Amethi: Gandhi परिवार का गढ़ रही सीट के इतिहास में BJP के लिए क्यों छिपी है उम्मीद? - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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शनिवार, 27 अप्रैल 2019

Amethi: Gandhi परिवार का गढ़ रही सीट के इतिहास में BJP के लिए क्यों छिपी है उम्मीद?

Amethi: Gandhi परिवार का गढ़ रही सीट के इतिहास में BJP के लिए क्यों छिपी है उम्मीद?


Political status of Amethi
Political status of Amethi 
उत्तर प्रदेश की अमेठी देश के चुनिंदा हॉट सीटों में से एक मानी जाती है। यह कांग्रेस और खासकर नेहरू-गांधी परिवार की परंपरागत सीट रही है। पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु, उनके पोते संजय गांधी, राजीव गांधी के अलावा सोनिया गांधी यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। तीन बार यहां से सांसद रहे राहुल गांधी ने चौथी बार अपना नामांकन दाखिल किया। पिछली बार की तरह इस बार भी उनका मुकाबला भाजपा नेत्री स्मृति ईरानी से है। राहुल गांधी के केरल की वायनाड सीट से नामांकन, अमेठी में स्मृति के डेरा जमाने और राहुल गांधी पर भाजपा नेताओं की आक्रामकता इस ओर इशारा करती है कि गांधी परिवार के लिए अपनी साख बचाना बहुत आसान नहीं है। 


पहले एक नजर आंकड़ों पर

2014 लोकसभा चुनाव:
राहुल गांधी, कांग्रेस
408,651 वोट(24%)
स्मृति ईरानी, भाजपा
300,748 वोट(18%)
धर्मेंद्र प्रताप सिंह, बसपा
57,716 वोट (3%)

2009 लोकसभा चुनाव:
राहुल गांधी, कांग्रेस
464,195 वोट(32%)
आशीष शुक्ला, बसपा,
93,997 वोट(6%),
प्रदीप सिंह, भाजपा,
37,570 वोट(2%)

2004 लोकसभा चुनाव:
राहुल गांधी, कांग्रेस
3,90,179 वोट(29%)
सीपी मिश्रा, बसपा
99,326 वोट(7%)
रामविलास वेदांती, भाजपा,
55,438 वोट(4%) 

यह तो कहा जा सकता है कि 2014 में मोदी लहर में भी यहां कमल नहीं खिल पाया था, लेकिन आंकड़ों में जो सबसे बड़ी बात दिख रही है, वह यह कि भाजपा के वोट प्रतिशत में नौ गुना इजाफा हुआ। 2009 में महज दो फीसदी वोट पाने वाली भाजपा को 2014 में 18 फीसदी वोटरों का समर्थन मिला। 2004 में करीब 2.90 लाख और 2009 में करीब 3.70 लाख वोटों से जीतने वाले राहुल गांधी 2014 में 1.07 लाख वोट से ही जीत हासिल कर पाए। मोदी लहर में स्मृति ईरानी उनके खिलाफ मैदान में थी और उनसे राहुल की जीत का अंतर घटा काफी घटा दिया। 2014 में नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा इस बार भी उनकी लहर बना रही है। 

संयोग देखिए कि अमेठी में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं

स्मृति ईरानी-राहुल गांधी
स्मृति ईरानी-राहुल गांधी 
अमेठी लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं। अमेठी जिले की तिलोई, जगदीशपुर, अमेठी और गौरीगंज, जबकि रायबरेली जिले की सलोन विधानसभा सीट इसके दायरे में है। 2017 विधानसभा चुनाव में चार सीटों पर भाजपा और एक सीट पर कांग्रेस-सपा गठबंधन को जीत मिली थी। गौरीगंज सीट सपा के खाते में थी। ऐसे में यहां कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं बन पाया।
 

वोटों का सियासी समीकरण
अमेठी लोकसभा सीट में कुल 16 लाख 69 हजार 843 मतदाता हैं। इनमें आठ लाख 90 हजार 648 पुरुष वोटर हैं, जबकि सात लाख 79 हजार 148 महिला वोटर हैं। एक महिला उम्मीदवार के बतौर स्मृति की नजर महिला वोटरों पर भी है। जातीय समीकरण की बात करें तो करीब 3.5 लाख अनुसूचित जाति वोटर और करीब चार लाख अल्पसंख्यक वोटर किंगमेकर की भूमिका में हैं। यह कांग्रेस और बसपा का वोट बैंक है। इसके अलावे पासी समुदाय, यादव, राजपूत और ब्राह्मण भी यहां बड़ी संख्या में हैं। 

अमेठी: कांग्रेस के गढ़ से गांधी परिवार की सीट तक 
अमेठी संसदीय पर अबतक 16 लोकसभा चुनाव और दो उपचुनाव हुए हैं। इनमें से कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की है, वहीं 1977 में लोकदल और 1998 में भाजपा को जीत मिली है। 1967 में परिसीमन के बाद अमेठी लोकसभा सीट वजूद में आई और कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी सासंद बने। 1971 में फिर जीते, लेकिन 1977 में नए प्रत्याशी बनाए गए संजय सिंह चुनाव हार गए। 1980 में इंदिरा गांधी ने बेटे संजय गांधी को रण में उतारा और तब से यह गांधी परिवार की पारंपरिक सीट हो गई। 1980 में ही दुर्घटना में संजय के निधन के बाद उनके भाई राजीव गांधी अमेठी से सांसद बने। 

1984 में 'गांधी' के सामने थी 'गांधी' 

sonia rajiv gandhi
sonia rajiv gandhi
1984 में गांधी परिवार के आमने-सामने होने से लोग हतप्रभ रह गए थे। राजीव गांधी और संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी के बीच चुनावी टक्कर हुई थी। मेनका को लगा था कि पति संजय गांधी के बाद वह उनकी विरासत की हकदार हैं। संजय गांधी ने अपने काम की बदौलत लोकप्रियता भी हासिल की थी। ऐसे में मेनका को लगा था कि वह जीत जाएंगी। 

मेनका की रैलियों में भीड़ भी खूब हुई, लेकिन यह समर्थन वोट के रूप में उन्हें नहीं मिल पाया। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर राजीव गांधी के पाले में गई। मेनका चुनाव हार गईं और अमेठी के मतदाताओं ने तीन लाख से भी ज्यादा अंतर से राजीव गांधी को जिताया। 

सोनिया ने बेटे राहुल के लिए छोड़ी सीट
1989 और 1991 में राजीव गांधी फिर चुनाव जीते, लेकिन 1991 के नतीजे आने से पहले उनकी हत्या कर दी गई, जिसके बाद कांग्रेस के ही कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव जीते। 1998 में वह भाजपा के संजय सिंह से हार गए। 1999 में अमेठी से सोनिया ने आम चुनाव में कदम रखा और पहली बार सांसद बनीं। 2004 में उन्होंने बेटे राहुल गांधी के लिए यह सीट छोड़ दी और रायबरेली चली गईं। राहुल गांधी पिछले तीन बार से यहां के सांसद हैं, लेकिन इस बार स्मृति उनके लिए कड़ी चुनौती है। 

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