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गुरुवार, 31 जनवरी 2019

एक्टिविस्ट वकीलों को Supreme Court की खरी-खरी, फैसले को राजनीतिक रंग देने की प्रैक्टिस निंदनीय

एक्टिविस्ट वकीलों को Supreme Court की खरी-खरी, फैसले को राजनीतिक रंग देने की प्रैक्टिस निंदनीय


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सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों द्वारा मीडिया में जजों की निंदा करने और फैसलों को राजनीतिक रंग देने के प्रचलन’ पर कड़ी नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह और कुछ नहीं बल्कि घोर अवमानना का मामला बनता है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा और न्यायमूर्ति विनीत शरण की पीठ ने कहा है कि जब कभी भी राजनीतिक मसला अदालत में आता है और उसका निपटारा किया जाता है तो विवेकहीन व्यक्ति या वकील अपने हिसाब से मसले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश करते हैं। 

पीठ ने कहा कि इस तरह का कृत्य न्यायपालिका को बदनाम करना है और आम लोगों के विश्वास को खत्म करना है। पीठ ने कहा कि यह दुखद है कि बार कौंसिल की निष्क्रियता के कारण कुछ वकील ऐसा महसूस करते हैं वे बार कौंसिल से ऊपर है और खुद को विषयों का चैंपियन समझते हैं। मालूम को जस्टिस अरूण मिश्रा पहले से एक्टिविस्ट वकीलों के निशाने पर रहे हैं।  

पीठ ने कहा है यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वैसे लोगों द्वारा बिना किसी तार्किक कारणों से संस्थान की स्वतंत्रता की बात की जा रही है जिन्हें इन मामलों से दूर रहना चाहिए। किसी भी सिस्टम की स्वंत्रतता उसमें खुद निहित होती है। दबाव बनाकर संस्थान को बदनाम करने से सिस्टम खतरे में पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें मद्रास हाईकोर्ट रूल्स को खारिज करते हुए दी है। 

इस रूल के तहत प्रिंसिपल जिला जज को यह अधिकार था कि वह कदाचार पर वकीलों को अदालत में पैरवी करने पर रोक लगा सकता है। जजों के नाम पर पैसे लेना और जजों को गाली देना आदि कदाचार की श्रेणी में आते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि स्थिति कितनी भी खराब हो जाए लेकिन अनुशासनात्मक मामले में बार कौंसिल की स्वायत्तता अदालत के द्वारा नहीं छीनी जानी चाहिए। 
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसले की स्वस्थ्य आलोचला और उसकी व्याख्या करने की इजाजत है लेकिन सार्वजनिक रूप से आरोप लगाना या जजों के खिलाफ तर्कहीन आरोप लगाना गलत है। ऐसे विवेकहीन लोग फैसले को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।  

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