोर
कोरोना काल ने बच्चों के दिमाग पर बुरा असर डाला है। करीब डेढ़ से घरों में कैद बच्चों की शारीरिक गतिविधियां थम सी गई हैं। इसका नतीजा बच्चों के रिएक्शन टाइम समेत दूसरे कई दुष्प्रभाव के तौर पर दिख रहा है। दिल्ली के अस्पतालों में इस तरह की समस्याओं से ग्रस्त बच्चे इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।
वरिष्ठ मनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर राजकुमार श्रीनिवास ने बताया कि कोरोना कि शुरुआत के बाद से लगातार कभी न कमी लॉकडाउन लग जाता है। साथ ही संक्रमण के डर से माता-पिता बच्चों को बाहर नहीं भेजते हैं। अब बच्चों का सामाजिक दायरा खत्म हो गया है। स्कूल भी बंद हैं। वह अपने दोस्तों से भी नहीं मिल पाते। अलगाव, चिंता और डर की वजह से उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है।
केस स्टडी-1:
कोरोना का एक असर आपको अस्पतालों में मरीजों के रूप में दिख रहा है। वहीं, इसका एक दूसरा प्रभाव भी हुआ है, जो घरों में रह रहे बच्चों पर पड़ा है। पिछले करीब डेढ़ साल से बच्चे मानसिक और शारीरिक रूप से बीमार हो रहे हैं। 12 साल के वैभव के व्यवहार में बीते काफी समय से परिवर्तन आ रहा है। लॉकडाउन के कारण उसके माता-पिता टेलीमेडिसन के माध्यम से इलाज करा रहे थे, लेकिन समस्या ठीक नहीं हुई। अब वह अपने बेटे वैभव को अस्पताल में लेकर आए हैं। जहां डॉक्टरों की जांच के बाद पता चला कि बच्चा मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है। ऐसे में उसकी काउंसलिंग कि गई, जिसके बाद वह काफी हद तक ठीक हो गया है। यह मामला जीटीबी अस्पताल के बाल रोग विभाग में आया था। जहां डॉक्टरों ने बच्चे को इहबास में काउंसलिंग के लिए भेजा था।
केस स्टडी-2:
10 साल की निवेदिता को अब हर बात पर गुस्सा आने लगता है। पढ़ाई के समय में भी वह ध्यान नहीं केंद्रित कर पा रही है। साथ ही उसको लगातार सर दर्द और कम नींद कि समस्या भी हो रही थी। इसको देखते हुए उसके माता-पिता उसे एक निजी अस्पताल लेकर पहुंचे। जहां डॉक्टरों ने जांच में पाया कि शारीरिक गतिविधियां कम होने से बच्ची के स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ा है। इस कारण उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हुई है। बच्ची को कुछ दवाएं देने के साथ-साथ मनोरोग विशेषज्ञों से उसकी काउंसलिंग भी कराई गई।
ऐसे रखे ख़्याल
डॉ. राजकुमार ने बताया कि इस समय सबसे जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों को पर्याप्त समय दें। रोजाना उनके साथ कम से कम दो से तीन घंटे बिताएं। उनके साथ नियमित रूप से बातचीत करेंगे तो वह ठीक रहेंगे। इसके साथ ही बच्चों को फोन व लैपटॉप न दें। जिनता हो सके उन्हें बाहर पार्कों में खेलने कूदने दें। इस दौरान ध्यान रखे कि वह भीड़ में न जाएं। क्योंकि संक्रमण से भी बचना है और शरीर को शारीरिक रूप से स्वस्थ भी रखना है।
एम्स के पूर्व बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रवीण कुमार बताते हैं कि शारीरिक गतिविधियां कम होने और लंबे समय से घरों में रहने से बच्चों को कई परेशानियां हो रही है। जैसे पहले छोटे बच्चों दो से तीन साल में बोलने लगते हैं, लेकिन अब इसमें समय लग रहा है। वहीं, कुछ बच्चे सही प्रतिक्रिया भी नहीं दे रहे हैं। बच्चों कि खराब सेहत से आगे का खतरा भी बढ़ गया है। संभावित तीसरी लहर को देखते हुए बच्चों कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बेहतर बनाने कि जरूरत है।
ऐसे बढ़ाए बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता
एम्स के पूर्व डॉक्टर और बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर प्रवीण कुमार का कहना है कि कुपोषित बच्चों को कोरोना या अन्य किसी भी बीमारी का खतरा ज्यादा होता है। इसेलिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि बच्चों के खाने पीने का खास ख्याल रखा जाए। बच्चों को सब्जियां, फल भरपूर मात्रा में खिलाने की जरूरत है। उन्हें धूप में भी थोड़ी देर बैठने के लिए कहे। यदि बच्चों की खान-पान की आदत अच्छी होगी तो इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी होगी। इससे वह बीमारियां और कोरोना वायरस से बचेंगे। जबकि कुपोषित बच्चों को संक्रमण का खतरा ज्यादा है।
इस तरह की दिक्कतों से रूबरू हो रहे बच्चे...
- चिड़चिड़ापन
- रिस्पांस टाइम का कम होना
- बेवजह गुस्सा आना
- काम में ध्यान न लगाना
- डायरिया व पेट दर्द
- प्रतिरोधक क्षमता का कम होना