हावड़ा की दिलचस्प प्रतियोगिता: फुटबॉलर बनाम लेखक का युद्ध - Bharat news, bharat rajniti news, uttar pradesh news, India news in hindi, today varanasi newsIndia News (भारत समाचार): India News,world news, India Latest And Breaking News, United states of amerika, united kingdom

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शुक्रवार, 3 मई 2019

हावड़ा की दिलचस्प प्रतियोगिता: फुटबॉलर बनाम लेखक का युद्ध

हावड़ा का दिलचस्प मुकाबलाः फुटबॉलर बनाम पत्रकार की जंग


प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर
पश्चिम बंगाल की हावड़ा सीट के मुकाबले पर पूरे राज्य की नजर है। कोलकाता से सटी प्रतिष्ठित इस सीट पर मुकाबला इस बार भी बेहद दिलचस्प है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार यहां से फुटबॉल खिलाड़ी रहे प्रसून बनर्जी पर भरोसा जताया है। तृणमूल कांग्रेस के पूर्व सांसद अंबिका बनर्जी के निधन के बाद 2013 के उपचुनाव में पहली बार प्रसून यहां से जीते थे। उसके साल भर बाद हुए आम चुनाव में तृणमूल को मिले वोट चार फीसदी तक गिरे लेकिन उनकी जीत का अंतर बढ़कर 1.97 लाख हो गया।  दूसरी ओर, 2013 के उपचुनाव में उम्मीदवार खड़ा न करने वाली भाजपा को 2014 में 22 फीसदी वोट मिले थे। पार्टी ने पत्रकार रंतीदेव सेनगुप्ता को उतारा है। उनके लिए पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह चुनावी रैलियां कर चुके हैं। रंतीदेव कहते हैं कि प्रसून जाने-माने अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हो सकते हैं, लेकिन फुटबाल और राजनीति अलग चीजें हैं। हावड़ा के लोग बदलाव चाहते हैं। 

ध्रुवीकरण से फायदाः बांग्ला दैनिक से दो साल पहले रिटायर हुए सेनगुप्ता कहते हैं, ममता वामपंथियों की राह पर हैं। दूसरी ओर हावड़ा के धूलागढ़ में दंगे हो चुके हैं। 
भाजपा को ध्रुवीकरण से लाभ की उम्मीद है।

जीत का अंतर बढ़ेगाः  प्रसून का दावा है कि वह इस बार और ज्यादा मतों से जीतेंगे। क्योंकि उन्होंने क्षेत्र में विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं।
 
माकपा ही विकल्पः माकपा प्रत्याशी सुमित्रा अधिकारी कहती हैं कि लोग तृणमूल से आजिज आ चुके हैं। धर्म के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा को भी ज्यादा समर्थन नहीं मिलेगा। ऐसे में माकपा ही बेहतर विकल्प है।

किस्सा गोईः जब हाईटेक नहीं था चुनाव प्रचार

चुनाव हाईटेक होते गए तो नेता और जनता के रिश्ते की जीवंतता भी गायब होती गई। आज का जनसंपर्क हेलिकॉप्टर, एसयूवी से हाथ हिलाकर ही पूरा हो जाता है। एक-एक दिन में नेता आधा दर्जन रैलियां और रोड-शो कर लेते हैं। लेकिन पहले ऐसा नहीं था। चुनाव प्रचार के दौरान भी बड़े से बड़ा नेता भी गांव-गांव, गली-गली घूमकर वोटरों से संवाद करता, हाल-चाल पूछता, दुख-दर्द साझा करता था। 

जमीन से जुड़े कई दिग्गज नेता तो प्रचार के दौरान रात होने पर गांवों में ही रुक जाया करते थे। सुबह होने पर फिर चुनाव प्रचार शुरू हो जाता था। यह तस्वीर 1984 के लोकसभा चुनाव के दौरान अमेठी के एक गांव की है, जिसमें राजीव गांधी और उनकी पत्नी सोनिया गांधी एक बुजुर्ग महिला का हाल पूछ रहे हैं।



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