मध्यप्रदेश में शिवराज की लोकप्रियता बरकरार, लेकिन ये मुद्दे पड़ रहे भाजपा पर भारी

सत्ता के खिलाफ रोष
13 साल से मुख्यमंत्री का पद संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान की विकास पुरुष की छवि अब भी बरकरार है मगर सरकार के खिलाफ जा रहे वोटों को बांधकर रखना उनके लिए बड़ी चुनौती होगी।पुरानी तस्वीर यह बताती है कि राज्य में सत्ता विरोधी वोटों का बड़ा स्विंग भी संभव है।2003 में ऐसा ही हुआ था जब भाजपा ने सत्ता में वापसी की थी।
सवर्ण वोट
सितम्बर महीने में संसद द्वारा पारित एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ राज्य में सवर्ण संगठनों के बुलाए गए बंद का व्यापक असर देखने को मिला था। यह बंद राजपूत करणी सेना और पिछड़ा वर्ग अल्पसंख्यक कल्याण समाज (सपाक्स) नामक संगठन ने बुलाया था। सपाक्स अब एक राजनीतिक पार्टी का रूप ले चुकी है और माना जा रहा है कि भाजपा के पारंपरिक सवर्ण का कुछ हिस्सा दूसरी तरफ जा सकता है।
बेरोजगारी
श्रम मंत्रालय के आंकड़ों की मानें तो 2015-16 में मध्यप्रदेश के शहरी इलाकों में बेरोजगारी की दर 40 फीसदी और गांवों में 44 फीसदी थी जबकि पूरे प्रदेश में इस आंकड़े का औसत 43 फीसदी था।मध्यप्रदेश में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है और विपक्षी पार्टी कांग्रेस सरकार को रोजगार के मुद्दे पर विफल बताते हुए वादाखिलाफी का आरोप लगाया है।
किसान आंदोलन
6 जून 2017 को मंदसौर में फसल के मूल्य में बढ़ोतरी को लेकर प्रदेशन कर रहे किसानों पर पुलिस ने फायरिंग कर दी। इस घटना के बाद पड़ोसी जिलों में भी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। दबाव में आकर शिवराज सरकार ने भावांतर भुगतान योजना शुरू की। कांग्रेस ने इस साल 6 जून को मंदसौर की घटना की बरसी मनाई जिसे चुनावी अभियान के रूप में देखा गया।
शिवराज की लोकप्रियता
राम वन गमन पथ यात्रा के जरिए कांग्रेस पर सॉफ्ट हिंदुत्व कार्ड चलने के आरोप लग रहे हैं। हालांकि कांग्रेस इस बात से इंकार करती आई है। भाजपा के मुताबिक चुनाव धार्मिक या सामाजिक मुद्दे पर नहीं बल्कि विकास के मुद्दे पर लड़ा जाएगा। 13 साल से मुख्यमंत्री होने के बावजूद शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता बरकरार है। हालांकि उन्हें इन मुद्दों पर मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।