Hindi Diwas Speech 2022: हमारे देश का नाम हिंदी में लेने में लोगों को शर्म क्यों आती हैं? - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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गुरुवार, 15 सितंबर 2022

Hindi Diwas Speech 2022: हमारे देश का नाम हिंदी में लेने में लोगों को शर्म क्यों आती हैं?


अगर आपसे ये पूछा जाए कि आपके देश का नाम क्या है? तो बहुत सारे लोगों की ज़ुबान पर अपने आप ही एक शब्द आएगा और वो शब्द है India... और ये इस प्रश्न का सही जवाब नहीं है. जब तक भारत के लोग इस प्रश्न का सही जवाब नहीं देते, तब तक हमारे देश में हिंदी दिवस के कोई मायने नहीं हैं.

आज हिंदी दिवस है. भारत में 14 सितंबर को हर वर्ष हिंदी दिवस मनाया जाता है. हर वर्ष हमारे देश में हिंदी दिवस पर बड़ी-बड़ी सभाएं होती हैं.सेमीनार किए जाते हैं. सरकारी दफ्तरों में हिंदी पखवाड़ा शुरू हो जाता है. लोग हिंदी की दशा और दिशा तय करने के लिए लंबी-लंबी गोष्ठियां करते हैं.

लेकिन क्या कभी किसी ने ये सोचा है कि हमारे देश का नाम हिंदी में क्यों नहीं लिया जाता?

अगर हमें सचमुच हिंदी का उद्धार करना है, तो सबसे पहले हमें अपने देश को India की जगह.. भारत या हिंदुस्तान कहना चाहिए. क्योंकि ये दोनों हिंदी के शब्द हैं. India... अंग्रेज़ी का शब्द है और ये यूरोप से आया है.

आज जब भी हमारे देश में कोई राष्ट्रीय या अंतर्राराष्ट्रीय कार्यक्रम होता है और उसमें भारत के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति को India का राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कहा जाता है. ज़्यादातर सरकारी कार्यक्रमों में भी India शब्द का ही इस्तेमाल होता है.

अंग्रेज़ों ने हमें करीब 200 वर्ष तक गुलाम बना कर रखा और उन्होंने भारत को India कहा था. ये बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हमसे नफरत करने वाले और हमें गुलाम बनाने वालों ने हमें जो नाम दिया हमने उसी नाम को सहर्ष स्वीकार कर लिया और आज आज़ादी के 71 वर्ष बाद भी हम उसी नाम को मेडल की तरह पहनकर घूम रहे हैं.

और यही मानसिकता... एक हीन भावना बनकर हमारे DNA का हिस्सा बन गई है. आज लोग बड़े गर्व से ये कहते हैं कि My Hindi is bad. अगर सामने वाला अंग्रेज़ी में बात कर रहा हो, तो लोग खुद को तुच्छ समझकर टूटी-फूटी अंग्रेज़ी में बात करने की कोशिश करते हैं.

यहां तक कि किसी कंपनी के कॉल सेंटर पर कॉल करने के बाद अंग्रेज़ी में बात करने के लिए एक दबाना होता है और हिंदी के लिए दो दबाना होता है. और अगर ये विकल्प ना हो तो फिर लोग Customer Care Officer यानी ग्राहक सेवा अधिकारी की अंग्रेज़ी के सामने अपने सारे भाषाई हथियार डाल देते हैं.

ये सब हिंदी की पीड़ाएं हैं... और इन पीड़ाओं को दूर किए बगैर हिंदी दिवस नहीं मनाया जा सकता. इस दिशा में पहला कदम है अपने देश का सही नाम लेना. आज हिंदी दिवस के मौके पर हम आपको अपने देश के नाम के बारे में कुछ ऐतिहासिक जानकारियां देना चाहते हैं.

अगर अंग्रेज़ों ने भारत को गुलाम बनाकर भारत पर शासन ना किया होता, तो हमारे देश का नाम India नहीं होता. अंग्रेज़ों से पहले अरब...Turkey और मध्य एशिया के हमलावरों ने हमें गुलाम बनाया और हमारे देश को हिंदुस्तान कहा... अगर हम उनके गुलाम नहीं बने होते तो आज हमारे देश का नाम हिंदुस्तान भी नहीं होता.

हमारे देश का मूल नाम भारत वर्ष है. ऐसा माना जाता है कि भारत वर्ष का नाम... एक चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत के नाम पर पड़ा था, जो हस्तिनापुर के राजा दुष्यन्त और उनकी पत्नी शकुन्तला के पुत्र थे. आज आपको भारत के नाम का मतलब भी समझना चाहिए. 'भा' का अर्थ है 'प्रकाश' या 'ज्ञान' और 'रत' का अर्थ हुआ 'लगा हुआ'. यानी वो देश जो लगातार प्रकाश यानी ज्ञान की खोज में लगा हुआ है वही भारत है.

भारत पूरी दुनिया के लिए ज्ञान का स्रोत था. इसीलिए भारत को विश्व गुरु कहा गया. क्या आपको याद है? जब आपसे कभी किसी दस्तावेज में आपकी राष्ट्रीयता के बारे में पूछा जाता है तो आप क्या लिखते हैं? ज़्यादातर लोग Nationality के Column में लिखते हैं... Indian.

हमारे देश का संविधान भी मूल रूप से अंग्रेज़ी भाषा में ही लिखा गया है, जहां सैकड़ों बार India शब्द का इस्तेमाल किया गया है और 'भारत' शब्द का इस्तेमाल नाम मात्र के लिए किया गया है. भारत के संविधान की शुरुआत में लिखा गया है... India, that is Bharat... यानी India जो कि भारत है.

इससे भी ऐसा ही लगता है जैसे India शब्द को ज़्यादा प्रमुखता दी गई है. आज हिंदी दिवस के मौके पर हम आपसे ये अपील करना चाहते हैं कि अगर सही मायनों में आप हिंदी के लिए कुछ करना चाहते हैं, तो सबसे पहले खुद को भारतीय कहना सीखें. अपनी राष्ट्रीयता को भारतीय कहें और अपने देश को India नहीं बल्कि भारत कहें और इसमें किसी जाति, धर्म, नस्ल और भाषा का मतभेद नहीं है. ये हमारे देश का प्राचीन नाम है जिस पर किसी प्रकार का विवाद भी नहीं है.

आपने गौर किया होगा कि जब भी आप किसी निजी या सरकारी सेवा के इस्तेमाल के लिए किसी संस्था को फोन करते हैं? तो अक्सर आपको भाषा के चुनाव के लिए निर्देश दिया जाता है. आपसे कहा जाता है...

अंग्रेज़ी के लिए 1 दबाएं और हिंदी के लिए 2 दबाएं... For English press One... हिंदी के लिए 2 दबाएं. इसका मतलब साफ है कि अंग्रेज़ी हमारे देश में Number One पर है और हिंदी Number दो पर है और ये बहुत दुख की बात है कि आज भी हमारे देश में अंग्रेज़ी के मुकाबले हिंदी को एक दोयम दर्जे की भाषा माना जाता है.

पूरा देश तो आज हिंदी दिवस मना रहा है, लेकिन हम रोज़ आपके साथ हिंदी में ही बात करते हैं. हमने हिंदी भाषा के साथ कई प्रयोग किए हैं और उसे आपके लिए सरल और आकर्षक बनाया है. हमें लगता है कि हिंदी में बहुत शक्ति है, लेकिन देश के लोगों को इस शक्ति का एहसास नहीं है. आज हम आपको कुछ नये आंकड़ों के ज़रिए हिंदी की शक्ति के बारे में बताना चाहते हैं.

KPMG और Google के अध्ययन के मुताबिक वर्ष 2021 तक इंटरनेट पर हिंदी का इस्तेमाल करने वालों की संख्या, अंग्रेज़ी का इस्तेमाल करने वालों से ज़्यादा हो जाएगी. 2021 तक भारत में इंटरनेट पर मौजूद लोगों में से करीब 38 प्रतिशत हिंदी में काम करेंगे.

इस रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2021 तक भारत में Internet Users की संख्या करीब 53 करोड़ 60 लाख होगी. इसमें से 20 करोड़ से ज़्यादा लोग हिंदी का इस्तेमाल करेंगे. Google के अनुसार इंटरनेट पर हिंदी का इस्तेमाल करने वालों की संख्या, हर वर्ष 94 प्रतिशत के दर से बढ़ रही है जबकि अंग्रेज़ी का इस्तेमाल करने वालों संख्या हर वर्ष सिर्फ 17 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है.

Census के अनुसार

वर्ष 2001 में भारत के 41.03 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते थे. जबकि वर्ष 2011 में 43.63 प्रतिशत लोग हिंदी बोलते थे. वर्ष 2001 में 42 करोड़ लोग हिंदी बोलते थे. वर्ष 2011 में हिंदी बोलने वाले लोग 52 करोड़ हो गए. यानी 2001 से 2011 के बीच हिंदी बोलने वालों की संख्या 10 करोड़ बढ़ गए. वर्ष 2014 में सिर्फ 12 करोड़ 10 लाख लोग हिंदी के अखबार पढ़ते थे.

आज देश में हिंदी के अखबार पढ़ने वालों की संख्या 17 करोड़ 60 लाख है. यानी हिंदी अखबार पढ़ने वालों की संख्या 45 प्रतिशत बढ़ी है. इन आंकड़ों को देखकर आप ये कह सकते हैं कि पूरी दुनिया में हिंदी का दायरा और प्रभाव बढ़ रहा है. आज हिंदी दिवस के मौके पर भारत में अमेरिकी दूतावास ‏के Twitter account से 47 Second का एक Video Post किया गया है और हिंदी दिवस की शुभकामनाएं दी गई हैं. ये वीडियो आपको भी देखना चाहिए.

(ये हिंदी के प्रसिद्ध कवि सोहन लाल द्विवेदी की बहुत मशहूर कविता की लाइनें हैं... 'कोशिश करने वालों की हार नहीं होती') अगर अमेरिका के लोग कोशिश करके हिंदी की कुछ लाइनें बोल सकते हैं तो हमारे देश के लोगों को भी ये प्रयास करना चाहिए कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक हिंदी देश को एक सूत्र में पिरोने वाली भाषा बन सके. हिंदी के महान विद्वान और साहित्यकार रामधारी सिंह दिनकर ने अपनी प्रसिद्ध किताब 'संस्कृति भाषा और राष्ट्र' में राष्ट्र भाषा और राष्ट्रीय एकता को लेकर बहुत महत्वपूर्ण विचार रखे हैं.

रामधारी सिंह दिनकर का नाम आप सबने ज़रूर सुना होगा. दिनकर जी की एक पंक्ति बहुत प्रसिद्ध है.. “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.”. सत्ता और सरकार के खिलाफ विद्रोह करने वाली इस कविता ने इंदिरा गांधी की सरकार को जड़ों से हिला दिया था.

अपनी किताब में रामधारी सिंह दिनकर ने देश को ये बताया है कि हिंदी को राष्ट्र भाषा क्यों होना चाहिए. उन्होंने लिखा है कि हिंदी के अंदर, भाषा को भाषा से और प्रांत को प्रांत से जोड़ने की ताकत है. लेकिन दक्षिण भारत में ऐसी कोई भी भाषा नहीं है जो तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम क्षेत्रों को जोड़ सके. हिंदी की पश्चिमी सीमा राजस्थान और पंजाब है...

और पूर्वी सीमा बिहार है. राजस्थान से बिहार तक लोग अपने घरों में राजस्थानी, ब्रज भाषा, बुंदेलखंडी, अवधी और भोजपुरी बोलते हैं. ये हिंदी की ही बोलियां हैं और संस्कृत भाषा से पैदा हुई हैं. लेकिन दक्षिण भारत के राज्यों के बीच ऐसी कोई क्षेत्रीय भाषा विकसित नहीं हो पाई जो हर क्षेत्र में समझी जा सके.

हिंदी भाषा को गुजरात, बंगाल, असम और ओडिशा में भी समझा जाता है. उदाहरण के लिए अगर कोई गुजराती व्यक्ति असम या ओडिशा जाए और गुजराती भाषा में बात करे, तो उसकी बात शायद कोई नहीं समझ सकेगा लेकिन अगर वो व्यक्ति हिंदी बोले तो उसकी बात समझी जाएगी. हिंदी भाषा में एक दूसरे से संबंध स्थापित करने का एक अनोखा गुण है... जैसे... मीराबाई का जन्म राजस्थान में हुआ लेकिन उनकी बहुत सी कविताएं गुजरात में भी प्रसिद्ध हैं. सिख धर्म के गुरुओं ने पंजाबी भाषा में साहित्य लिखा लेकिन इसे हिंदी पढ़ने वाले भी आसानी से समझ लेते हैं.

इसी तरह दिनकर जी ने और भी कई उदाहरण दिए हैं. उन्होंने लिखा है कि कई बार ऐसा होता है... जब किसी किताब का अनुवाद, उर्दू, कश्मीरी, पंजाबी और दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं में तब तक नहीं होता जब तक उसका मूल अनुवाद हिंदी में ना हो जाए.

बांग्ला भाषा के उपन्यासकार शरतचंद्र की पुस्तकों का अनुवाद उनके जीवित रहते अंग्रेज़ी में नहीं हो पाया था फिर भी वो पूरे भारत में प्रसिद्ध हो गए क्योंकि उनकी सभी पुस्तकों का अनुवाद हिंदी में हो गया था. हिंदी भाषा में सभी धर्मों को जोड़ने की ताकत भी है, क्योंकि हिंदी के साहित्यकारों ने अरबी और फारसी के शब्दों का भी खूब इस्तेमाल किया. अरबी और फारसी के शब्दों ने भी हिंदी भाषा में अपनी जगह बना ली.

हिंदी बहुत वैज्ञानिक भाषा है. हिंदी में जो बोला जाता है वही लिखा जाता है. हिंदी में चंद्रबिंदु से लेकर पूर्णविराम तक हर चीज़ का अपना गुण और महत्व है. ऐसी खूबियां अंग्रेज़ी में नहीं हैं, इसलिए कई बार हिंदी फिल्मों में अंग्रेज़ी की कमियों पर कटाक्ष भी किए गये हैं.

हमारे देश में एक ऐसा वर्ग है जो अपना करियर हिंदी भाषा के माध्यम से बनाता है लेकिन सेलिब्रिटी बनने के बाद इंटरव्यू अंग्रेज़ी भाषा में देना पसंद करता है. आपने देखा होगा कि हिंदी फिल्मों में काम करने वाले कलाकार... हिंदी बोलने वाली आबादी में बहुत ज़्यादा लोकप्रिय होते हैं लेकिन वो अपने इंटरव्यू हमेशा अंग्रेज़ी में ही देना पसंद करते हैं.

हो सकता है कि हिंदी को लेकर उनके मन में कोई हीन भावना हो और इसीलिए वो अंग्रेज़ी को सर्वोच्च और हिंदी को एक पिछड़ी हुई भाषा समझते हैं. आप गौर कीजिए... England की भाषा... English है.. France की भाषा French है... अरब की भाषा अरबी है और China की भाषा Chinese है. इसका मतलब है कि दूसरे देश अपनी भाषा का सम्मान करते हैं,

लेकिन हमारा देश अंग्रेज़ी का सम्मान करता है और हिंदी का अपमान करता है. आज हमें हिंदी दिवस पर ये प्रण लेना चाहिए कि हम किसी भी भाषा का अपमान कभी नहीं करेंगे लेकिन अपनी भाषा पर गर्व करेंगें और उसे उचित सम्मान देंगे.

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