देश में लंबे समय से लंबित पडे़ अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की परीक्षा की मांग ने एक बार फिर से जोर पकड़ लिया है। वहीं कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने स्पष्ट कर दिया कि फिलहाल इस मामले पर जल्द ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचना आसान बात नही है और इसकी राह में अभी कई तरह के रोड़े है।
 कानून मंत्री ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए बताया कि समाज के अलग अलग वर्गो, सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और सरकार, इन सभी की सहमति के बिना इस पर आगे नही बढ़ा जा सकता। रविशंकर प्रसाद ने साफ कहा कि निजी तौर पर वो इस मामले का समर्थन करते है, ताकि न्याय प्रक्रिया में और ज्यादा पारदर्शिता आ सके, साथ ही समाज के हर वर्ग का व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया में भाग ले सके और इसका हिस्सा बन सके।
भारतीय न्यायिक सेवा की परीक्षा की मांग को लेकर राजधानी दिल्ली में फोरम फॅार ऑल इंडिया ज्यूडिशियल सर्विसेज ने विचार मंथन के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया, जिसमें रविशंकर प्रसाद सहित सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील और इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत जजों ने शिरकत की। कार्यक्रम में देशभर के 600 वकीलों ने भी भाग लिया।
कार्यक्रम में इस बात को लेकर जोर दिया गया कि जल्द ही आईपीएस और आईएएस परीक्षाओं की तर्ज पर ही देश में भारतीय न्यायिक सेवा की परीक्षा शुरू की जाए ताकि सभी जाति और वर्गो के लोग जज बन सके। साथ ही इससे होने वाले फायदे भी यहां बताये गये।
आकड़ों के अनुसार देश में तीन करोड़ से ज्यादा कोर्ट केस फिलहाल लटके पड़े है, जिसका बड़ा कारण जजों की कमी का होना है। 40 फीसदी से ज्यादा हाईकोर्ट के जजों के पद खाली पड़े है। हर साल करीब 85 जज अपने पदों से मुक्त हो जाते है, ऐसे में इस बात की जरुरत महसूस की जा रही है कि एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाए ताकि ज्यादा से ज्यादा जजों की नियुक्ति हो सके और न्याय प्रक्रिया में तेजी आ सके।