वाराणसी। जनपद न्यायाधीश अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने इटालियन महिला को धोखे में रखकर उसके 12 लाख 80 हजार रूपये हड़प लेने के मामले के आरोपित भरत गिरी उर्फ सुरेश कुमार मिश्रा की शुक्रवार को जामनत अर्जी खारिज कर दी। भरत गिरी नागा सम्प्रदाय से जुड़ा बताया गया है।
बलरामपुर जिले के महराजगंज के हरिहर नगर निवासी भरत गिरी काशी में ही रहता था। उसके साथ रह रही इटालियन महिला लाऊरा बरटांगों ने 16 मार्च 2020 को उसके खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार वादिनी लाऊरा बरटांगो ने दशाश्वमेध थाने में तहरीर दी थी कि भरत गिरी ने फरवरी 2007 में उसे शिष्या के रूप से स्वीकार किया था। कहा था कि अगले कुम्भ में तेरा संयास संस्कार होगा। मई 2007 से सितम्बर 2009 तक वदिनी उज्जैन जिले के बडगारा गांव में रही। वहां उसने भरत गिरी के आश्रम का निर्माण करवाया। 2013 में प्रयागराज कुम्भ के बाद भरत गिरी का व्यवहार पहले से अधिक संवेदनहीन होने लगा। उसके व्यवहार को देखते हुए लाऊरा ने भरत गिरी और उसके गुरू मंहत शंकर गिरी महाराज से शिकायत की। मदद मांगी। इसके कारण भरत गिरी को गणेश महाल के आश्रम से दूर रहना पड़ा। 2017 में भरत गिरी के गुरू शंकर गिरी ब्रह्मलीन हो गये।
इसके बाद भरत गिरी आश्रम का मकान बेचने के चक्कर में पड़ गया। वर्ष 2019 में भरत गिरी ने उससे सम्पर्क किया और कहाकि वह मकान बेचना नही चाहता था। इस पर लाउरा उसके विश्वास में आ गई। कुम्भ के बाद जब भरत गिरी आश्रम लौटे तो सच्चाई सामने आने लगी। पता चला कि भरत गिरी मकान बेचना चाहते थे। उसे बेदखल करने का प्रयास हो रहा था। लाऊरा ने कहाकि उसने जितना पैसा मकान खरीदने के लिए दिया था उतना पैसा ब्याज समेत उसे लौटाया जाय।
इस तहरीर के आधार पर 16 मार्च 2020 को दशाश्वमेध थाने में भरत गिरी के खिलाफ धोखाधड़ी और अमानत में खयानत का मुकदमा दर्ज हुआ। इस पर वादिनी लाऊरा की ओर से कहा गया कि उसने कोई अपराध नही किया है। वह निर्दोष है। उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करानेवाली लाऊरा भारत की नागरिक नही है। वह संस्कृत का अध्ययन करने और छात्रवृत्ति के लिए आई थी। लाउरा स्वयं सन्यासिनी बनना चाहती थी जिसके कारण वह मेरे सम्पर्क में आई। उसने कोई अनुचित प्रभाव या जबर्दस्ती नही की है।
आवेदक लाऊरा की खरीदी हुई सम्पत्ति पर नही रह रहा था। इसलिए उसे जमानत दी जाय। जिला शासकीय अधिवक्ता ने जमानत प्रार्थना पत्र का विरोध किया। कोर्ट ने कहाकि जमानत के लिए आवेदन करने वाले पर 12 लाख 80 हजार रूपये धोखे से हड़पने का अभियोग है। उसने उक्त धनराशि को मकान आश्रम के नाम खरीदने के लिए लिया था लेकिन मकान अपने नाम से खरीदना बताया है। तथ्यों, परिस्थितियों और गंभीरता को देखते हुए आवेदक का जमानत प्रार्थना पत्र निरस्त किये जाने योग्य है।