भीड़ के डर से आवाज को दबाया नहीं जा सकता : Supreme Court

शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा कि कानून-व्यवस्था का हवाला देकर पुलिस थियेटर मालिकों को किसी फिल्म की स्क्रीनिंग से नहीं रोक सकती। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस के इस कृत्य को घातक बताया। साथ ही कहा कि पुलिस नैतिकता की ठेकेदार नहीं है। राज्य अपने अधिकारों का मनमाने तरीके से इस्तेमाल नहीं कर सकता। पीठ ने कहा है कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से प्रमाणित फिल्म को किसी अन्य अथॉरिटी से अनुमति लेने की दरकार नहीं है।
बहुमत नहीं तय कर सकता नजरिया
पीठ ने कहा, बहुमत यह नहीं तय कर सकता कि कलाकारों का नजरिया क्या होना चाहिए और क्या नहीं। कला जितना मुख्यधारा में रहने वालों के लिए है, उतना ही हाशिए पर रहने वालों के लिए भी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य किसी व्यक्ति को आजादी नहीं सौंपता, बल्कि संविधान में उस व्यक्ति को यह अधिकार मिला हुआ है। संगठित समूह का हित साधने के लिए थियेटर मालिकों की आजादी को धमकी नहीं दी जा सकती। लोगों के बोलने व अभिव्यक्ति के अधिकार का संरक्षण करना राज्य की जिम्मेदारी है।
सरका रपर लगाया 20 लाख रुपये का जुर्माना
राजनीतिक व्यंग्य पर आधारित बांग्ला फिल्म ‘भविष्योत्तर भूत’ की स्क्रीनिंग पर परोक्ष रूप से रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार पर 20 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। मालूम हो कि 11 फरवरी को कोलकाता पुलिस आयुक्त ने कानून व्यवस्था सहित अन्य परेशानियों का हवाला देते हुए कई थियेटर मालिकों को फिल्म ‘भविष्योत्तर भूत’ का प्रदर्शन रोकने का आदेश दिया था। फिल्म निर्माताओं की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह निर्माताओं व थिएटर मालिकों को मुआवजे के तौर 20 लाख रुपये और 1 लाख रुपया मुकदमा खर्च के तौर पर दे। साथ ही थियेटरों व फिल्म देखने वालों की सुरक्षा की भी व्यवस्था करे।