नतीजे बदलेंगे कई राज्यों के सियासी समीकरण, यहां भाजपा के सामने खड़ी होगी नई चुनौती

Rahul Vs Modi
लोकसभा चुनाव के मतगणना के बाद प्रमुख गठबंधनों की जीत या हार 3-3 राज्यों के सियासी समीकरण में व्यापक बदलाव लाएगी। भाजपा की अगुवाई वाले राजग की जीत की स्थिति में पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और मध्यप्रदेश के साथ-साथ कर्नाटक में कांग्रेस को राज्य की सत्ता बचाने के लिए पसीना बहाना पड़ेगा। वहीं, महाराष्ट्र, गोवा और बिहार में भाजपा के लिए सहयोगियों को साधे रखने की चुनौती होगी। इसके अलावा राजस्थान में दोनों ही परिस्थितियों में सियासी समीकरण में बदलाव आएगा। दरअसल, लोकसभा चुनाव के नतीजे केंद्र की राजनीति में राजग ही नहीं कांग्रेस शासित कई राज्यों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों का लिटमस टेस्ट होगा। सपा-बसपा-राजद, राकांपा, टीडीपी, आप सहित कई क्षेत्रीय दल अगर करिश्मा नहीं कर पाए तो इनसे संबंधित राज्यों में विपक्ष की राजनीति में नए विकल्पों की खोज शुरू हो जाएगी। वहीं, बेहतर प्रदर्शन करने पर क्षेत्रीय क्षत्रपों का सियासी कद बढ़ेगा।
ममता का सियासी कद तय करेगा चुनाव
राजग दोबारा सत्ता में आया तो पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी को अपने विधायकों, नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़े रखना कड़ी चुनौती होगी। चुनाव पूर्व ही पार्टी के कई सांसद और विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। खुद पीएम ने दावा किया है कि टीएमसी के 40 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। अगर टीएमसी ने बेहतर प्रदर्शन किया तो केंद्र की राजनीति में पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी का कद और बड़ा होगा।
मध्य प्रदेश में कमलनाथ के सामने दोहरी चुनौती
मध्यप्रदेश में बसपा से समर्थन से बमुश्किल बहुमत हासिल करने वाली कांग्रेस में जहां आपसी खींचतान है, वहीं बसपा लगतार समर्थन वापस लेने की धमकी दे रही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने बेहतर प्रदर्शन करने की बड़ी चुनौती है। इस चुनाव के परिणाम ही उनकी सरकार का भविष्य तय करेंगे। अगर राजग दोबारा सत्ता में आया तो कांग्रेस के लिए सरकार बचाने की चुनौती खड़ी होगी।
ममता का सियासी कद तय करेगा चुनाव
राजग दोबारा सत्ता में आया तो पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ टीएमसी को अपने विधायकों, नेताओं और कार्यकर्ताओं को पार्टी से जोड़े रखना कड़ी चुनौती होगी। चुनाव पूर्व ही पार्टी के कई सांसद और विधायक भाजपा में शामिल हो चुके हैं। खुद पीएम ने दावा किया है कि टीएमसी के 40 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। अगर टीएमसी ने बेहतर प्रदर्शन किया तो केंद्र की राजनीति में पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी का कद और बड़ा होगा।
मध्य प्रदेश में कमलनाथ के सामने दोहरी चुनौती
मध्यप्रदेश में बसपा से समर्थन से बमुश्किल बहुमत हासिल करने वाली कांग्रेस में जहां आपसी खींचतान है, वहीं बसपा लगतार समर्थन वापस लेने की धमकी दे रही है। मुख्यमंत्री कमलनाथ के सामने बेहतर प्रदर्शन करने की बड़ी चुनौती है। इस चुनाव के परिणाम ही उनकी सरकार का भविष्य तय करेंगे। अगर राजग दोबारा सत्ता में आया तो कांग्रेस के लिए सरकार बचाने की चुनौती खड़ी होगी।
कर्नाटक में फिर शुरू हो सकता है नाटक
लोकसभा चुनाव में भाजपा ने देशभर में 97 सांसदों का टिकट काटा है लेकिन कर्नाटक के सभी सांसदों को दोबारा मैदान में उतारा है। दरअसल यह अपने घर में असंतोष नहीं बढ़ने देने की रणनीति है। पार्टी घर मजबूत कर राज्य की जेडी-एस और कांग्रेस गठबंधन की एचडी कुमारस्वामी सरकार पर हमला करने की तैयारी में है। एनडीए दोबारा सत्ता में आया तो नए सिरे से ऑपरेशन लोटस शुरू होगा।
महाराष्ट्र में फिर हमलावर हो सकती है शिवसेना
एनडीए के केंद्र की सत्ता खोने की स्थिति में बमुश्किल साथ चुनाव लड़ने के लिए राजी हुई शिवसेना का रुख हमलावर हो सकता है। पार्टी भाजपा पर दबाव बढ़ाएगी। वैसे भी शिवसेना राज्य के सीएम पद पर अपना अधिकार मानती है। ऐसे में अगर केंद्र की सत्ता गई तो शिवसेना को थामे रखना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी।
गोवा में सहयोगी तलाश सकते हैं नया विकल्प
गोवा के सीएम मनोहर परिकर के निधन के बाद भाजपा ने सूबे में किसी तरह हालात तो संभाल लिए, मगर लोकसभा के नतीजे विपरीत आने पर समर्थन दे रहे सहयोगी दल अपनी नई भूमिका तलाश सकते हैं। खासतौर पर केंद्र की सरकार में कांग्रेस को प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका सहयोगी दलों को लुभा सकते हैं।
नतीजों का इन राज्यों पर भी पड़ेगा असर
प्रतिकूल परिणाम आने पर अचानक राजग में वापसी करने वाले जदयू अध्यक्ष और सीएम नीतीश कुमार के रुख में तल्खी आ सकती है। अगर राज्य में एनडीए ने बेहतर प्रदर्शन किया तो गठबंधन पर किसी तरह की आंच नहीं आएगी। वहीं, राजस्थान की राजनीति भी सीधे तौर पर प्रभावित होगी। सत्ता में राजग की वापसी के अलावा सत्तारूढ़ कांग्रेस के राज्य में बेहतर प्रदर्शन न करने की स्थिति में खासतौर से सीएम अशोक गहलोत की मुश्किलें बढ़ेंगी।
महाराष्ट्र में फिर हमलावर हो सकती है शिवसेना
एनडीए के केंद्र की सत्ता खोने की स्थिति में बमुश्किल साथ चुनाव लड़ने के लिए राजी हुई शिवसेना का रुख हमलावर हो सकता है। पार्टी भाजपा पर दबाव बढ़ाएगी। वैसे भी शिवसेना राज्य के सीएम पद पर अपना अधिकार मानती है। ऐसे में अगर केंद्र की सत्ता गई तो शिवसेना को थामे रखना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी।
गोवा में सहयोगी तलाश सकते हैं नया विकल्प
गोवा के सीएम मनोहर परिकर के निधन के बाद भाजपा ने सूबे में किसी तरह हालात तो संभाल लिए, मगर लोकसभा के नतीजे विपरीत आने पर समर्थन दे रहे सहयोगी दल अपनी नई भूमिका तलाश सकते हैं। खासतौर पर केंद्र की सरकार में कांग्रेस को प्रत्यक्ष या परोक्ष भूमिका सहयोगी दलों को लुभा सकते हैं।
नतीजों का इन राज्यों पर भी पड़ेगा असर
प्रतिकूल परिणाम आने पर अचानक राजग में वापसी करने वाले जदयू अध्यक्ष और सीएम नीतीश कुमार के रुख में तल्खी आ सकती है। अगर राज्य में एनडीए ने बेहतर प्रदर्शन किया तो गठबंधन पर किसी तरह की आंच नहीं आएगी। वहीं, राजस्थान की राजनीति भी सीधे तौर पर प्रभावित होगी। सत्ता में राजग की वापसी के अलावा सत्तारूढ़ कांग्रेस के राज्य में बेहतर प्रदर्शन न करने की स्थिति में खासतौर से सीएम अशोक गहलोत की मुश्किलें बढ़ेंगी।