एक्टिविस्ट वकीलों को Supreme Court की खरी-खरी, फैसले को राजनीतिक रंग देने की प्रैक्टिस निंदनीय

पीठ ने कहा है यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वैसे लोगों द्वारा बिना किसी तार्किक कारणों से संस्थान की स्वतंत्रता की बात की जा रही है जिन्हें इन मामलों से दूर रहना चाहिए। किसी भी सिस्टम की स्वंत्रतता उसमें खुद निहित होती है। दबाव बनाकर संस्थान को बदनाम करने से सिस्टम खतरे में पड़ सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें मद्रास हाईकोर्ट रूल्स को खारिज करते हुए दी है।
इस रूल के तहत प्रिंसिपल जिला जज को यह अधिकार था कि वह कदाचार पर वकीलों को अदालत में पैरवी करने पर रोक लगा सकता है। जजों के नाम पर पैसे लेना और जजों को गाली देना आदि कदाचार की श्रेणी में आते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि स्थिति कितनी भी खराब हो जाए लेकिन अनुशासनात्मक मामले में बार कौंसिल की स्वायत्तता अदालत के द्वारा नहीं छीनी जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फैसले की स्वस्थ्य आलोचला और उसकी व्याख्या करने की इजाजत है लेकिन सार्वजनिक रूप से आरोप लगाना या जजों के खिलाफ तर्कहीन आरोप लगाना गलत है। ऐसे विवेकहीन लोग फैसले को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं।