सीट शेयरिंग को लेकर अभी कोई समझौता नहीं हुआ है। यह पारदर्शी तरीके से तय होगा और आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा होगी। वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी जिस दिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिले, उस दिन झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने उनसे मुलाकात नहीं की। सोरेन कुछ माह पूर्व राहुल गांधी से मिले थे। एक साथ सीट शेयरिंग की बात तय करने की झारखंड मुक्ति मोर्चा की रणनीति के पीछे की वजह भी है.
2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने तत्परता बरतते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा से तालमेल किया। इस चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा ने दो सीटों पर कामयाबी के झंडे गाड़े। जब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस संग तालमेल कर चुनाव लड़ने की बारी आई तो कांग्रेस ने हाथ खड़े कर दिए थे। इस परिस्थिति से बचने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा ने रणनीति बनाई है कि लोकसभा चुनाव के साथ-साथ विधानसभा चुनाव के लिए भी अभी हीं सीट शेयरिंग पर सहमति बन जाए ताकि भविष्य में जिच की नौबत न आए।
जल्द बैठक बुलाने की कवायद झारखंड मुक्ति मोर्चा ने गठबंधन के साथी दलों के साथ जल्द बैठक बुलाने की भी पहल की है। इसमें आगे की रणनीति पर विमर्श होगा। फिलहाल विपक्षी गठबंधन में झामुमो के अलावा कांग्रेस, झाविमो और राजद शुमार है। सीटों को लेकर कमोबेश सभी दलों में जिच है। फिलहाल, सभी ज्यादा से ज्यादा सीटों की दावेदारी कर रहे हैं। बैठक में पिछले चुनाव में आए वोट को आधार बनाकर सीट शेयरिंग पर सहमति की कोशिश की जाएगी।
कांग्रेस की हर चाल पर नजर झारखंड मुक्ति मोर्चा हड़बड़ी में किसी नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहता। पार्टी की नजर कांग्रेस की हर चाल पर है। पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा को कांग्रेस में शामिल करने के बाद झामुमो का शीर्ष नेतृत्व ज्यादा सतर्क है। गीता कोड़ा की सिंहभूम संसदीय क्षेत्र से दावेदारी तय है, जबकि झामुमो की नजर भी इस सीट पर है। झामुमो ने पिछले विधानसभा चुनाव में सिंहभूम संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले विधानसभा सीटों में से एक को छोड़कर सभी सीटों पर कामयाबी पायी थी। इसी प्रकार झामुमो का दावा खूंटी, जमशेदपुर, गिरिडीह, दुमका, राजमहल आदि संसदीय सीटों पर भी है।