राफेल लड़ाकू विमान - फोटो :भारत राजनीती
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि उसने राफेल लड़ाकू विमान की खरीद के मामले में कोई गलत जानकारी अदालत को नहीं दी है। सरकार ने बृहस्पतिवार को कहा है कि कुछ मीडिया रिपोर्ट और गैरकानूनी तरीके से हासिल अधूरी आतंरिक नोट के आधार पर पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों ने परजूरी (शपथ लेकर गलत बयान देना) आवेदन दाखिल किया है, लिहाजा इसे खारिज किया जाना चाहिए। वहीं, याचिकाकर्ताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल कर सीएजी की रिपोर्ट पर सवाल उठाया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट पीठ शुक्रवार को इस मसले पर सुनवाई करेगी।
सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर सरकार ने कहा है कि कानूनन, मीडिया रिपोर्ट के आधार पर अदालत कोई निर्णय नहीं लेती। सरकार ने कहा है खरीद निर्णय लेने की प्रक्रिया कई चरणों में होती है और कई जगहों या अधिकारियों से हो गुजरती है। अपूर्ण आंतरिक रिपोर्ट के आधार पर परजूरी का आवेदन दाखिल नहीं किया जा सकता। मीडिया रिपोर्ट पूरे घटनाक्रम व प्रक्रिया की सही तस्वीर पेश नहीं करती, वह महज प्रक्रिया का एक हिस्सा है।
सरकार ने कहा है परजूरी आवेदन पूरी तरह से मिथ्या और आधारहीन तथ्यों पर आधारित है और इसके जरिए राफेल विमान के मामले को फिर से खोलने का प्रयास है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने गत वर्ष 14 दिसंबर को अपना फैसला देकर खत्म कर दिया था।
मालूम हो कि 14 दिसंबर को शीर्ष अदालत ने राफेल विमान खरीद में गड़बड़ी के आरोपों वाली पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा व अरुण शौरी और वकील प्रशांत भूषण की याचिकाओं को खारिज कर दिया था। इसके बाद इन तीनों ने सरकार पर अदालत को गलत जानकारियां देने का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत से परजूरी की कार्रवाई करने की गुहार की है।
सीएजी की रिपोर्ट पर शीर्ष अदालत को दे चुके हैं आवेदन
सरकार ने कहा है कि सीएजी की रिपोर्ट को लेकर जो गलतफहमी हुई थी, उसे लेकर फैसले के अगले ही दिन सरकार ने उसे ठीक करने का आवेदन दाखिल कर दिया था। यह आवेदन अभी कोर्ट में लंबित है। सरकार का कहना है कि इस गलती का मूल आदेश पर कोई असर नहीं पड़ता है।
पीएमओ सौदेबाजी की कर रहा था महज मॉनीटरिंग
सरकार ने याचिकाकर्ताओं के इस आरोप को भी खारिज कर दिया कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा राफेल सौदे को अंजाम दिया जा रहा था। सरकार ने कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय पूरी प्रक्रिया की महज मॉनिटरिंग कर रहा था और इसे दखलअंदाजी कतई नहीं कहा जा सकता। साथ ही सरकार ने फिर दोहराया है कि दसॉल्ट कंपनी की तरफ से अपना इंडियन ऑफसेट पार्टनर चुनने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। साथ ही सरकार ने कहा कि राफेल लड़ाकू बयान की कीमतों को लेकर कोई झूठ फैलाया गया है। सीएजी ने भी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 36 राफेल की कीमत पहले के मुकाबले 2.86 फीसदी कम है।
सरकार ने हलफनामे में कहा
उसकी तरफ से अदालत को दी गई जानकारी पूरी तरह रिकॉर्ड पर आधारित थी, जबकि याचिकाकर्ताओं का आवेदन मीडिया में 'मनचाहे लीक' होकर आई रक्षा मंत्रालय की फाइलों पर विभिन्न अधिकारियों की तरफ से की गई व्यक्तिगत टिप्पणियों पर आधारित है। ये रिपोर्ट राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामले की अधूरी तस्वीर पेश करती हैं।