Shivraj Singh Chouhan profile: यूनिवर्सिटी में टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट युवा के CM बनने की कहानी - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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सोमवार, 15 अक्टूबर 2018

Shivraj Singh Chouhan profile: यूनिवर्सिटी में टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट युवा के CM बनने की कहानी

Shivraj Singh Chouhan profile: यूनिवर्सिटी में टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट युवा के CM बनने की कहानी

किसान परिवार में जन्मे और पढ़ाई में मेधावी रहे शिवराज सिंह चौहान ( Shivraj Singh Chouhan)  कैसे बने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री. जानिए उनका राजनीतिक सफर.

Shivraj Singh Chouhan profile:  यूनिवर्सिटी में टॉपर और गोल्ड मेडलिस्ट युवा के CM बनने की कहानी
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की फाइल फोटो.

खास बातें

  1. मध्य प्रदेश में 13 साल से मुख्यमंत्री हैं शिवराज सिंह चौहान
  2. राज्य में चौथी बार सत्ता बरकरार रखने की है चुनौती
  3. जानिए सीएम शिवराज सिंह का राजनीतिक सफर


बात 2003 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव(Madhya Pradesh Assembly election) की है. जब फायरब्रांड उमा भारती के नेतृत्व में बीजेपी(BJP) ने सूबे में चुनाव लड़ा. दमदार जीत दर्ज हुई तो उमा भारतीं मुख्यमंत्री बनीं. मगर, उमा भारती का यह दुर्भाग्य रहा कि अचानक उनके खिलाफ दस साल पुराने मामले में वारंट जारी हो गया. यह वारंट कर्नाटक के हुबली शहर में हुए सांप्रदायिक दंगे से जुड़ा था. जिसके बाद दबाववश उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. कहा जाता है कि उमा भारती की मध्य प्रदेश से लेकर उस वक्त केंद्रीय संगठन में धाक थी. चुनाव भी उन्हीं की अगुवाई में जीता गया था. इस नाते उन्होंने सूबे के वरिष्ठ नेता बाबूलाल गौर का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए अपने उत्तराधिकारी के तौर पर  आगे बढ़ा दिया. शुरुआत में शीर्ष नेतृत्व ने भी उमा भारती की सिफारिश पर एतराज नहीं जताया. पार्टी ने  बाबूलाल गौर के सीएम बनने को हरी झंडी दी.  23 अगस्त 2004 को बाबूलाल गौर ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. इस बीच कुछ बाबूलाल गौर से उमा भारती व शीर्ष नेतृत्व के मतभेद की खबरें आने लगीं. उधर वारंट का मामला ठंडा पड़ने के बाद उमा समर्थकों ने उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए लामबंदी शुरू कर दी. तब लालकृष्ण आडवाणी बीजेपी के अध्यक्ष थे.

राज्य में सीएम पद को लेकर जारी खींचतान पर आडवाणी चिंतित हुए तो उन्होंने भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक बुलाई. इस बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह,सुषमा स्वराज, प्रमोद महाजन और संजय जोशी मौजूद रहे. बैठक में बीच का रास्ता निकालते हुए शीर्ष नेतृत्व ने बाबूलाल को हटाने और उमा भारती को भी दोबारा मौका न देने का फैसला लिया. पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान( Shivraj Singh Chouhan) पर दांव खेला. आखिरकार बाबूलाल गौर को पद छोड़ना पड़ा.  29 नवंबर 2005 मुख्यमंत्री पद पर उनकी आखिरी तारीख रही. इस तरह मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे शिवराज सिंह चौहान ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.कई योजनाओं की नाव पर सवार होकर शिवराज 2008 और 2013 का विधानसभा चुनाव भी जिताने में सफल रहे. पिछले 13 वर्षों से मध्य प्रदेश में राज कर रहे शिवराज अब इस राज्य के सबसे ज्यादा समय तक इस कुर्सी पर बैठने वाले शख्स हो गए हैं. विधानसभा चुनाव के मौके पर पेश है शिवराज सिंह चौहान की पूरी प्रोफाइल.

पृष्ठिभूमि
शिवराज सिंह चौहान किसान परिवार से आते हैं. पांच मार्च 1959 को मध्य प्रदेश के सिहोर जिले के जैट गांव में मध्यमवर्गीय किसान प्रेम सिंह चौहान और माता  सुंदर बई चौहान के घर जन्म हुआ. जैट नर्मदा के किनारे बसा गांव है.  उनकी मां ने सिखाया कि कभी अपनी जड़ों को मत भूलो. शिवराज के मुताबिक उनकी मां की बात उनके जेहन में आज भी गूंजती है.  बचपन में शिवराज गांव के पास नर्मदा नदी में तैरने और खेलने में अधिकांश समय बिताते थे.

9 साल की उम्र से छेड़ी लड़ाई, एमए में रहे टॉपर
शिवराज सिंह चौहान के अंदर नेतृत्व क्षमता बचपन से थी. नौ साल की उम्र में ही गांव के किसानों के हकोहुकूक के लिए शिवराज ने आवाज बुलंद करनी शुरू की. किसान और मजदूरों के हक में एक बच्चे की लड़ाई देख लोग दंग रह जाते थे. शिवराज की कोशिशों से इलाके में दिहाड़ी मजदूरों का पारिश्रमिक दूना हुआ. 16 वर्ष की उम्र में वर्ष 1970 में एबीवीपी से जुड़ाव हुआ. फिर छात्रसंघ चुनाव में किस्मत आजमाने उतर पड़े.  भोपाल के मॉडल हायर सेकंडरी स्कूल के छात्रसंघ अध्यक्ष बने. बरतकुल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल से दर्शनशास्त्र में मास्टर्स की परीक्षा में सर्वोच्च स्थान मिलने पर गोल्ड मेडल से नवाजे गए. फिर आरएसएस से जुड़ाव हुआ. जब तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इमरजेंसी लगाई तो  वरिष्ठ नेताओं के साथ 1976-77 में नौ महीने के लिए जेल शिवराज जेल गए. मीसा के तहत सबसे नौजवान बंदी रहे. जेल में ही कई नेताओं से संपर्क होने पर नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ. जेल से निकलने के बाद एबीवीपी के संगठन मंत्री बने. 1988 में वह एबीवीपी के मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बने. 1988 में क्रांति मशाल यात्रा के जरिए चर्चा में आए. उनकी राजनीतिक यात्रा में यह यात्रा अहम पड़ाव रही.

जनता से पैसा मांग लड़े चुनाव, 31 साल में बने विधायक
वर्ष 1990 में 31 साल की उम्र में ही शिवराज सिंह चौहान बुधनी सीट से पहली बार विधायक बने. पहले ही चुनाव में निकटतम कांग्रेस उम्मीदवार को 22 हजार वोटों से हराया. लोगों से पैसे मांगकर शिवराज चुनाव लड़े थे. वन वोट, वन नोट का नारा दिया था. पब्लिक के पैसे से पूरा चुनाव लड़े. यह चुनाव काफी चर्चित हुआ था. हालांकि वह एक साल ही विधायक रहे. वजह कि 1991 में जब अटल बिहारी वाजपेयी ने विदिशा लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया तो पार्टी ने शिवराज सिंह चौहान को चुनाव मैदान में उतार दिया. पहला लोकसभा चुनाव भी जीतने में शिवराज सफल रहे और सबसे कम उम्र के सांसद बने. 1992 में वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के के जनरल सेक्रेटरी बने. 1996 में वह दोबारा विदिशा लोकसभा सीट से जीते. 1998 और 1999 में भी लगातार लोकसभा चुनाव जीते. वर्ष 2000 से 2003 के बीच वह भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे. 2004 में लगातार पांचवी बार लोकसभा चुनाव जीते. 2005 में बीजेपी के मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष बने. 29 नवंबर 2005 को वह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.

 इस साल वह बुधनी सीट से उपचुनाव जीतकर विधायक बने.  जहां से 1990 में उन्होंने करियर शुरू किया था. शिवराज के नेतृत्व में वर्ष 2008 का विधानसभा चुनाव भी बीजेपी जीतने में सफल रही., 12 दिसंबर 2008 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बने.  वर्ष 2013 में शिवराज के नेतृत्व में बीजेपी ने तीसरी बार मध्य प्रदेश में विजय हासिल की. शिवराज ने 14 दिसंबर 2013 को जीत हासिल की.राज्य में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड है. शिवराज सिंह ने साधना सिंह से शादी की, जिनसे दो बेटे कार्तिकेय और कुनाल हैं. वह कबड्डी, क्रिकेट और वॉलीबाल खेलने जहां पसंद करते हैं, वहीं राजनीति से कुछ वक्त वह मनपसंद गीत-संगीत सुनने और फिल्मों के लिए भी निकालते हैं. यहां बता दें कि 2003 के विधानसभा चुनाव में जब बीजेपी को जीत नसीब हुई थी, उस वक्त शिवराज कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से राघौगढ़ सीट पर विधानसभा चुनाव हार गए थे.

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