कांग्रेस के लिए 5 राज्यों के चुनावों ने पैदा किया ये बड़ा संकट, भाजपा की भी अग्निपरीक्षा
![कांग्रेस के लिए 5 राज्यों के चुनावों ने पैदा किया ये बड़ा संकट, भाजपा की भी अग्निपरीक्षा विधानसभा चुनाव 2018](https://spiderimg.amarujala.com/assets/images/2018/10/24/750x506/assembly-elections-2018_1540375236.jpeg)
2019 में लोकसभा चुनाव से पहले होने ये विधानसभा चुनाव क्षेत्रीय दलों के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं हैं। साढ़े चार सालों से तकरीबन सभी क्षेत्रीय दल अपनी सियासी जमीन बचाने के लिए परेशान हैं। हालांकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में पहले से ही राष्ट्रीय दल भाजपा की सरकार है। ऐसे में बीजेपी के लिए एंटी इंकमबेंसी फैक्टर से निजात पाना आसान नहीं होगा। यह चुनाव सत्ताधारी पार्टी के लिए भी किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है।
मप्र का चुनावी दंगल और भाजपा
विपक्षी पार्टियों में आंतरिक बिखराव और गुटबाज़ी के चलते पिछले चार सालों में भाजपा एक के बाद एक लगभग सभी चुनाव जीतती आ रही है। कमोबेश स्थिति अब भी वैसी ही बनी हुई है। क्षेत्रीय पार्टियां अब भी एकजुट नहीं नजर आतीं। मध्यप्रदेश की बात करें तो शिवराज सिंह चौहान की अगुवाई वाली प्रदेश सरकार कई आरोपों से घिरी होने के बावजूद जीत को लेकर आत्मविश्वास से भरी हुई है। इसकी एक मुख्य वजह कांग्रेस के भीतर आपसी गुटबाजी है।
दरअसल, मध्यप्रदेश में कांग्रेस दो गुटों में बंटी नजर आ रही है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता कमलनाथ अपना अलग राग अलाप रहे हैं, तो वहीं दिग्विजय सिंह गुट अलग खिचड़ी पका रहा है। पार्टी में एकजुटता नहीं दिखाई दे रही। इस स्थिति से पार्टी हाईकमान भी पूरी तरह वाकिफ हैं।
इधर, भाजपा अपनी स्थिति को मजबूत मानकर चल रही है। लेकिन जहां राजस्थान में वसुंधरा सरकार से जनता की नाराजगी जगजाहिर हो रही है, तो वहीं मप्र में व्यापम, मंदसौर किसान गोलीकांड जैसे मुद्दे शिवराज सिंह सरकार की परछाई बने हुए हैं। कांग्रेस भले ही बंटी है, लेकिन भाजपा के सामने चुनौती बनी हुई है।
कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा बना चुनाव
कांग्रेस के लिए 5 राज्यों के चुनाव किसी संकट से कम नहीं। दरअसल, विधानसभा के मौजूदा चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए प्रतिष्ठा का विषय है। अध्यक्ष राहुल गांधी को इन चुनावों के रिजल्ट से ही कांग्रेस का भविष्य तय करना होगा। अगर परिणाम उनके मुताबिक नहीं आते तो लोकसभा के लिए अलग रणनीति पर विचार करना होगा। ये चुनाव कांग्रेस पार्टी के लिए एक इन्वेस्टमेंट के तौर पर देखा जा रहा है। चुनाव परिणाम के बाद इस बात की पड़ताल की होगी कि किन राज्यों में हवा किस पार्टी के पक्ष में बह रही है।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की चुनौती
इधर, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की आपसी कलह के चलते सत्ताधारी भाजपा पर एंटी इंकमबेंसी का असर कम ही दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के पूर्व कद्दावर नेता अजीत जोगी के एकला चलो के निर्णय ने भाजपा की राहें और आसान कर दी हैं। दरअसल, अजीत जोगी ने बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के साथ गठबंधन करके कांग्रेस के आखिरी किले को भी भेद दिया है। कांग्रेस प्रदेश में बेहतर स्थिति के लिए अजीत जोगी को मना सकती थी, लेकिन पार्टी ने ऐसा करना मुनासिब नहीं समझा। जाहिर है इस बात का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है। दो बार सत्ता से दूर रहने के कारण कांग्रेस पार्टी के भीतर असंतोष है। यहां भी कांग्रेस दो खेमों में बंटी हुई है।
जोगी बनें कांग्रेस की मुश्किल
अजीत जोगी एक आदिवासी राजनेता हैं और प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में उनकी पकड़ मज़बूत मानी जाती रही है। जोगी की अलग राह पकड़ने से कांग्रेस को सीधे तौर पर नुकसान होगा, हालांकि कांग्रेस भी जोगी की ताकत समझती है और वह इस आदिवासी नेता को कमजोर करने के लिए लोक-लुभावन वादे कर रही है।
कांग्रेस ने किसान, आदिवासी, अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक व पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ सामान्य वर्ग को भी रिझाने की भरपूर कोशिशें की हैं। तमाम कल्याणकारी योजनाओं को चलाने और आदिवासियों को पक्के घर और नौकरी देने का वादा किया है। मायावती भी दलितों को लुभा रही है। दोनों का गठबंधन क्या गुल खिलाएगा, ये तो चुनाव परिणाम ही तय करेंगे।
मिजोरम में सत्ता बचाना कांग्रेस की चुनौती
वहीं दूसरी ओर मिजोरम में कांग्रेस की हुकूमत है, जिसे बनाए रखने में वह कोई कसर नहीं छोड़ेगी। भाजपा की कोशिश है कि वह सत्ता हासिल करे। 2013 के चुनावों में कांग्रेस को पटखनी देने के लिए कई दल एक हो गए थे, लेकिन विजय पताका कांग्रेस ने ही फैराई थी। हालांकि हर राज्यों में मौजूदा सरकार के प्रति एंटी इंकमबेंसी फैक्टर मौजूद है, लेकिन पिछली बार भी मिजोरम में कांग्रेस को हराने के लिए सभी राजनीतिक दल एकजुट हो गए थे।
राज्य के क्षेत्रीय दलों मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) और मिजोरम पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (एमपीसी) का चुनावी एजेंडा भ्रष्टाचार मुक्त सरकार बनाना हैै। वहीं दूसरी ओर एमएनएफ-एमपीसी ने जनता से इस बार आह्वान किया है कि अगर उनकी सरकार बनती है तो एक साफ छवि की सरकार देने के लिए वे प्रतिबद्ध होंगे। कांग्रेस के लिए अलगाववाद का मुद्दा किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा। क्योंकि इस बार अलगाववाद का मुद्दा मिजोरम विधानसभा चुनावों में उभरेगा। हालांकि कांग्रेस अपनी सरकार बचाने के लिए हर कोशिश कर रही है। देखा जाए तो उसकी स्थिति काफी मजबूत है। लेकिन चुनाव परिणाम ही तय करेंगे आगे की राहें कैसी होंगी।
तेलंगाना और टीआरएस की चुनौती
उधर, तेलंगाना में टीआरएस सत्ता पर काबिज है। टीआरएस दोबारा वापसी करेगी इसके भी कयास सभी लगाए बैठे हैं, क्योंकि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) की पकड़ मजबूत है। बता दें कि तेलंगाना में समय से पहले चुनाव कराए जा रहे हैं। पिछले माह मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने दिल्ली आकर विधानसभा भंग की घोषणा कर जल्द चुनाव कराने के लिए प्रेसिडेंट से गुजारिश की थी।
होंगे उप लोकसभा और उप विधानसभा के चुनाव भी
इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही कुछ राज्यों की सीटों पर लोकसभा और विधान सभा चुनाव के उपचुनाव भी कराए जाएंगे। कर्नाटक की बेल्लारी, शिमोगा और मांड्य की लोकसभा सीटों पर मतदान होगा। इसके अलावा कर्नाटक की ही रामनगर और जामखांडी विधानसभा के लिए उपचुनाव होंगे। लोकसभा चुनाव 2019 के कुछ महीने पहले तीन लोकसभा सीटों पर उपचुनाव समझ से परे हैं। जीतने वाले महज चार-पांच माह के लिए ही सांसद बनेंगे। विपक्ष का भी कहना है कि चुनाव आयोग को खर्च बचाने के लिए इन सीटों पर भी चुनाव आम चुनाव के वक्त ही मतदान कराना चाहिए था।