
इस चुनाव में सोनिया गांधी का विदेशी होना सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा। तारिक अनवर, पीए संगमा और शरद पवार ने इस मुद्दे को खूब भुनिया और कांग्रेस से अलग होकर नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया। एनडीए को कांग्रेस के भीतर के विवाद का जमकर फायदा मिला। देशभर में विदेशी सोनिया बनाम स्वदेशी वाजपेयी की हवा फैली और भारतीय जनता पार्टी ने इसे भुनाया।
इसके अलावा, इस चुनाव का दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा करगिल युद्ध था। इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हराया था और देश में राष्ट्रवाद की लहर थी। करगिल युद्ध के चलते वाजपेयी की छवि देश में अच्छी बनी और भाजपा को इसका पूरा फायदा मिला। एनडीए ने इस चुनाव में 269 सीटें जीतीं। तेलुगु देशम पार्टी को चुनाव में 29 सीटें मिली। टीडीपी के समर्थन से वाजपेयी की सरकार के पास आसानी से पूर्ण बहुमत का जादुई आंकड़ा आ गया। कांग्रेस और सीपीआई की हार ने सबके होश उड़ा दिए। इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सिर्फ 13 महीने ही चली थी और एआईएडीएमके के समर्थन वापस लेने से सरकार गिर गई थी। 1998 के चुनाव में भी भाजपा को 182 सीटें मिली थीं। जबकि कांग्रेस के खाते में 141 सीटें आईं। सीपीएम ने 32 सीटें जीती और सीपाआई के खाते में सिर्फ 9 सीटें आई। समता पार्टी को 12, जनता दल को 6 और बसपा को 5 लोकसभा सीटें मिली। क्षेत्रीय पार्टियों ने 150 लोकसभा सीटें जीतीं थीं। भारतीय जनता पार्टी ने शिवसेना, अकाली दल, समता पार्टी, एआईएडीएमके और बिजू जनता दल के सहयोग से सरकार बनाई और अटल बिहार वाजपेयी फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे। लेकिन इस बार अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 13 महीने में ही गिर गई। लेकिन 1999 में वाजपेयी सरकार ने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।